कोरोना से जग ने खुद को बचाना सीख लिया है ,
कलियुग में सात्विक बनकर दिखाना सीख लिया है।
सीख लिया है सबने कम में गुजारा करना ,
भौतिक इच्छाओं को दबाना सीख लिया है।
ना लगे मेले ना मिले किसी से साल भर ,
बुजुर्गों ने एकाकी जीवन बिताना सीख लिया है।
पार्टियां रहीं बंद और बंद सब सैर सपाटा ,
युवाओं ने भी खाना पकाना सीख लिया है।
ना पार्क ना कॉलेज ना सिनेमा हॉल की मस्ती,
आशिकों ने डिजिटल इश्क़ फरमाना सीख लिया है।
शादियां भी होने लगी बिन बैंड बाज़ा बारात के ,
लोगों ने अरमानों पर रोक लगाना सीख लिया है।
हॉल पंडाल पड़े रहे खाली पूरे साल, कवियों ने ,
मुफ्त में ऑनलाइन कविता सुनाना सीख लिया है।
यार दोस्त नाते रिश्तेदार सब रहे साल भर दूर,
इंसान ने खुद का खुद से नाता निभाना सीख लिया है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को "नयन बहुत मतवाले हैं" (चर्चा अंक-3987) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी।
Deleteवाह, बिल्कुल सही लिखा आपने।
ReplyDeleteकोरोना ने तो पूरी ताकत से सब सिख दिया लेकिन इन्सान की फितरत है भूल जाने की ।
ReplyDeleteदेखिए कब तक सुधरा रहता है । सटीक प्रस्तुति
अब इतना सीखा है तो कुछ तो याद रहेगा। :)
Deleteसबसे बड़ी बात कि मनुष्य को संयम का पाठ पढ़ा दिया है,करोना ने.
ReplyDeleteजी सही कहा।
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन
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