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Thursday, June 7, 2018

डर है तो इंसान है , वर्ना हैवान है ...

हम भारतीय अपने देश में जितना चाहे अराजकता फैला लें , लेकिन विदेश जाकर सभ्य इंसानों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।  इसका कारण है वहां नियमों और कानून का सख्ताई से पालन किया जाना। यानि कोई नियम या कानून तोड़ने पर आपको भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है। उस दशा में ना कोई चाचा ( सिफारिश ) काम आता है न ही धन दौलत ( रिश्वत )। इसका साक्षात उदाहरण हमने देखा अपने यूरोप टूर पर। आईये देखते हैं , कैसे :

१. सीट बेल्ट :

यूरोप में बस की सभी सीटों पर बैल्ट लगी होती हैं और हर यात्री को सीट बैल्ट बांध कर रखनी पड़ती है। टूर मैनेजर ने बताया कि हाईवे पर कहीं भी कभी भी अचानक पुलिस सामने आ जाती है और गाड़ी की चेकिंग करती है।  यदि कोई बिना सीट बैल्ट बांधे पकड़ा गया तो जुर्माना सीधे १५० यूरो होता है। ज़ाहिर है , सभी ने तुरंत हिसाब लगा लिया कि १२००० रूपये का जुर्माना ! फिर तो सभी बैठते ही बैल्ट बांध लेते थे।

२. बाथरूम को गीला करना :

यह जानकर आपको अजीब लगेगा कि वहां बाथरूम में ड्रेनेज नहीं होता। नहाने के लिए टब बने होते हैं जिसमे पर्दा या स्क्रीन का पार्टीशन होता है जिससे कि पानी बाहर ना आये। इसलिए यदि वॉशबेसिन में हाथ धोते हुए आपने पानी बिखेर दिया तो उसे निकलने की जगह ही नहीं मिलेगी। मैनेजर ने बताया कि ऐसा होने पर चेक आउट के समय आपसे बड़ी रकम हरज़ाने के रूप में वसूल की जा सकती है।  एक बार एक मेहमान को २०० यूरो (१६००० रूपये) भरने पड़ गए थे। हो सकता है यह बात सिर्फ डराने के लिए कही गई हो, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि सभी बाथरूम का इस तरह ध्यान रखते थे जैसे वो बाथरूम नहीं बल्कि घर का मंदिर हो।

३. समय का पाबंद होना :

पैकेज टूर में यात्रा कार्यक्रम पहले से बना होता है और समय की बड़ी पाबन्दी होती है। इसलिए सभी यात्रियों का समय पर तैयार होना और बस में बैठना आवश्यक होता है।  हमारी मैनेजर बार बार यही ध्यान दिलाती थी कि यदि समय पर नहीं पहुंचे तो बस छोड़कर चली जाएगी , किसी का इंतज़ार नहीं करेगी।  फिर आना खुद टैक्सी पकड़कर।  साथ ही वह बड़ी गंभीरता से अगले गंतव्य का पता और रुट भी बता देती थी। अब यह सुनकर सभी को सोचने पर मज़बूर होना पड़ता था कि अनजान शहर में टैक्सी पकड़कर कैसे पहुंचेंगे।  इसी से सभी ने समय का ध्यान रखा और नियमितता का पालन किया।

उपरोक्त बातें छोटी छोटी सी हैं और हम सब जानते हैं।  लेकिन अपने देश में न तो पालन करने की आवश्यकता मह्सूस करते हैं और न ही किसी का डर होता है।  लेकिन विदेशों में भारी जुर्माने के डर से हम भीगी बिल्ली बन जाते हैं और अनुशासित रूप में व्यवहार करने लगते हैं।  ज़ाहिर है, इंसान डर से ही डरता है।  डर चाहे वो जुर्माने का हो, या सज़ा का। डर नहीं तो इंसान इंसान नहीं रहता। पता नहीं हमारे देश में यह डर कब पैदा होगा और कब हम भी इंसान बनेंगे !  

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-06-2018) को "शिक्षा का अधिकार" (चर्चा अंक-2995) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. काश! कि हमारे नियम क़ानून सख्त और हम भी विदेशों की तरह उनका पालन कर पाते।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सपने हैं ... सपनो का क्या - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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