युवावस्था मे , विशेषकर कॉलेज के दिनों मे, मूँह मे सिगरेट लगाना मित्रों के संग एक शौक के रूप मे आरंभ होता है ! लेकिन जल्दी ही यह शौक एक लत बन जाता है ! आरंभ के दिनों मे मूँह मे धुआँ भरकर उड़ाना अच्छा लगता है लेकिन जल्दी ही समझ मे आ जाता है या मित्रों द्वारा समझा दिया जाता है कि सिगरेट पीने का सही तरीका क्या है ! यानि धुआँ मूँह मे भरकर गहरी सांस लेते हुए धुएं को फेफड़ों मे भरना पड़ता है ! धीरे धीरे निकोटीन अपना प्रभाव दिखाने लगती है और एक और मासूम युवक धूम्रपान की लत का शिकार हो जाता है !
हमारे फेफड़ों मे जाने वाले धुएं मे मौजूद कार्बन के कण फेफड़ों की कोशिकाओं मे जमकर अपना घर बना लेते हैं ! यदि वर्षों तक धूम्रपान किया जाता रहा तो काफी मात्रा मे कार्बन जमा होकर फेफड़ों को गला देता है जिससे हमारी सांस लेने की प्रक्रिया मे बाधा उत्पन्न होने लगती है ! यह क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस , ब्रोंकिओकटेसिस , दमा , टी बी और कैंसर जैसे भयंकर रोगों को जन्म देती है ! अन्तत: फेफड़े इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि एक एक सांस लेने के लिये भी दम लगाना पड़ता है ! सिगरेट के धुएं मे मौजूद निकोटिन ना सिर्फ लत लगाकर मज़बूर कर देती है बल्कि हमारे शरीर की कई प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती है जैसे ब्ल्ड प्रेशर और हृदय गति का बढ़ना जिससे धीरे धीरे हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है !
वर्षों पहले दिल्ली के आई टी ओ चौराहे पर लाल बत्ती पर स्कूटर पर इंतज़ार करते हुए हमने देखा कि वहां बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण था ! उस समय दिल्ली मे वायु प्रदूषण अपने जोरों पर था ! धुआँ इतना ज्यादा था कि सांस लेने मे भी कड़वाहट महसूस हो रही थी ! तभी साथ मे खड़े हुए एक और स्कूटर वाले ने सिगरेट निकाली और सुलगाकर आराम से कश लगाने लगा ! यह देखकर हमे अचानक यह महसूस हुआ कि हम तो धुएं से पहले ही परेशान हैं और यह शख्श सिगरेट पिये जा रहा है ! क्या बाहर धुएं की कमी है जो और धुआँ फेफड़ों मे भर रहा है !
यह विचार आते ही हमारे ज्ञान चक्षु खुल गए , हमे दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और हमे ऐसी विरक्ति हुई कि उसके बाद हमने कभी सिगरेट को हाथ नहीं लगाया !
धूम्रपान से ऐसे ही एक झटके मे निज़ात पाई जा सकती है ! बस द्रढ निश्चय और पक्का इरादा चाहिये ! वर्ना एक बहुत बड़े मेडिसिन के प्रोफ़ेसर ने कहा था : इट'स वेरी ईज़ी तो स्टॉप स्मोकिंग , एंड आइ हॅव डन इट सो मेनी टाइम्स !
अपने ने काफी पहले ी शुरु कर दिया था..पहली बार तब छोड़ी थी जब कालेज की उमरिया में पहुंचे...फिर हमने कुछ कुछ महीने छोड़ी...फिर 2003 से 2011 तक..फिर अब झह महीने पहले त्यागा है...कुछ लिखेंगे तब जब तलब मरे जाएगी...
ReplyDeleteबस एक झटका और दो , हमेशा के लिये छोड़ दो ...
Deleteकड़ा निश्चय और पक्का इरादा कुछ भी करवा सकता है ... फिर धूम्रपान तो क्या चीज़ है ....
ReplyDeleteहमने तो अभी तक इसकी शुरुआत ही नहीं करी और जो करते हैं उनको ये बताता रहता हूँ की य कितनी बुरी लत है ...
नासवा जी , अच्छी बात है . अब तो आप सुरक्षित ज़ोन मे हैं ....
Deleteठान लिया जाये तो क्या असंभव है....
ReplyDeleteवाह...उपयोगी आलेख।
ReplyDeleteबुरी लत छूटती है तो ऐसे ही एक झटके में !
ReplyDeleteअच्छा किया छोड़ दी !
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Deleteआपको देखकर लगता नहीं की--आप कभी स्मोकिंग करते थे।
ReplyDeleteखैर, मैं भी धूम्रपान के खिलाफ हूँ और इस पर रोक चाहता हूँ।
धन्यवाद।
चन्द्र कुमार सोनी,
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