ये बात हमें अभी तक समझ में नहीं आई ,
कि ६० तो क्या, ६५ की उम्र भी जल्दी कैसे चली आई।
अब हम क्या बताएं आखिर ये किसकी गलती है,
भई सरकारी काग़ज़ों में तो उम्र भी नकली ही चलती है।
इंसान की असलियत भी चेहरे से कहां झलकती है ,
यह तो इंसान के कागज देखकर ही पता चलती है।
गाड़ी के कागज़ ना हों तो पुलिसवाला भी तन जाता है,
और ख़ामख़्वाह एक शरीफ इंसान मुज़रिम बन जाता है।
लाख समझाते हैं बैंक मैनेजर को, पर वो नहीं पहचानता है,
हम जिन्दा हैं , वो यह हमारे कागज देखकर ही मानता है।
कागज़ की अहमियत तो सरकारें भी समझती है ,
तभी तो आधी सरकारी योजनाएं कागज़ पर ही चलती हैं।
इन कागज़ों के चक्कर में तो हम भी धकाये गए ,
इसीलिए तो समय आने से पहले ही घर बिठाये गए।
हट्टे कट्टे हो फिर भी बेचारगी का नाटक करते हो,
प्रमाणित बूढ़े हो फिर भी खों खों तक नहीं करते हो।
हाथ पैर काम करते हैं , बाबा दांत भी असली रखते हो,
कब तक निठल्ले घूमोगे, कुछ काम क्यों नही करते हो।
सोचो बेचारे भिखारी भी रोज रोज कितने ताने सहते हैं,
इधर हम रिटायर हुए तो अब यही घरवाले हमसे कहते हैं।
आप तो बिना बात रिटायर हो गए । सब कागजों की गलती ।
ReplyDelete😄😄😄
हा हा हा हा। जी वही तो। :)
Deleteहास्य कहते हुवे सच भी कह गए डॉ साहब आप तो …
ReplyDeleteहर साठे की कहानी है ये …
क्या बात है!आप कहाँ रिटायर हुए हैं ?
ReplyDeleteसरकार ने तो कर ही दिया। :)
Deleteबहुत से लोगों की यही समस्या रही | मेरे ससुर जी ज्यादा उम्र लिखवाने की वजह से दो साल पहले रिटायर हो गये तो पिताजी की उम्र बहुत कम लिखी गयी थी | रोचक रचना |
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