लेकिन हम जैसे एक कामकाजी व्यक्ति के साथ बिल्कुल उल्टा होता है । यानि नाश्ता भागते भागते जो मिला, खाया और निकल पड़े । फिर लंच में वही दो रोटी , थोड़ी सी सब्जी और दाल या दही, बस हो गया लंच । सिर्फ रात का खाना ही होता है जो सब मिलकर शांति के साथ बैठकर इत्मिनान से खाते हैं , इसलिए अक्सर ज्यादा ही हो जाता है ।
खाने में हमें कितनी ऊर्ज़ा चाहिए , यह हमारे काम पर निर्भर करता है । एक मजदूर को ऑफिस में काम करने वाले बाबू से ज्यादा केल्रिज चाहिए । इसी तरह एक युवा को बुजुर्गों की अपेक्षा ज्यादा ऊर्ज़ा चाहिए । खाने में ऊर्ज़ा भले ही काम के हिसाब से चाहिए , लेकिन एक बात निश्चित है कि खाना न सिर्फ संतुलित हो बल्कि उसमे वो सब तत्त्व भी हों जो शरीर के लिए आवश्यक हैं । तभी शरीर निरोग रह सकता है ।
अक्सर अपना नाश्ता तो बस दो सूखे टोस्ट और एक ग्लास दूध होता है क्योंकि खाने में सबसे आसान और कम समय इसी में लगता है । जल्दी हो तो ब्रेड पीसिज को बिना सेके ही खा लेते हैं जिससे खाने में और भी कम समय लगता है । लेकिन यह ध्यान रखते हैं कि ब्रेड कौन सी लायी जाए ।
आइये देखते हैं ब्रेड कितने प्रकार की होती हैं :
१) वाईट ब्रेड
२) ब्राउन / आटा / स्टोन ग्राउंड ब्रेड
३) मल्टीग्रेन ब्रेड
पहली दो प्रकार की ब्रेड में मुख्यतय: कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , फैट , कैल्सियम , आयरन , सोडियम और पोटासियम लगभग बराबर मात्रा में होती हैं ।
इसे बनाने के लिए गेहूं का आटा , सुगर , यीस्ट , नमक , खाद्य तेल और सोया आटा इस्तेमाल किया जाता है तथा साथ में प्रिजर्वेटिव्स , इमलसीफाइर्स और एसिडिटी रेगुलेटर मिलाये जाते हैं ।
वाईट और ब्राउन ब्रेड में मुख्य अंतर फाइबर का होता है जो ब्राउन ब्रेड में ३% होता है जबकि वाईट ब्रेड में न के बराबर । इनके मूल्य में भी बस एक रूपये का ही अंतर है ।
मल्टीग्रेन ब्रेड में प्रोटीन , फैट , कैल्सियम और पोटासियम इन दोनों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं । लेकिन सबसे ज्यादा अंतर होता है , फाइबर कंटेंट में जो इसमें ९.५ % होता है । इस ब्रेड को बनाने के लिए साबुत गेहूं , चना , ज़वार, सोया , दालें , ओट , सनफ्लावर सीड्स और सीसेम सीड्स तथा नेचुरल फाइबर का इस्तेमाल किया जाता है ।
पहली दो तरह की ब्रेड में केल्रिज की मात्रा लगभग एक जैसी होती हैं ( २२७ / २३७ केल्रिज / १०० ग्राम ) ।
जबकि मल्टीग्रेन ब्रेड में २८२ केल्रिज / १०० ग्राम होती है । देखा जाए तो मल्टीग्रेन ब्रेड सबसे उपयुक्त ब्रेड है स्वास्थ्य के लिए । लेकिन इसका मूल्य ( ३५ रूपये ) ज्यादा होने से सबके लिए संभव नहीं कि रोज यही ब्रेड खाई जाए । फिर भी जहाँ तक हो सके वाईट ब्रेड से बचना चाहिए और ब्राउन ब्रेड का इस्तेमाल करना चाहिए ।
फाइबर :
आम तौर पर फाइबर अनाज़ के दानों की बाहरी परत में होता है । बारीक पिसा आटा जिसे छान लिया जाता है , उसमे से सारा फाइबर निकल जाता है । मैदा में यह न के बराबर होता है । इसलिए खाने में मोटा पिसा आटा ही इस्तेमाल करना चाहिए ।
फाइबर हमारी आँतों में एब्जोर्ब नहीं होता । इसलिए कब्ज़ होने से बचाता है । कब्ज़ होने से तरह तरह के रोग हो सकते हैं जिनमे कैंसर सबसे खतरनाक रोग है । इसलिए भोजन में फाइबर का होना अत्यंत आवश्यक है ।
गेहूं और चावल : हमारे देश में यही दो अनाज़ सबसे ज्यादा खाए जाते हैं । इन दोनों में केल्रिज की मात्रा लगभग एक जैसी होती है ( ३६० / ३६५ केल्रिज / १०० ग्राम ) ।
लेकिन गेहूं में प्रोटीन , फैट और फाइबर चावल की अपेक्षा ज्यादा होते हैं । जबकि चावल में कार्बोहाइड्रेट ( ८० % ) ज्यादा होता है ।
लेकिन सबसे ज्यादा प्रोटीन दालों में होता है ( २०-२४ % )। सोया में यह सबसे ज्यादा - ४३% होता है ।
इसेंसियल एमिनो एसिड्स :
प्रोटीन की मूल इकाई है एमिनो एसिड्स । हमारे भोजन में ११ एमिनो एसिड्स को इसेंसियल ( अनिवार्य ) माना जाता है ।
चावल और गेहूं में लाइसिन नहीं होता, लेकिन मिथिओनिन होता है ।
जबकि दालों में मिथिओनिन नहीं होता परन्तु लाइसिन होता है ।
इसलिए जब हम दाल चावल या दाल रोटी खाते हैं , तब इसेंसियल एमिनो एसिड्स की मात्रा पूरी हो जाती है ।
इसीलिए उत्तर भारत में दाल रोटी और दक्षिण भारत में दाल चावल मिलाकर खाया जाता है । इसी से शाकाहारी लोग भी कुपोषण से बचे रहते हैं ।
यह अलग बात है कि देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को यह भी नसीब नहीं होता । इसलिए कुपोषण और भुखमरी से ग्रस्त रहते हैं ।
अब एक सवाल : रोटी को इंग्लिश में ब्रेड कहते हैं , फिर ब्रेड को हिंदी में डबल रोटी क्यों कहते हैं ?
नोट : अगली पोस्ट में ब्रेड से --आम के आम और गुठलियों के दाम ।