एक बेहद ख़तरनाक़ यात्रा वृतांत :
यह इत्तेफ़ाक़ ही रहा कि दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदुषण वाले दिन हमें किसी काम से चंडीगढ़ / मोहाली जाना पड़ा। यूँ तो हमें लॉन्ग ड्राइव पर जाना सदा ही पसंद रहा है और गए हुए भी डेढ़ साल हो गया था। लेकिन दिल्ली और हाइवेज पर फैली धुएं की चादर को देखकर हाइवे पर जाना बेहद खतरनाक हो सकता है , इसका आभास कई दिनों से अख़बारों में आने वाली ख़बरों से हमें भलि भांति था। लेकिन काम की अत्यावश्यकता को देखते हुए जाना भी मज़बूरी ही थी। हालाँकि सुबह जाकर शाम तक वापस आना , एक ही दिन में खुद करीब ६०० किलोमीटर ड्राइव करना कोई आसान काम नहीं लगता। कोहरे की वजह से दृश्यता बहुत कम हो जाती है , और ऐसे में हाइवे ड्राइविंग बेहद खतरनाक हो जाती है।
इसलिए ज्यादा जल्दी न कर हम सुबह ७ बजे ही घर से निकले। जैसा कि अनुमान था , जी टी रोड पर दिल्ली हरियाणा बॉर्डर तक काफी धुंधलका था लेकिन ड्राइव करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। लेकिन बॉर्डर पार करते ही , जैसे ही खुले खेतों के दर्शन हुए , धीरे धीरे धुंध बढ़ने लगी। अब स्मॉग की जगह शुद्ध धुंध ने ले ली थी । सभी गाड़ियों वाले हेड लाइट्स और डिस्ट्रेस सिग्नल ऑन कर चलने लगे। स्पीड कम होने लगी और दृष्टि भी। धुंध के झोंके गाड़ी की ओर ऐसे आ रहे थे जैसे बारिश की बौछार आती हैं। कुछ समय बाद धुंध इतनी गहरी हो गई कि गाड़ी के शीशे के आगे भी कुछ नहीं दिख रहा था। दायीं लेन में चलते हुए साइड में डिवाइडर ज़रा सा दिख रहा था , जिसके सहारे हम धीरे धीरे गाड़ी चला पा रहे थे। फिर एक के बाद एक एक्सीडेंट के नज़ारे दिखने लगे।
उस समय हमारी हालत बिलकुल उस पॉयलेट जैसी हो गई थी जिसने कुछ दिन पहले ज़ीरो विजिबलिटी में विमान को सिर्फ अंदाज़े से हवाई पट्टी पर उतार दिया था और कोई नुकसान नहीं हुआ था। अब तो हमें यह भी लगने लगा था कि ऐसा ही रहा तो वापस कैसे आएंगे। रात होना तो निश्चित था , फिर अँधेरा और धुंध दोनों मिलकर कहर ढा देंगे। खैर किसी तरह धीरे धीरे लगभग रेंगते हुए साढ़े तीन घंटे में जब करनाल पहुंचे तो कुछ कुछ दिखना शुरू हुआ। लेकिन जो दिखाई दिया , वह तो और भी ज्यादा खतरनाक था। पूरे करनाल बाइपास पर जगह जगह एक्सीडेंट हुई गाड़ियां पड़ी थीं। अधिकांश बुरी तरह से टूटी फूटी हुई। एक जगह तो करीब १०० मीटर तक गाड़ियों के पुर्जे बिखरे पड़े थे। ऐसा लग रहा था , मानो वहां कोई रॉयट्स ( दंगे ) हुए हों। सिर्फ खून कहीं नहीं दिखा , यह देखकर हमने सोचा कि चलो शुक्र है कि शायद किसी को चोट तो नहीं लगी होगी।
करनाल के बाद वातावरण साफ होने लगा और अम्बाला तक जाते जाते बिलकुल साफ हो गया। चंडीगढ़ और मोहाली तो ऐसे साफ चमक रहे थे जैसे वहां कभी कोहरा होता ही न हो। वहां कोई सोच नहीं सकता था कि हम कैसे रास्ते से निकल कर आये हैं। वापसी में फिर करनाल तक रास्ता साफ मिला। लेकिन उसके बाद शाम भी ढल गई , अँधेरा बढ़ने लगा था और कोहरा भी। लेकिन विजिबलिटी इतनी थी कि ड्राइविंग में कोई विशेष दिक्कत नहीं हुई। हमने भी श्रीमती जी को हाइवे पर ड्राइविंग का शौक पूरा करने का पूरा अवसर देते हुए दोनों ओर आधा रास्ता ड्राइव करने दिया। अंतत: रात के साढ़े आठ बजे हम घर पहुँच गए।
आज सुबह जब अख़बार खोला तो पता चला कि उन एक्सीडेंट्स में दस लोगों की मौत हो गई और ३०-४० लोग घायल हुए। और इतनी ही गाड़ियां चकनाचूर हो गई थी। घंटों ट्रैफिक जैम भी रहा। बस शुक्र रहा कि हम बाल बाल बचते हुए सकुशल घर पहुँच गए। वापसी में रास्ते में अनेकों जगह खेतों में आग लगी देखी जिनसे निकलता हुआ धूंआं प्रदुषण फैला रहा था। यह साफ ज़ाहिर था कि पंजाब हरियाणा का यह धुआं हवा की दिशा के कारण दिल्ली की ओर ही आ रहा था , जबकि चंडीगढ़ और मोहाली का क्षेत्र साफ बचा हुआ था। क्या भगवान भी दिल्ली वालों को किसी बात की सजा दे रहा है ? ज़रा सोचिये ज़रूर।
आखिर धुवां किसका है ... सुना है किसान खाली खेतों में आग लगा देते हैं ..शायद उससे धुवां फैला हो .. लेकिन जो भी हो यह बेहद खरनाक स्थिति है ..
ReplyDeleteचिंतनीय ।
ReplyDeleteये चिंता की बात तो है ही और सोचने की भी बात है ... जब तंत्र की व्यवस्था वाले सालों साल बस मतलब साधने में लगाते हैं और अब तक लगाते रहते हैं और जनता नहीं जागती तो ऐसा होना लाजमी है ... बदलाव लाना होगा बस जनता को ...
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ReplyDeleteचिंतनीय और दुखद बातें है, किन्तु हां, दिल्ली वालों को लालच की सजा मिल रही है ऐसा लगता है।
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