समलैंगिक सम्बन्धों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद टी वी चैनलों , अख़बारों और सोशल साइट्स पर इस विषय पर लोगों की रूचि और विचारों को पढ़कर यह महसूस हो रहा है कि समलैंगिकता समाज में व्यापक तौर पर मौजूद है। लेकिन हैरानी इस बात पर हो रही है कि इसके समर्थन में लोगों का विशेषकर युवा वर्ग का बहुत बड़ा भाग उठ खड़ा हुआ है। इसके समर्थन में न सिर्फ पत्रकार , फैशन जगत और फ़िल्म जगत के लोग दिखाई दे रहे हैं , बल्कि आम आदमियों में भी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। जबकि धार्मिक संस्थाओं सहित परिपक्व और रूढ़िवादी लोगों के अनुसार कोर्ट का यह निर्णय सही है।
इस विषय के पक्ष या विपक्ष में कुछ भी न कहते हुए ( क्योंकि यह अपने आप में एक बेहद विस्तृत चर्चा का विषय है ) , यह कहना कदाचित अनुचित नहीं होगा कि समलैंगिक सम्बन्धों को मान्यता प्रदान करने की मांग मूलत: पश्चिम की अंधाधुंध नक़ल है। कहीं न कहीं हम अपनी संस्कृति को भूलकर एक मृग मरीचिका के शिकार हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में हम धोबी के कुत्ते जैसे -- घर के न घाट के -- बनते जा रहे हैं। न हम पुरबिया रहे , न पश्चिमी बन सके। क्योंकि हम पश्चिम की बुराइयों की नक़ल तो कर रहे हैं , लेकिन अच्छाइयों की नहीं। यदि पश्चिमी सभ्यता को ही अपनाना है तो उनकी अच्छाइयों को भी अपनाना होगा।
यदि पश्चिमी देशों की नक़ल करनी है तो नक़ल करिये :
* उनके अनुशासन , कर्मनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता की।
* यातायात के नियमों को पालन करने की ।
* शहर को स्वच्छ रखने की आदत की ।
* ईमानदारी से टैक्स भरकर विकास में योगदान देने की ।
* आबादी , प्रदुषण और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखने की।
लेकिन यह सब करने के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए वह तो हम में है ही नहीं। यह काम तो हम दूसरों पर छोड़ देते हैं। कानून और सरकार से हम डरते नहीं क्योंकि सब जगह हमारा कोई न कोई चाचा या मामा बैठा रहता है। हम तो मनमौजी हैं और अब हमारी मौज में दखल पड़ गया है। इसलिए विरोध कर रहे हैं।
ज़रा सोचिये हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या तैयार कर रहे हैं !
समलैंगिक सम्बन्धों को मान्यता प्रदान करने की मांग मूलत: पश्चिम की अंधाधुंध नक़ल है।
ReplyDeleteNo if this was true then no way it would have been declared criminal offence by Britishers. We have this habit of brushing under the carpet all things that we want to ignore and which have been there in india for ages .
At one point we take pride in saying that we are the people who introduced most things even ZERO and west followed it
ज़रा सोचिये हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या तैयार कर रहे हैं !
The SC has asked to scrape the provision which is irrelevant and since our constitution gives right to freedom we have to be compasionate to all those who are LGBT and accept them and their likes and dislikes
We are not aping the west we are merely opening our hearts to all those who are normal by their own values but differ from what we think is normal
AND NO ONE IS SAYING THAT ALL INDIVIDUALS SHOULD BE HOMOSEXUAL , PEOPLE ARE ASSUMING THAT BY DECRIMINALIZING THIS IT WILL PROMOTE HOMOSEXUALITY
No its a wrong assumption
True homosexuality is genetic and a rare occurrence but not bi-sexuality which is by choice . It is becoming more of a faishan . Sex with an animal is called bestiality which is a perversion .
DeletePerverts are all around us and just because they go scot free we can't chain those who have a problem .those who experiment with their body pay a price at some point of time as a doctor u are more competent on this subject and a post that could make people common people understand in depth what homosexuality is would have been more apt I feel and perversion is onces own doing and has nothing to do with western culture . Let's admit our mistakes instead of saying we follow west
DeleteRachna ji , I have already written that it is a vast subject and I am not talking in favour or against the subject . This is only regarding aping the West . Why don't we follow the West in their good deeds! Perversion is so much rampant in Western society that you cant even imagine it .
DeletePerversion is every where in west there is a openess to admit what one does , in india people hide and do things . I have had opportunity to see and compare both cultures very closely and I feel no one is copying or aping any one
Deleteपीडोफिल्स वेस्ट से गोवा मे आकर बच्चों का शोषण करते हैं. यहाँ अब एल जी बी टी टूरिज्म की बात होने लगी है . यह क्या दर्शाता है !
Delete---सही कहा है डा.दराल.... पर हम अच्छी बातों की नक़ल करें ..बुरी बातों की क्यों.....
Delete----रचनाजी -- समलैंगिक सम्बन्ध तो कोइ जानवर भी नहीं बनाता ..... सिवाय उनके जो द्विलिंगी ( बाईसेक्सुअल) होते हैं....जैसे केंचुआ....क्या हम जानवरों से भी बदतर होते जारहे हैं.....और जीरो का अन्वेषण एवं समलैंगिक सेक्स में क्या समानता है बतायेंगीं....
पीडोफिल्स वेस्ट से गोवा मे आकर बच्चों का शोषण करते हैं
Deleteassaram jaese yahaan kartae haen
aur yae sab galat haen lekin iskae liyae jinhae vakaii mae samsyaa unko apradhi karar dena hi galat haen
आजादी के नाम पर समलैंगिकता एक मानसिक विकृति है |विकृत मस्तिष्क वाला व्यक्ति भी अपने को प्रकृस्थ समझते है |\
ReplyDeleteआपका लेख सुन्दर है !
नई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
प्रकृस्थ के स्थानपर प्रकृतिस्थ पढ़ें !
ReplyDelete@हम तो मनमौजी हैं जी....
ReplyDeleteआप की पोस्ट पढ़ कर बस एक बात ध्यान आयी कि पश्चिमी सभ्यता को कभी भी नहीं अपनाना ... न कभी विदेश जाना है.
अच्छी आदतों को अपनाने मे क्या हर्ज़ है ?
Deleteसंसद विचार करे -अपराध नहीं मगर यह प्रतिबंधित हो! यह असमान्य व्यवहार है जिसके आनुवांशिक आधार हैं
ReplyDeleteडॉ साहब लग रहा है इस समय देश के सामने और कोई मुद्दा नहीं है न महंगाई का ,न भ्रष्टाचार का न बे -असर आत्मघाती नेतृत्व का। लगातार सोनिया - राहुल समलैंगिकता के समर्थन में आ रहे दीखते हैं बकौल कुछ न्यूज़ चैनलों के।
ReplyDeleteलगता है एक समलैंगिक वोट बैंक बनेगा। आखिर एक अंग्रेजी के रिसाले के अनुसार इनकी तादाद जनसंख्या का ७ -१३ फीसद तक है। बेहद सशक्त पोस्ट है आपकी आपने साहस दिखाया है सच को सच कहने का। कांग्रेस पार्टी तो इस मुद्दे पर राष्ट्रीय जनमत संग्रह करवाने का मन बना रही है।
मुफ्त में वोट कूटो राहुल समलैंगिक संरक्षण फ्रन्ट बनाओ।
लोग चाहे पशु को अपने अहाते में बंद करके कुछ भी करे। इन्हें वोट चाहिए। सरकारी अहाते खोल दो सरकारी शराब घरों की तरह। राहुल भाई।
मुझे ये फैसला गलत लगा।
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कि -- इसमें कुछ गलत या बुरा हैं।
दरअसल ये हिंदुस्तान का दुर्भाग्य हैं, जो हम आज भी ऐसी ही निरर्थक बहसों में उलझे हुए हैं।
पहली बात तो ये सभी सम्बन्ध / रिश्ते 90% सहमति और ख़ुशी से बने होते हैं।
और फिर अगर किसी भी कोर्ट को लगे कि = ये गलत हैं, अपराध हैं, तो फिर रेप की धारा तो क़ानून में हैं ही।
सच कहूं तो, इस तरह अदालतें और अखबारों के माध्यम से ऐसे सम्बन्धों को पॉपुलर ही किया जा रहा हैं, बन्द कमरे से बाहर निकाला जा रहा हैं।
बाकी, अदालत का मैटर हैं, मैं क्या कहु?
धन्यवाद।
chander kumar soni
www.chanderksoni.com
विचारणीय . . .
ReplyDeleteअमेरिका में चुनाव का यह मुद्दा था तो हम भी उसी की तर्ज पर मुद्दा बना रहे हैं। नाली में पड़े हुए हैं हम और मुद्दे बनाते हैं अमेरिका के। वाह।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संसद पर हमला, हम और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहर बात के लिए पश्चिम पर उंगली उठानी आवश्यक नहीं है .......यह समस्या कोई नयी नहीं है ...प्राचीन काल से चली आ रही है ...... हाँ इसे अप्राकृतिक ज़रूर कहा जा सकता है ... बस आज यह खुल कर सबके समक्ष आ रही है ।
ReplyDeleteआप इसे पश्चिम की नक़ल क्यों कह रहे है ये मुझे नहीं समझ आ रहा है , बादशाहो के हरम में पुरुष का होना नहीं बात नहीं है , आम बोल चाल में तो ज़माने से इसे लोग नवाबी शौक कह कर सम्बोधित करते रहे है और आम लोगो में भी ऐसे सम्बन्ध थे , यदि मेरी आँखे सही है और मेरा ज्ञान तो मैंने खुद खजुराहो में समलैंगिंक मुर्तिया देखी है आप गूगल में खोजिये आप को मुर्तिया मिल जाएँगी, इसी का एक रूप हमारे समाज में हमेसा से रहा है ऐसे पुरुषो की दुआ को बड़ा महत्व देते है जिनका व्यवहार स्त्रियो सा होता है ( उनके लिए कोई शब्द नहीं लिख रही हूँ किन्तु आप समझ गए होंगे , , क्योकि पता नहीं कब किसे किस शब्द से आपत्ति हो जाये और उन पुरुषो में से बहुत से नपुंशक नहीं होते थे ) । ये पश्चिम का कैसे है जिसके लिए आम बोलचाल में कई शब्द है और जो हमारे समाज में आम तौर पर दिखते है , फर्क इतना है की पहले छुपाते थे आज वो अकेले नहीं है रिश्तो में है , तो किसी को क्या परेशानी है उनके रिश्तो से । जब लडकिया पढने लगी काम करने लगी तब भी पश्चिम का नाम ले कर हो हल्ला होता था , लडकियो के आधुनिक कपडे पर , उनकी नौकरी करने पर , समलैंगिगता पर पश्चिम के नाम पर हो हल्ला करने वाले कभी कुर्ते पैजामे या धोती कुरता पहनने की बात नहीं करते है उन्हें तब पश्चिम का पैंट शर्ट , कोट टाई सब आरामदायक और अच्छा लगने लगता है और भारतीय बन जता है । ये क्या बात हुई की लोग आप के विचारो के हिसाब से जिए जो आप कहे वो सही बाकि गलत , दूसरे के नजरियो का कोई महत्व ही नहीं , कल को खाप पंचायतो को रूढ़िवादी पुरातनपंथी कह गाली देने वाले , आज इस सब का विरोध कर रहे है । ऐसा नहीं होता है ये दुनिया बहुत बड़ी है और सभी को अपने विचारो के हिसाब से जीने का अधिकार है बस वो आप को कोई नुकशान न कर रहे हो आप के अधिकारो में खलल नहीं डाल रहे हो । कोर्ट ने जब इसे मान्यता दी थी तब भी साफ कहा था की किसी को रिश्ते बनाने के लिए मजबूर करने या रेप में उन्हें भी सजा होगी । आप सामजिक धार्मिक रूप से इसका जितना चाहे विरोध करे ठीक है किन्तु इसे क़ानूनी अपराध कि श्रेणी में तो नहीं ही रखना चाहिए ।
ReplyDeleteमेरा मानना है ये अच्छी बातें तो अपनानी ही चाहियें ... पर अगर कोई मुद्दा है तो उसका समाधान तो होना चाहिए अपने देश, समाज की भावनाओं अनुसार ... पर इसको अपराध तो नहीं ही मानना चाहिए ...
ReplyDeleteहमारी पश्चिम की नकल की आदत नई नहीं बहुत पुरानी है. शायद यह हमारे खून में सदियों से चली आ रही है. तभी तो खजुराहो के मूर्तीकारों ने पश्चिम का दौरा कर पहले ये हरकतें देखीं, फिर उन्हें हूबहू भारतीय शक्लें दे हमारे मंदिरों में उकेर दिया.
ReplyDeleteशिखन्डी पर भी पश्चिम का ऐसा प्रभाव पड़ा कि स्त्री रूप में जन्म ले पुरुष वस्त्र पहन घूमी और फिर एक स्त्री से विवाह भी कर लिया।
श्रीकृष्ण भी इस पश्चिम की नकल के रोग से नहीं बचे रहे, स्त्री वेश धारण किया।
अज्ञातवास में अर्जुन का स्त्री रूप धारण करना भी इसी पश्चिम की नकल की होड़ की बुरी आदत का परिणाम था।
अब जब हमारे पुरखे यह करते आए हैं तो हम कैसे इस नकल की आदत को छोड़ दें। बुरी है किन्तु हमारी अपनी है यह आदत।
कृष्ण और अर्जुन का स्त्री रूप धारण करना उनके समलेंगिकता में लिप्त होने का प्रमाण नहीं है और शिखंडी हिजड़ा था सम्लेंगिक नहीं। समलेंगिकता को अपराधिक मान कर अंग्रेजों ने कानून बनाया। आज कि सरकार चाहे तो ऐसे ख़त्म कर दे पर पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण करने वाले समलेंगिकता को एक सामान्य व् प्राकृतिक मानते हैं जोकि स्वीकार्य नहीं है। मैं दराल साहब से सहमत हूँ कि अनुकरण करना ही है तो पश्चिमी लोगों कि अच्छी बातों का किया जाय ना कि उनके समाज में व्याप्त विकृतियों को स्वीकारा जाय
Deleteपोस्ट का सही आंकलन। शुक्रिया।
Deleteसमलेंगिकता को अपराधिक मान कर अंग्रेजों ने कानून बनाया। phir to ham ko isko kab kaa khatam kar dena chahiyae thaa , agrez bhi पश्चिमी सभ्यता hi hae naa yaa nahin
DeleteThe english people who made these laws were from medieval england rulling india and todays indian who are supportig homosexuality on the line of their western masters are definitely not following social values of medieval west.
Deleteअप्राकृतिक , विकृत और अपराध -- इन तीनों में अंतर है। ये एक दुसरे के पर्यायवाची नहीं हैं। सही है कि इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए लेकिन न्यायिक या संवैधानिक स्वीकृति देकर प्रोत्साहन भी नहीं देना चाहिए। भले ही यह हमारे समाज में भी सदियों से प्रचलित है , लेकिन आज जिस तरह रैलियां निकाली जा रही हैं वह पश्चिम की नक़ल ही तो है। अब जल्दी ही समलैंगिक विवाह की मांग भी आ सकती है।
ReplyDeleteबाई -सेक्सुअल को क्या कहेंगे ! कुदरत के कुछ करिश्मों की आड़ लेकर सारे समाज को विकृत बनाना सही नहीं ठहराया जा सकता।
वैसे इस पोस्ट में सम्बन्धों से ज्यादा जीवन शैली पर ज्यादा ध्यान दिलाया गया था। लेकिन अफ़सोस कि इस बारे में किसी ने भी टिप्पणी नहीं की ! यानि हम जानते हैं कि हम दोषी हैं लेकिन दोष दूसरों पर मढ़ते हैं।
लेकिन आज जिस तरह रैलियां निकाली जा रही हैं वह पश्चिम की नक़ल ही तो है।
Deletecmmon Dr Dral How can you say this , taking a rally for our rights is a fundamental right and its not a copy . It seems me , sangeta , anshumala and ghughuti have taken the correct stand because by writing this line you have really come out with the fact that homosexuals should not take out a rally or in other words these things should not be talked so publicly for the fact that it will spoil the next generation , Where as its the next generation which is more knowledgeble then the previous one
जी हाँ , महिलाओं का समर्थन मे बोलना थोड़ा हैरान कर रहा है ! :)
Deleteवैसे आज ही पेपर मे पढ़ा था कि किस तरह एक पति ने हनीमून पर अपनी पत्नी का यौन शोषण किया !
haeraan kyun kar rahaa haen ?? jo hameshaa sae apnae adhikaaro kae liyae ladd rahii haen wo samjh saktii haen dusrae kae adhikaro ki ladaaii ko and mental evolution bhi mahila kaa jyadaa hua haen pichhlae 50 saal mae
DeleteDR SAHAB MAIN PARAMPARA AUR RITI RIWAZ SANG MULYON KA POSHAK HUN ISALIYE AAPAKI MANYATAON KA SAMARTHAN KARATA HUN**********
ReplyDeleteयह एक मानसिक विकृति है जिसे इलाज़ की जरुरत है। निश्चित ही स्वस्थ समाज के लिए यह आदर्श स्थिति नहीं है जिसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteअपराध साबित करने की बजाय समझाईश / वर्कशॉप अधिक उचित होंगी।
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ReplyDeleteडॉ दराल सर..ये बीमारी है या नहीं इसपर बेहतर आप ही बता सकते हैं.। स्वामी रामदेव इस मसले को आज बीमारी बता कर इसके इलाज की बात कर रहे हैं...तो उन्हें इसका इलाज करने से रोक कौन रहा है...इस मसले पर समाज के प्रभावशाली लोग राजनीति औऱ LGBT लोग केवल विधवा विलाप कर रहे हैं......इसीपर मैने विस्तार से पोस्ट लिखी है। समाज औऱ उसके आज के कर्णधारों के दोगलेपन की दाद देनी होगी। इस मसले पर इसलिए मैने LGBT के लोगो को सुकरात का उदारहण दिया था। हां ये सच है कि समलैंगिकता हमारे समाज में हजारों साल से है....खजुराहो के मंदिरों के बनने से भी हजार साल पहले भी मौजूद था..जिसके सबूत किताबों में बिखरे पड़े हैं...पढ़ने वाले किताबों की दुनिया में जाकर इसे खोज सकते हैं। पर इसे उस समय के समाज ने समलैंगिकता को व्यक्तिगत मानते हुए इसे दैनिदिनी में तव्व्जो नहीं देने की रणनीति बनाई थी.....पर साथ ही इसे समाजिक मान्यता भी नहीं दी थी। यानि इस समस्या का समाजिक इलाज अपने ही यहां वर्षो से मौजूद है..और हम उस अमेरिका की बात कर रहे हैं जहां हर राज्य में अभी तक इसे मान्यात नहीं दी गई है।
ReplyDeleteअंधानुकरण गढ्ढे में गिराता है, काल और स्थान अनुसार सोच कर निर्णय लिये जायें।
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