हमारे देश की सबसे बड़ी और जन्मदाता समस्या है जनसँख्या। १३० + करोड़ की जनसँख्या में जिस तरह निरंतर वृद्धि हो रही है, उससे यह निश्चित लगता है कि अगले ५ वर्षों में हम चीन को पछाड़ कर विश्व के नंबर एक देश हो जायेंगे। लेकिन जिस तरह के हालात हमारे देश में हैं, उससे बढ़ती जनसँख्या अन्य समस्याओं की जन्मदाता बन जाती है। महंगाई , बेरोजगारी , संसाधनों की कमी , प्रदुषण और भ्रष्टाचार इसी की अवैध संतानें हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। हालाँकि निसंदेह देश का विकास सरकार के हाथ में है, लेकिन सिर्फ सरकार को दोष देना सर्वथा अनुचित है। जब तक देश के लोग अपना कर्तव्य नहीं समझेंगे और उसका पालन नहीं करेंगे , तब तक हालात बद से बदतर ही होते जायेंगे।
१. जनसँख्या : १९८० के बाद जनसँख्या वृद्धि दर भले ही २.० से घटकर 1.२ हो गई हो , लेकिन तथ्य बताते हैं कि पिछले ४० सालों में जनसँख्या लगभग दोगुनी हो गई है। २१वीं सदी में लगभग ३० % जनसँख्या बढ़ी है। इतनी स्पीड से कोई देश नहीं बढ़ रहा। ज़ाहिर है, बढ़ती जनसँख्या में गरीबों की संख्या ही ज्यादा बढ़ रही है। आज देश में ८०% लोगों की आय न्यूनतम वेतन के बराबर या उससे भी कम है। भले ही हमारे देश में करोड़पति और अरबपति लोगों की संख्या भी बहुत है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से तो हम नीचे और नीचे ही जा रहे हैं।
२. भ्रष्टाचार : इस मामले में भी हम दूसरे देशों की अपेक्षा काफी आगे हैं। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर नीचे तक व्याप्त है। निजी संस्थानों और उपक्रमों में भी पैसा कमाना ही उद्देश्य रह गया है। नेता हों या ब्यूरोक्रेसी , अफसर हो या चपरासी , सभी अपना दांव लगाते रहते हैं। कोई भी विभाग भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। सरकारी नौकरी हो या कोई हो , पैसा या सिफारिश लगाकर काम कराना लोगों की आदत सी बन गई है।
३. कर चोरी : किसी भी देश या राज्य में अनंत काल से राजा या सरकारें जनता के लिए कार्य करने हेतु जनता से कर वसूलते आये हैं। यदि कर की राशि जनहित में खर्च की जाये तो इसमें कोई बुराई भी नहीं, बल्कि एक आवश्यक प्रक्रिया है। लेकिन हमारे देश में कर की चोरी करना एक आम बात है। ऐसा लगता है कि सरकारी नौकरों को छोड़कर जिनका कर श्रोत पर ही काट लिया जाता है , कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से कर नहीं चुकाता। भले ही आयकर हो या बिक्री कर या फिर संपत्ति कर , कर चोरी एक आम बात है। बिना कर चुकाए सरकार से विकास की उम्मीद रखना भी एक बेमानी है। यहाँ सरकार का भी कर्तव्य है कि जनता से लिया गया कर देश के कार्यों में इस्तेमाल किया जाये न कि नेताओं और बाबुओं की जेब भरने के काम आये।
४. नैतिकता : किसी भी देश में पूर्ण विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक उस देश के नागरिक नैतिक रूप से सशक्त ना हों। अक्सर हम बहुत सी समस्याओं को सरकार के भरोसे छोड़ देते हैं। जब तक सरकारी काम को भी हम अपना काम समझकर नहीं करेंगे, तब तक विकास में बढ़ाएं उत्पन्न होती रहेंगी।
५. अनुशासन : आज हमारे देश में अनुशासन की सबसे ज्यादा कमी है। घर हो या बाहर , सडकों पर , दफ्तरों में और अन्य सार्वजानिक स्थानों पर हमारा व्यवहार अत्यंत खेदपूर्ण रहता है। सडकों पर थूकना , कहीं भी पान की पिचकारी मारना , खुले में पेशाब करना , गंदगी फैलाना , यातायात के नियमों का पालन न करना आदि ऐसे कार्य हैं जो हमें सम्पन्न होते हुए भी अविकसित देश की श्रेणी की ओर धका रहे हैं।
६. अपराध : जनसँख्या अत्यधिक होने से अपराध भी बढ़ते हैं। लेकिन इसमें ज्यादा दोष है न्यायिक प्रणाली में ढील होना। इंसान डर से ही डरता है। डर सजा का या फिर जुर्माने का। यदि डर ही न हो तो कोई भी इंसान बेईमान और हैवान बन सकता है। विदेशों में कानून का सख्ताई से पालन किया जाता है। इसलिए वहां कानून का उल्लंघन करने वालों की संख्या कम रहती है। लेकिन यहाँ चोरी , डकैती , लूटपाट , हत्या , बलात्कार और अपहरण जैसी वारदातें करते हुए अपराधी लोग ज़रा भी नहीं डरते। जांच पड़ताल में खामियां और न्याय में देरी से बहुत से अपराधी साफ बरी हो जाते हैं जिससे अपराधियों का हौंसला और बढ़ जाता है।
ज़ाहिर है, यदि हमें अपने देश को विकास की राह पर अग्रसर रखना है तो हमें सरकार पर पूर्णतया निर्भर न रहते हुए अपने फ़र्ज़ का पालन करते हुए विकास में अपना योगदान देना होगा। तभी हमारा देश विकास की रह पर आगे बढ़ सकता है। वर्ना अमीर और अमीर होते जायेंगे और गरीब बहुत गरीब। यह बिगड़ती हुई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था कभी भी विनाश की जड़ बन सकती है।