Monday, January 19, 2009
मोबाईल मैनिया
जैसे जैसे कम्युनिकेशन के साधन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे कम्युनिकेशन ख़ुद घटता जा रहा है। आजकल जब दो दोस्त मिलते हैं तो एक कहता है - भाई कभी आइये। दूसरा दोस्त बोलता है- जी हाँ , आप भी कभी आइये। मैंने देखा है कि अक्सर वो कभी, कभी आता ही नही। और लोग पूछते ही रह जाते हैं कि भाई कब आओगे? हमारे एक जज मित्र हैं । जब भी मिलते हैं ,पूछते हैं भाई कब आओगे? अच्छा नही आओगे , ये लो गाड़ी का चालान , अब आओगे। हमारे मोहल्ले में मोबाईल पहली बार तब आया जब हमारे एक वकील मित्र ने ख़रीदा। अब देखने की बात ये थी कि दो महीने तक वो जनाब मोबाईल को हाथ में झंडे की तरह पकड़ कर रोज सुबह सैर को आते थे। फ़िर धीरे धीरे उनका हाथ थकने लगा तो उन्होंने मोबाईल को बेल्ट में लगाना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ भी हो ३६०००/- का मोबाईल देखकर सभी सकते में आ जाते थे। फ़िर धीरे धीरे उसकी कीमत घटने लगी और मोबाईल कई लोगों के पास दिखने लगे। फ़िर भी उन दिनों मोबाईल रखना बड़े आदर के साथ देखा जाता था। लेकिन जब लोगों ने फ़िल्म मानसून वैडिंग में एक टेंट वाले को मोबाईल इस्तेमाल करते देखा तो लोगों को बड़ी हँसी आई। आज मोबाईल इतना आम हो गया है कि किसी के हाथ में देख कर हँसी नही आ सकती। पर इसका नाम तो है मोबाईल लेकिन समाज को कर दिया है इम्मोबाइल। अब तो लोग चैट भी करते हैं तो बिना मुहँ खोले। इसीका नतीजा है कि समाज में इतना बदलाव आ गया है कि जहाँ पहले शादी का निमन्तरण आता था आपस के मेल से, आजकल आता है पोस्ट ऑफिस या कुरियर की मेल से और एक दिन ऐसा आएगा कि निमंत्रण आएगा अस ऍम अस या ई- मेल से। सचमुच जैसे जैसे कम्युनिकेशन के साधन बढ़ते जा रहे हैं ,वैसे वैसे हम एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। और इसी का परिणाम है --जिदगी में तनाव, परेशानियां, तरह तरह की बीमारियाँ। इस भागती दौडती दुनिया में लोगों के पास समय ही नही है कि वो जिंदगी की छोटी छोटी बातों को एन्जॉय कर सकें। तनाव मुक्त रह सकें। ऐसे में जयजयवनती जैसी काव्य गोष्ठी समान विचारों वाले लोगों को मिलाने का काम करती है। धन्य हैं कविवर अशोक चक्रधर जी जो हर महीने काव्य गोष्ठी करते हैं और सद विचारों का आदान प्रदान करते हैं।
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बहुत सही लिखा है. इस यांत्रिक दुनिया में मेल जोल अब बस यंत्रो के द्वारा ही होता है ! आपस में में मिलना और परिचर्चा करना गुजरे ज़माने की बात हो गई.
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा इस मोबाईल से हम सबको इम्मोबईल कर दिया है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख |मोबाइल पर जितना कहा जाए कम है |हम सच में अब इसके कारण इम्मोबाइल हो गए हैं |
ReplyDeleteआशा
बहुत खूब कहा है आपने ... ।
ReplyDeleteअच्छा लेख.......
ReplyDeleteआज तो मोबाईल कबाड़ी वाले के पास ..कामवाली बाई के पास धोबी के पास ..सब जगह है ..और निमंत्रण भी मेल से मिलने लगे हैं .. सार्थक चिंतन
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