घूमने का शौक तो हमे कॉलेज के दिनों से ही रहा है ! लेकिन पहाडों से विशेष लगाव रहा है ! १९९० मे जब पहली बार कार हाथ मे आई तो उसके बाद शिमला , मसूरी , नैनीताल तथा उत्तर भारत अन्य के पहाड़ी स्थलों पर कार द्वारा ही जाना हुआ ! लेकिन दिल्ली से मनाली लगभग ६५० किलोमीटर दूर है ! पहली बार यहाँ १९९० मे जाना हुआ था ! तब ना कार थी ना वोल्वो बसें लेकिन डीलक्स बसें सुबह ६ बजे चलकर रात १० बजे मनाली पहुंचती थी ! हमने भी दो सीटें बुक कराई और पहुंच गए मनाली रात के दस बजे ! लेकिन जून का महीना था और हमने होटल की बुकिंग भी नहीं कराई थी ! बस से उतरकर सामान एक जगह रखा और इधर उधर देखा लेकिन सिवाय अंधकार के कुछ और नज़र नहीं आया ! तभी बस की सवारियों मे से एक हमउम्र दंपत्ती हमारे पास आये और अपना परिचय देते हुए कहा कि चलिये मिलकर कमरा ढूंढते हैं ! हम भी पहली बार मनाली आए थे और इसके बारे मे कुछ भी पता नहीं था ! हमने महिलाओं को सामान के पास छोड़ा और पुरुष चल दिये होटल्स की ओर ! लेकिन दो तीन होटल देखने के बाद ही अहसास हो गया कि उस वक्त कोई कमरा नहीं मिलने वाला था क्योंकि सीजन होने के कारण सभी होटल्स फुल थे ! हारकर हम वापस आ गए और बताया कि कोई कमरा उपलब्ध नहीं है ! अभी हम निराश से खड़े थे कि तभी एक व्यक्ति हमारे पास आया और बोला कि उसके घर पर दो कमरे खाली हैं , चाहें तो हम वहां ठहर सकते हैं ! अब यह तो हमारे लिये एक असमंजस की बात हो गई कि कैसे एक अज़नबी पर विश्वास करें ! उसने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं , उसके पास टैक्सी है और वो हमे ले जायेगा ! हमने भी विचार विमर्श किया और सोचा कि घबराने की क्या बात है , आखिर हम पांच लोग थे ! अन्तत: हमने उसके साथ जाने का निर्णय लिया और रात बिताने के लिये दो साधारण से कमरे मिल ही गए ! सुबह होने पर हम निकल पड़े कमरों की तलाश मे और १० बजे चेकआऊट के समय आखिर कमरे मिल ही गए !
बाद मे हमे पता चला कि उस दिन कई लोगों को रात फुटपाथ पर बैठकर ही बितानी पड़ी ! खुले मे रात बिताने वालों मे एक नवविवाहित जोड़ा भी शामिल था ! उधर हमारे नए बने मित्र ने बताया कि वो तो अक्सर ऐसा करते हैं कि जब भी किसी नई जगह जाते हैं तो सबसे पहले किसी दंपत्ती को मित्र बना लेते हैं ! इस तरह अज़नबी जगह भी साथ मिल जाता है !
मनाली अगली बार १९९९ मे जाना हुआ ! लेकिन तब हमारा प्रोग्राम बना अपनी मारुति कार द्वारा जाने का ! लेकिन इतना लम्बा सफर हमने एक दिन मे कभी नहीं किया था ! इसलिये जाते समय हम रास्ते मे पड़ने वाले मॅंडी शहर मे रुक गए ! इस तरह हम बिना थके आराम से अगले दिन मनाली पहुंच गए जहां हमारा ठहरने का इंतज़ाम था स्टर्लिंग रिजॉर्ट्स मे जिसके ठीक पीछे श्री अटल बिहारी बाजपेई जी का बंगला था ! इत्तेफाक़ से उसी समय उनका भी आने का कार्यक्रम था , इसलिये सारे रिजॉर्ट मे सुरक्षाकर्मी फैले हुए थे ! लेकिन तभी पता चला कि पाकिस्तान ने कारगिल पर आक्रमण कर दिया था और बाजपेयी जी का आना केन्सिल हो गया ! लेकिन हमने अपनी मारुति उठाई और १४००० मीटर ऊंचे रोह्ताँग पास पहुंच गए ! हमारे लिये यह सबसे ज्यादा ऊँचाई पर ड्राईव करने का पहला अनुभव था ! हालांकि नीचे आते समय लहराती बल खाती नई बनी सड़क पर ड्राईव कर के आनंद आ गया !
सन २००६ मे एक बार फिर मनाली जाने का प्रोग्राम बना ! लेकिन इस बार हमने साहस का परिचय देते हुए तय किया कि हम एक ही दिन मे पूरा सफर तय करेंगे ! क्योंकि हम गाड़ी ज्यादा तेज कभी नहीं चलाते , इसलिये अनुमान था कि १५-१६ घंटे अवश्य लग जायेंगे ! इसलिये हम मूँह अंधेरे सवा चार बजे घर से रवाना हो गए ताकि पौ फटने तक हम हाईवे पर पहुंच जाएं ! आराम से ड्राईव करते हुए हम करीब पौने पांच बजे आज़ाद पुर मोड से होकर हाईवे पर पहुंच गए ! अभी हल्का हल्का सा अंधेरा था लेकिन रौशनी होने लगी थी ! हमने भी राम का नाम लिया और राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक पर अपनी टाटा इंडिगो को मोड दिया ! अभी मुश्किल से ५ मिनट ही हुए होंगे कि सामने बायीं ओर एक कट नज़र आया जिसे देख हम थोड़ा स्लो हो गए ! लेकिन तभी हमारे होश उड़ गए ! बायीं स्लिप रोड के तिराहे पर एक भयंकर एक्सीडेंट हो गया था जिसमे हाईवे पर जाती एक कार और स्लिप रोड से आते एक ट्रेक्टर ट्रॉली मे भिड़ंत हो गई थी ! सड़क पर दसियों लाशें बिछी पड़ी थीं ! टक्कर इतनी भयंकर थी कि सब के सब लोगों की मृत्यु ऑन दा स्पॉट हो गई थी ! कुछ ही मिनटों मे वहां लोग इकट्ठा हो गए थे लेकिन सभी हेल्पलेस महसूस कर रहे थे ! इतना भयंकर एक्सीडेंट हमने कभी नहीं देखा था ! सुबह के करीब पांच बजे थे और हमे ६५० किलोमीटर का रास्ता तय करना था ! अब हमारे सामने चलने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं था ! लेकिन उस समय हमारी हालत क्या हुई होगी, इसका अनुमान भी लगाना मुश्किल है ! मौत का तांडव हमसे बस चंद ही मिनट दूर हुआ था ! कार मे जाने वाले यात्री भी हमारे जैसे सैलानी ही रहे होंगे !
लेकिन शायद इसी का नाम जिंदगी है ! यह हर हाल मे चलती रहती है ! और हम इसके पुतले हैं ! हाड़ मांस के पुतले जिनमे जब तक जान है तब तक जीवन रहता है ! कब कहाँ किस मोड पर क्या हो जाये , कोई नहीं जानता ! इसलिये हम तो अक्सर यह मानकर चलते हैं कि हम कुछ भी नहीं , सब कुछ उपर वाले के हाथ मे है ! बस उसे याद रखिये तो वो आपको याद रखेगा ! वह हर पल हर जगह मौजूद होता है ! बस आवश्यकता है , उसे महसूस करने की, उसे याद रखने की , ताकि वो आपकी रक्षा कर सके !
हमारा सफ़र तो आनंददायक रहा , लेकिन आज भी जब वह वाकया याद आता है तो तन मन को विचलित कर जाता है !
हमारा सफ़र तो आनंददायक रहा , लेकिन आज भी जब वह वाकया याद आता है तो तन मन को विचलित कर जाता है !
हम कुछ भी नहीं , सब कुछ उपर वाले के हाथ मे है ! बस उसे याद रखिये तो वो आपको याद रखेगा ! वह हर पल हर जगह मौजूद होता है ! बस आवश्यकता है , उसे महसूस करने की, उसे याद रखने की , ताकि वो आपकी रक्षा कर सके !
ReplyDeleteयही भाव यदि हर कोई मन से स्वीकार कर ले तो श्रद्धा स्वतः जन्म ले लेती है और मानव जीवन सफल हो जाता है
हम सफ़र अब यह सफ़र कट जायेगा,रास्ते में जी ना अब घबराएगा ।
ReplyDeleteबड़ा सुन्दर दृश्यान्त है। परन्तु अकस्मात आई दुर्घटना हृदयविदारक है।
मनाली या पहाड़ो की दृश्यावली मन संतप्त कर देती है। हम-सफ़र साथ
हो तो फिर बात ही कुच्छ ओर होती है। फिर हमारे यह सफ़र,एक दास्ताँ
बन जाते है। कभी कभार याद आते ही ,चित प्रस्सन कर देते है।
वोह भूली दास्ताँ जो फिर याद आ गई।
रोमांचक मगर डरावना सफ़र ... सुरक्षित रहती है स्मृतियों में !
ReplyDeleteकोई तो है जिसके आगे है आदमी मजबूर , हर तरह हर जगह हर कहीं है "उसी" का नूर
ऐसे वाकये हमेशा याद रहते हैं और हम सिहर जाते हैं जब जब ये याद आते हैं...सच है "उस" पर यकी ही हमें जीने की शक्ति देता है...
ReplyDeleteसादर
अनुलता
हम 1995 में सिर्फ एक बार ही मनाली और रोहतांग गए है ,शिमला से कार हॉयर की थी उसी से पहले मनिकरण गए रात वही गुजारी फिर मनाली फिर रोहतांग -- शिमला से चले तो सुबह ही थे पर रस्ते में २ बार कार का टॉयर पंचर हो गया और हमको मनिकरण पहुँचने में रात हो गई ,रात को पहाड़ी रास्ता बहुत ही डरावना लगता है --वो रात जीवन में कभी नहीं भूलूँगी जब अँधेरे में हमारी कार का टॉयर बदला जा रहा था और दूर तक कोई नहीं था ऊपर पहाड़ पर हम स -परिवार खड़े थे और नीचे पार्वती नदी भयानक आवाज़ करती हुई बह रही थी ---पहली बार महसूस हुआ की दिन में जितने दिलकश ये पहाड़ लगते है रात को उतने ही डरावने --हम एक बजे मनिकरण स-कुशल पहुंच गए ---पर वैसी रात जिंदगी में दोबारा नहीं आई क्योकि हम रात होने से पहले ही सुरक्षित अपने होटल पहुँच जाते है --
ReplyDeleteजी हाँ , केदार बद्री के रास्ते मे तो शाम ७ बजे के बाद गाड़ियाँ चलाने की अनुमति ही नहीं होती ! सावधानी हटी , दुर्घटना घटी !
Deleteबहुत बढ़िया संस्मरण
ReplyDeleteसच पहाड़ों का सफर कभी भी आसां नहीं ... कब क्या हो जाय और किसकी जीवन डोर कट जाय पता ही नहीं चलता..... आँखों देखे हादसों के तस्वीर आँखों में कैद हो जाती हैं ...
achcha sansmaran.............
ReplyDeleteपहाड़ों पर मुझे बहुत डर लगता है , खास तौर पर सडको के अगल बगल वाली घाटियों से। जाने की सोचते भी नहीं है। बस एक बार गए फिर मेरी तौबा।
ReplyDeleteजी , शुरू मे हमे भी बहुत डर लगा था ! लेकिन अब तो हम खुद ही ड्राईव करते हैं !
Deleteअपने पांच साल पहले जा रहे थे कुल्लु मनाली....बस की टिकट बुक कराई....बस में चढ़े तो देखा कि अधिकांश नवविवाहित जोड़े हैं..चंद परिवार...लेदेकर हम अकेले छड़े थे वहां...थोड़ी देर तो बैठे रहे...फिर आसपास लोगो को चुहुलबाजी करने में संकोच करते देख बस छोड़ कर वैसे ही घर लौट आए..बस तब से अबतक नहीं जा पाए...पर अब ठान लिया है..बारिश के तुरंत बाद जाएंगे.....हां गोवा के तट पर टहलती हसिनाओं का बुलावा न आ जाए
ReplyDeleteआजकल तो लोग अकेले भी हनीमून पर चले जाते हैं ! :)
Deleteआपकी तब हालत समझी जा सकती है.. कितना मुश्किल रहा होगा बाकि का सफर.
ReplyDeleteसब कुछ उसी के हाथ में हैं ... जो उसके सहारे को मानता और जानता है सुखी रहता है ...
ReplyDeleteआप तीन तीन बार मनाली गए और हर बार कुछ नयी यादें जोड़ के आये ... लाजवाब रोचक और रोमांचित संस्मरण लिखा है आपने ...
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