पिता सरकारी दफ्तर में चपरासी था । अभावों में जीना सीख लिया था उसने । जब सब बच्चे गली में क्रिकेट खेल रहे होते तो वह खिड़की से झांक कर दूसरों को खेलते देख कर ही संतुष्ट हो जाता ।
लेकिन ऊपर वाले ने उसे विलक्षण बुद्धि दी थी । इसलिए मन में उत्साह और लग्न थी कुछ कर दिखाने की ।
उस दिन भी तो वह खिड़की से ही झांक रहा था कि तभी पडोसी की नज़र उस पर पड़ गई ।
थमा दिया हाथ में एक गिलास और पांच पैसे का सिक्का ।
घर में मेहमान आया था । चाय बनानी थी , दूध चाहिए था ।
पांच पैसे में पचास ग्राम सप्रेटा दूध आता था ।
दो कप चाय आसानी से बन जाती ।
डेरी की लाइन में एक हाथ में कांच का गिलास और दूसरे में सिक्का पकडे, वह इंतजार कर रहा था अपनी बारी का ।
मन में विश्वास था कि एक दिन वह बड़ा आदमी ज़रूर बनेगा ।
और सोचता जा रहा था कि जब वो बड़ा आदमी बन जाएगा और ये दिन याद आयेंगे तो कैसा लगेगा ।
चपरासी ने आवाज़ दी तो ध्यान भंग हुआ --सा`ब चाय ठंडी हो गई । दूसरी ला दूँ क्या ?
बाहर जिले के लोग आपसे मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं ।
जिलाधीश के पास पचास गाँव की पंचायत के लोग फ़रियाद लेकर आए थे, गावों में पीने के पानी की व्यवस्था के लिए ।
नोट : यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं ।
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अतीत के साथ वर्तमान का शानदार समन्वय.
ReplyDeleteआदरणीय डॉ टी एस दराल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं ।
बिलकुल सही कहा आपने डॉ साहब विश्वास होना बहुत जरूरी है
आत्म विश्वास क्या नहीं करा सकता ? नव युवाओं के लिए बेहद प्रेरक प्रसंग !
ReplyDeleteयह युवक वाकई खुशकिस्मत है जिसने भारी बुरे दिन और स्वर्णिम समय का आनंद लिया !
आपकी शैली में आनंद आ गया दराल साहब ! शुभकामनायें !
बेहद प्रेरक प्रसंग !
ReplyDeleteआभार !
...ऊपर वाले ने उसे विलक्षण बुद्धि दी थी । इसलिए मन में उत्साह और लग्न थी..." शायद ऊंची ईमारत की गहरी अनजानी और अनदेखी नीवं थी...ऐसे ही मुंबई में एक बिहारी महिला, जिनके पति अच्छी पोस्ट में थे और अब बेटा- बेटी भी, से सुना (सही या झूट?) ki कैसे लालू आउट हाउस की खिड़की से उनके बच्चों को हसरत भरी आँखों से फुटबाल खेलते देखा करता था!
ReplyDeleteबहुत प्रेरक कहानी लिखी है आपने
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक पोस्ट डाक्टर साहब ।
ReplyDeleteप्रेरक प्रसंग डा० साहब, इसे कहते है पोजेटिव सोच !
ReplyDeleteधुन का पक्का निकला वो डॉ सा.! उसने सोचा था की एक दिन वो बड़ा आदमी बनेगा! और वो बन गया--इंसान में सकारात्मक सोच का होना जरूरी हे - लाजबाब पोस्ट! धन्यवाद |
ReplyDeleteप्रेरक लघु कथा ...
ReplyDeleteबहुत प्रेरक प्रसंग है। आत्मविश्वास और हौसले साथ साथ चलें तो क्या नही हो सकता। धन्यवाद।
ReplyDeleteसहमत. एकदम सहमत. .
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आत्म-विशवास और कर्मठता ही सफलता की कुजी है-यही सन्देश इससे मिलता है.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इस सार्थक पोस्ट के लिए !
ReplyDeleteहममें से अधिकांश को चाहे ऐसे दिन न देखने पड़े हों,पर विपरीत परिस्थितियों से तो गुज़रना पड़ा ही है। अच्छा लगता है,अपने सपनों को साकार होते देखना। उससे भी अधिक संतोष देता है-प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजर रहे लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रही यह लघुकथा!
ReplyDeleteप्रेरक कथा ..पढकर अलग ही जोश का सा अहसास होता है.
ReplyDeleteबात तो सही है...
ReplyDeleteजब आत्मविशवास हो ओर अपने ऊपर भरोसा हो तो हम सब कुछ कर सकते हे, बहुत सुंदर लगी आप की यह लघू कथा, धन्यवाद
ReplyDeleteबिल्कुल, खुद पर विश्वास और सही दिशा में की गई मेहनत व्यक्ति को उसकी मंजिल तक पहुंचा ही देता है |
ReplyDeleteमन मे हो विश्वास, हम होंगे कामयाब, एक दिन....।
ReplyDeleteकुछ ऐसी ही सुखद अनुभूति प्रदान करती प्रेरक लघुकथा।
अत्यंत प्रेरक, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
यह सत्यकथा जैसी है। ऐसा हमारे देखने भी आया कि एक क्लर्क का बेटा आई ए एस बन गया और हमारी संस्था में हमारी मतहती करने वाले कमीशन रैंक लेकर हमारे अधिकारी बन गए।
ReplyDeleteसही कह रहें हैं .
ReplyDeleteसोच और संकल्प का जादू.
ReplyDeleteसही सोच ,मेहनत और किस्मत का समन्वय = सफलता
ReplyDeleteमन में हो विश्वास तो होंगे कामयाब ..एक दिन !
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक प्रसंग.
ReplyDeleteढेरों सलाम.
मेरे ब्लॉग पर आप का आना मेरा सौभाग्य है.
हीरजी तो ज़र्रे को आफताब बना देतीं हैं
सही है मन में हो विश्वास तो पूरा हो विश्वास .... आभार
ReplyDeleteसकारात्मक सोच लिए...बहुत ही प्रेरक कहानी
ReplyDeleteहमारे देश में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनमे टेलेंट छुपी है । लेकिन उचित अवसर न मिल पाने के कारण गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं । यदि उन्हें भी अवसर मिले तो वे भी आगे बढ़ सकते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन ऐसा कोई किस्मत वाला ही होता है ।
प्रेरक प्रसंग. मन में विशवास हो तो कुछ भी सम्भव है.
ReplyDeleteजमशेद जी टाटा को भी अंग्रेज़ों ने कभी होटल में जाने से रोका था...
ReplyDeleteउन्होंने एक कसम खाई...
नतीजे में मुंबई का ताज होटल बना...जहां अंग्रेज़ आज आकर ठहरना अपनी शान समझते हैं...
जय हिंद...
अच्छी बात बताई....
ReplyDelete______________________________
'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !
डॉ साहब .. आपने बहुत अच्छी कहानी सुनाई... अभी अभी मैंने आपकी दो कहानिया पढ़ी.. बहुत ही सटीक... और नोट तो उम्दा ... तरीका जुदा.. सादर
ReplyDelete@ खुशदीप जी
ReplyDeleteअंग्रेज का वश चलता तो यहाँ से जाते ही नहीं! वो आये भी इस लिए थे कि भारत में वैदिक काल का अंत बहुत पहले हो चुका था (जब यूरोप में जंगली बसते थे) और 'हिन्दू' शक्तिहीन हो गए थे (काल के प्रभाव से, अंधेर युग अथवा घोर कलियुग में प्रवेश कर जब विष का चहुँ ओर व्याप्त होना निश्चय है,,,और आज तो धरा पर गंगा भी मैली हो गयी प्रतीत होती है, और आम आदमी का मन भी?)...किन्तु 'सोने की चिड़िया', जिसने सदियों से 'विदेशियों' को अपनी ओर खींचा है और अपना भी लिया, अभी भी सोना उगलने की क्षमता रखती है, इसका विश्वास और इंतजार है सभी को... क्या काल-चक्र सतयुग को लौटा के लाएगा? या फिर अब ब्रह्मा की रात के आरंभ होने की सम्भावना है, जैसे अनुमान लगाये जा रहे हैं?...
मन में प्रेरणा के बीज से बो गये विचार आपके।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
डाक्टर साहेब । हाजिर हूं स्पष्टीकरण के साथ ।
ReplyDeleteलेख अच्छा लगा एक लडका जो भृत्य का था और पडौसियों के काम किया करता था आज जिले का कलेक्टर बना बैठा है पिछली बातों को कम से कम याद तो कर रहा है।स्वभावतः लोगों का भला ही करेगा।आपका प्रेरक प्रसंग संदेश देता है कि अपनी गरीबी के वक्त को कभी भूलना नहीं चाहिये
यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं
ReplyDeleteबिलकुल नहीं है ... सच कहा मन में पक्का विश्वाल होना चाहिए ....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्या बात है दराल जी ....!!
ReplyDeleteयूँ लग रहा है सारी पोस्टें मेरे लिए ही लिखी जा रही हैं .....
):):
जी अभी एक और है ।
ReplyDeleteलेकिन उसके बाद ट्रेक बदल देंगे ।
वैसे अभी क्षणिकाएं भी तो लिखनी हैं ।
इस लघु कथा को पसंद करने के लिए आप सब का आभार ।
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