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Saturday, August 23, 2014

काश कि वक्त ठहर जाता ---एक संस्मरण मीठी यादों का !


वो बहुत खूबसूरत थी।  बहुत ही खूबसूरत थी।  बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी। १७ साल की उम्र में कम से कम हमें तो यही लगता था। शायद रही भी होगी।  तभी तो उसके चर्चे दूर दूर तक के कॉलेजों में फैले थे । अक्सर दूसरे कॉलेजों के छात्र शाम को कॉलेज की छुट्टी के समय गेट पर लाइन लगाकर खड़े होते, उसकी एक झलक पाने के लिये  !  हल्का गोरा रंग , बड़ी बड़ी मासूम सी काली आँखें , लम्बी सुन्दर नाक , मखमल से कोमल गाल , औसत हाइट और वेट ! कुल मिलाकर सुन्दरता की प्रतिमूर्ति ! नाक की बाइं ओर यौवन की निशानी के रूप मे किसी पुराने छोटे से मुहांसे का छोटा सा स्कार , जिसे वो बायें हाथ के अंगूठे से जब होले होले सहलाती तो लगता जैसे कोई दस्तकार हीरे को चमका रहा हो ! निश्चित ही उपर वाले ने उसे कदाचित किसी फुर्सत के क्षणों मे ही बनाया होगा ! 

हमारी सरकारी आवासीय कोलोनी और उसकी पॉश कोलोनी दोनों साथ साथ होने की वज़ह से कॉलेज से वापसी अक्सर साथ ही होती ! खचाखच भरी बस मे क्लास के कई लड़के लड़कियाँ आस पास ही खड़े होते ! लेकिन बाहरी मनचलों का आतंक इस कद्र होता कि इज़्ज़त बचानी मुश्किल हो जाती ! ऐसे मे हम यथासम्भव प्रयास करते साथ की लड़कियों को गुंडों से बचाने की ! अक्सर सफल रहते लेकिन कभी कभी असामाजिक तत्व  भारी भी पड़ जाते ! उन दिनों बसों मे छेडखानी आम बात होती थी !  बस का कंडकटर भी गेट मे फंस कर खड़ा रहता ! कुल मिलाकर बसों मे मुश्किल दिन होते थे ! 

पूरे एक साल हम साथ रहे , पढे , आये गए ! लेकिन इसके बावज़ूद आपस मे कभी बात नहीं हुई ! होती भी कैसे , उस समय लड़के लड़की एक ही क्लास मे पढते हुए भी आपस मे बात नहीं करते थे ! वैसे भी वह हम सबका प्री मेडिकल का एक साल का कोर्स था ! सभी अपना करियर बनाने के लिये दिन रात मेहनत मे लगे रहते !  आखिर एक साल पूरा हुआ और लगभग सभी का मेडिकल कॉलेज मे एडमिशन हो गया ! लेकिन हम लड़कों के कॉलेज मे और वो गर्ल्स कॉलेज मे चली गई ! अगले पाँच साल तक उसके दर्शन तभी हुए जब कभी सब कोलेजों की सामूहिक हड़ताल होती थी !  ऐसा नहीं था कि हमारा कोई किसी किस्म का नाता था , लेकिन कभी कभार उसकी खूबसूरती याद आ जाती तो अनायास ही मन को गुदगुदा जाती !   

वो आखिरी दिन था जब हमने उसे आखिरी बार देखा था ! सुबह के दस बजे थे ! कोलोनी के पास वाली मार्केट मे हमने अपनी बुलेट मोटरसाईकल पार्क की ! स्टेंड पर खड़ा कर ताला लगाकर जैसे ही हम चलने को तैयार हुए तो बिल्कुल साथ खड़ी हरे रंग की फिएट कार मे दुल्हन के लिबास मे  बैठी लड़की पर नज़र पड़ी तो हम चौंक गए ! अरे वही तो थी , दुल्हन के भेष मे , सोलह श्रृंगार किए ! वही गज़ब की खूबसूरती ! लेकिन हमारे पास भी ज्यादा सोचने का वक्त ही कहाँ था ! हम भी तो मार्केट के खुलने का इंतज़ार ही कर रहे थे ! और मार्केट मे दुकाने खुल चुकी थी ! बिना ज्यादा सोचे , हम यन्त्रवत से चल दिये साडियों की एक दुकान की ओर जहाँ से हमे एक साड़ी उठानी थी जिसे मां पसंद कर के गई थी ! आखिर ११ बजे मां पिताजी को लड़की वालों के घर पहुंचना था , अपनी होने वाली डॉक्टर बहु के रोकने की रस्म पूरी करने के लिये !  

आज उस लम्हे को गुजरे हुए तीस वर्ष बीत चुके हैं ! कुछ समय पहले संयोगवश उस की एक सहेली और सहपाठी से मुलाकात हुई तो पता चला कि वो शादी करके अमेरिका चली गई थी ! ज़ाहिर है , वो वहीं सेटल हो गई होगी ! लेकिन कभी कभी जब यूं ही उसकी खूबसूरती की याद चली आती है तो सोचता हूँ कि : 

जाने कहाँ होगी ,
वो कैसी होगी ?
क्या वैसी ही होगी !   
या वक्त के बेरहम हाथों ने ,
खींच दी होंगी , 
उस खूबसूरत चेहरे पर , 
आड़ी टेढ़ी तिरछी सैंकड़ों लकीरें !  
काश कि वक्त ठहर जाता ! 


25 comments:

  1. अक्सर ऐसी यादें मीठी सी कसक दे जाते हैं.जिसका अपना ही मजा है..ङम तो खैर...चलिए फिर कभी...चलिए छोडिए भी आप जाने क्या क्या याद दिला देते हैं..जीवन..मौत....यादें..कसक...झिड़कियां...कुछ छुटा...कुछ पाया..सबकुछ ..

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    1. कई बार यादें भी दिल को सकून पहुंचाती हैं !

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  2. जब हम जवां होंगे,जाने कहाँ होंगे
    लेकिन जहाँ होंगे तुम्हे फरियाद करेंगे
    तुम्हे याद करेंगे..
    ओर अचानक चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ जाती है,
    पास बैठी पत्नी पूछ ही बैठती है| क्यों मुस्कुरा रहे थे...
    बस यु ही कुच्छ याद आ गया..
    बताओ ना !,बताओ ना !

    प्रेम प्रसंग का सुन्दर प्रस्तुतीकरण,

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  3. आपने भी पूरी ख़बर रखी - पर वक्त कहाँ ठहरता है किसी के लिए !

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  4. सुंदर प्रस्तुति

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  5. वक्त कहाँ ठहरता है किसी के लिए !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  6. मन में गहरी पैठ बनाई यादें दिल से कभी नहीं जाती .. .. आपकी पोस्ट पढ़कर जरूर पता लग जाएगा.. सहेली और सहपाठी से मुलाकात हुए तो उनसे भी होगी तो फिर एक सुन्दर संस्मरण ...बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी ख़्वाबों में ही हो चाहे मुलाक़ात तो होगी ....की तरह ...
    अति सुन्दर ...

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    1. बहुत से लोग जिन्दगी मे दोबारा कभी नहीं मिलते ! बस रह जाती हैं तो यादें ....

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  7. डाक्टर साहब, ये तो जलाने वाली पोस्ट है। घर में कुछ बरनॉल वगैरा है कि नहीं? न हो तो साथ लेते जाइएगा।

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  8. कुछ लोग ऐसी मधुर स्मृतियों में रहते हैं , बिना किसी रिश्ते, बिना मित्रता के भी !
    खूबसूरत संस्मरण !

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  9. आग लगा रहे हो दिल में !

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  10. द्विवेदी जी , सतीश जी --- यह ब्लॉगिंग के प्रति जिगर मे आग जलाने की कोशिश है ! शायद फिर बीड़ी सुलगा सकें ....

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  11. बहुत बढ़िया...संस्मरण की मीठी यादें

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  12. खूबसूरत संस्मरण ................बहुत बढ़िया...

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  13. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    दिल तो है दिल दिल का ऐतबार क्या कीजे।।।।

    उस उम्र में हर किसी का दिल धड़कता है हुजूर ये और बात है कुछ कही रहती है और कुछ जीवन भर अनकही।।।

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  14. हाय .... सबसे पहले यही निकला मुंह से :)
    कितना प्यारा संस्मरण है. सच कुछ लोग स्मृतियों में रहने के लिए ही आते हैं.

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    1. यू मीन , इक आह सी निकलती है, जब वो याद आती है .... :)

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  15. फेसबुक का जमाना है, खोज लीजिए।

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    1. जी , समय के साथ चेहरे ही नहीं , नाम भी बदल जाते हैं ! :)

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  16. वैसे अजित जी सही कह रही हैं1

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  17. उफ़ ... उफ़ ... उफ़ ... कितनी यादों को झंझोड़ दिया आपने ... कईयों की ताड़ दिला दी आपने ...
    काश ये लेख पहले पढ़ा होता अभी अभी अमेरिका से ही वापस आया हूँ ... आपको ताज़ा समाचार दे देता ...
    जो ही हो ... ऐसे अनेक ख्यालात मन को महका जाते हैं कभी कभी .. ख्यालात जगाने का शुक्रिया ...

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    1. हा हा हा ! ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती जायेगी , ये यादें और भी सताएंगी ! लेकिन मन को गुदगुदायेंगी ....

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  18. बढ़िया...संस्मरण की मीठी यादें

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