कहने को तो वह अपनी दूर की रिश्तेदार है । वैसे बहुत करीबी रिश्तेदार की करीबी रिश्तेदार है । शायद रिश्तों की केमिस्ट्री ऐसी ही होती है ।
उससे पहली बार १३-१४ साल पहले मिला था । तब वह १७-१८ वर्ष की पतली दुबली , सुन्दर सी , अल्हड नवयौवना थी । शांत स्वाभाव , आयु सुलभ सकुचाहट परन्तु सुव्यवहारिक । नाम तो कुछ और है लेकिन घर में सब उसे स्वीटी कह कर बुलाते हैं अभी भी । कभी कभी प्यार से स्विटू भी कहते हैं ।
पिछले दिनों दोबारा मुलाकात हुई , अलबत्ता प्रतिकूल परिस्थितियों में ।
इस बीच उसने ला की डिग्री हासिल की , शादी हो गई और अब दो प्यारी प्यारी सी छोटी बच्चियों की मां है ।
बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला वह राजस्थान में एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम करती है , रिकवरी डिपार्टमेंट की इंचार्ज के पद पर ।
सुनकर थोड़ी हैरानी हुई । क्योंकि अभी तक तो हमने यह काम हट्टे कट्टे , लम्बे चौड़े , बाउंसर टाईप ज़वानों को ही करते देखा सुना है ।
लेकिन उसने बताया कि वह पूरे राजस्थान में अकेली लड़की है जो यह काम कर रही है ।
फिर शुरू हुई उसकी अपने काम की दास्तान जिसे सुनकर हमने दातों तले उंगली दबा ली ।
लोन रिकवरी का काम कोई सज्जनता का काम तो है नहीं । पहले प्यार से , फिर थोडा सख्ताई से और यदि तब भी बन्दे को अक्ल न आये तो गिरेबान पकड़कर सबके सामने ज़लील करनी की कला में ज़वाब नहीं उसका ।
मैंने पूछा कि क्या इसके लिए उसने कुंगफू कराटे भी सीखा है ।
छाती पर हाथ रखकर वो बोली --"नहीं भाई साहब । इंसान में यहाँ हिम्मत होनी चाहिए , फिर किसी चोर उच्चक्के की क्या मजाल कि पंगा ले ले । मुझे मेरे पिताजी ने बचपन से ही मुझे बहादुरी का पाठ पढाया है । मैं उनके लिए बेटी नहीं, बेटा हूँ । वो अक्सर कहते थे कि यदि कोई लड़का तुम्हे छेड़े तो रोते हुए घर नहीं आना । उसका मूंह तोड़कर आना । बाकि मैं संभल लूँगा ।"
राजस्थान में भरतपुर के एक बड़े ज़मींदार की यह बेटी शिकार की शौक़ीन रही है । हालाँकि आजकल शिकार पर रोक है ।
देखने में आम लड़कियों की तरह , स्वीट लुकिंग , व्यवहार कुशल इस लड़की से मिलकर मैं उसके व्यक्तित्त्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका ।
ऐसी बहादुर और साहसी बेटी पर किसी भी पिता को गर्व हो सकता है ।
कौन कहता है कि नारी अबला होती है ?
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घर, समाज, इंसान की अपनी गट फीलिंग्स की मैं यह कर सकता /सकती हूँ,नहीं कर सकता हूँ / सकती हूँ , ये सब चीजे हैं जो इन्सान को खुद में मजबूत और कमजोर बनाती है !
ReplyDeleteबेहद उम्दा और सार्थक प्रस्तुति ... आभार !
ReplyDeleteऐसी बहादुर और साहसी बेटी पर किसी भी पिता को गर्व हो सकता है ।
ReplyDeleteकौन कहता है कि नारी अबला होती है ?
कम से कम ये पढकर तो कोई नही कहेगा।
हिम्मतवान महिला का कृत्य अनुकरणीय है और एनी महिलाओं को उनका अनुसरण करना चाहिए.
ReplyDeleteहम्म.
ReplyDeleteहमारी कानून-व्यवस्था की सच्चाई बयान करती है यह हक़ीक़त.
गर कानून ठीक से काम करता तो ये साहूकारी रौब गांठने की नौबत न आती.
कवि प्रकाशवीर "व्याकुल" की कविता याद आ गयी।
ReplyDelete"वह भी श्रृंगार रचाती थी,पर कमर कटारी कसी हुई।"
पढ़कर लगा कि यह लड़की कुछ अलग है, लेकिन इस लड़की में विशिष्टता देखना ही, सामान्य नारी को अबला कहना है.
ReplyDeleteमहिलाएं तो अबला कभी होती ही नहीं है, यह तो आजकल पता नहीं कैसे आधुनिक महिलाओं का जैसे फैशन ही बन गया है रोने-धोने का। यहाँ ब्लाग पर भी जो देखो वो अपने आपको या महिलाओं को बेचारे बनाने में ही धन्य मानता है। जो पूरे परिवार को सम्भालती हो वह भला कैसे अबला हो सकती है? भरतपुर तो वैसे भी वीरता के लिए प्रसिद्ध है। अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteसही मे कोई भी आदमी(मर्द) नारी को अबला नही कहता, बाल्कि नारी खुद ही कभी कभी अपने को अबला कहती हे, क्योकि बिन नारी सब सून , बिना नारी के दुनिया, घर, संसार कहां होगा, संस्कार कहा होंगे..नारी सिर्फ़ जन्म ही नही देती बाल्कि बच्चो को संस्कार भी देती हे, बच्चे को शेर भी नारी ही बनाती हे, तो अबला कहा हुयी?
ReplyDeleteआप के लेख से सहमत हे , धन्यवाद
स्वीटी से मिलकर बहुत अच्छा लगा....अपने देश को ऐसी ही लड़कियों की जरूरत है....
ReplyDeleteपर इसमें स्वीटी के पिता की भूमिका भी सराहनीय है...उनके दिए हौसले से ही स्वीटी में इतनी हिम्मत आई....आज,लड़कियों को हर क्षेत्र में प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
प्राचीन 'हिन्दू' ने भी (आध्यात्मिक) शक्ति को स्त्री रूप में ही दर्शाया - माँ काली, दुर्गा, इत्यादि,,,और आम पुरुष को अपने, आम (अबला) स्त्री की तुलना में, अधिक शारीरिक बल के कारण घमंडी,,,जिसका महिषासुर समान अंततोगत्वा सर नीचा हुआ...
ReplyDelete@ कौन कहता है नारी अबला होती है?
ReplyDeleteपता नहीं कौन कहता है ..हमने तो कभी नहीं कहा.:)
बहुत बढ़िया प्रेरक प्रसंग बांटने का शुक्रिया आपका.
स्वीटी बहुत हैं हमारे देश में ..बस स्वीटी के पिता जैसे पिता कम पड़ जाते हैं शायद...
उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteस्वीटी जैसी लडकी की हर माँ बाप को तलाश है.
लेकिन माँ बाप खुद अपनी लड़कियों को अबला बना कर रखते हैं.
वो दिन कब आयेगा जब यह सुनने को मिलेगा कि स्वीटी ने बहुत बड़ा काम किया न कि यह कि स्वीटी जैसी लडकी ने बड़ा काम किया.
वो दिन कब आयेगा जब बेटों की तरह बेटियों पर भी पोस्टें लिखने की जरूरत न होगी.
सलाम.
गुण और प्रतिभा कभी भी छुप नही सकते ...और यदि लड़की खुद ठान ले तो फिर कुछ भी असंभव नही रह जाता....मेरी शुभकामनाये ..उनके लिए !
ReplyDeleteऐसे ही जज्बे की ज़रूरत सारी लड़कियों में है.
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति ,धन्यवाद.
ReplyDeleteस्वीटी और उसके पिताश्री दोनों को बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
स्वीटी जैसी शख्सियत और उसे गढने वाले उनके पिताश्री को बधाई...
ReplyDeleteइस जैसे प्रयासों का अधिकाधिक अनुकरण हो सके यही वर्तमान आवश्यकता है ।
कौन कहता है कि नारी अबला होती है ?नही नही नही ....
ReplyDeleteस्वीटी और उसके पिताश्री दोनों को बधाई और शुभकामनाएं.
हां साहब, नारी तो जननी है ॥
ReplyDeleteऐसी स्वीटी तभी बनती है जब माता पिता बचपन से ही उनमे आत्मविश्वास भरते है हर मुसीबत और समस्या से खुद लड़ने की, नहीं तो ज्यादातर तो उन्हें सुकोमल नाजुक और मुसीबत समस्याओ को उन तक लेन की ही सलाह देते है |
ReplyDeletewaah sir...
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट
ReplyDeleteस्वीटी का परिचय अच्छा लगा ...
ReplyDeleteरश्मि और शिखा से सहमत हूँ की बहुत कुछ पारिवारिक पृष्ठभूमि पर भी निर्भर करता है ...
जयपुर के एक पेट्रोल पम्प पर सिर्फ महिलाएं ही कार्यरत हैं ...अब कोई क्षेत्र ऐसा नहीं रहा है जिसमे महिलाएं कार्य नहीं कर रही है !
अच्छी प्रेरक पोस्ट !
बहुत प्रेरणादायक पोस्ट ...हिम्मती होने के लिए आत्मविश्वास की ज़रूरत होती है और यह गुण माता पिता ही दे सकते हैं ...
ReplyDeleteकोशिश करुंगा कि मैं मेरी बेटी को भी स्वीटी जैसी बना सकूं।
ReplyDeleteप्रणाम
इंसान में यहाँ हिम्मत होनी चाहिए ....यही तो बुनियादी बात है....
ReplyDeleteस्वीटी ने इसे आत्मसात किया...जिस दिन सभी लड़कियां इस तथ्य को अपना लेंगी उस दिन ‘अबला’ शब्द डिकेशनरी से मिट जाएगा।
बहुत सही सन्देश दिया है इस पोस्ट में ...आभार
नारी अबला नहीं ... शक्ति होती है ... बस उसको जगाने की जरूरत होती है ....
ReplyDeleteअछा लगा पढ़ कर .... ऐसे किस्से हमेशा ख़ुशी का एहसास देते हैं ..
इंदिरा गांधी की समाधि शक्ति स्थल पर बनी चट्टान से सभी लड़कियों को प्रेरणा लेनी चाहिए...
ReplyDeleteजय हिंद...
काश, ऐसी लड़कियां हर कहीं होतीं।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
प्रेरक प्रसंग
ReplyDeleteऐसी प्रोफाईल पोस्टों पर फोटो complementary/complimentary दोनों होती है ....
ReplyDeleteक्या कहने स्वीटी के ...जो दांत खट्टे कर दे शूरमाओं के ....
विपरीत परिस्थिति ? कहीं आपकी कोई वसूली तो नहीं आ गयी थी ? :)
उम्दा प्रस्तुति ,धन्यवाद.
ReplyDeleteरिकवरी इंचार्ज का काम सचमुच बहुत कठिन है ।
ReplyDeleteहम तो कम से कम नही कहते। प्रेरक पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteआदरणीय डॉ.टी एस दराल जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
कौन कहता है कि नारी अबला होती है ?
हम तो हरगिज नहीं कहते जी …
बहुत अच्छा परिचय देने के लिए आपका आभार !
मुझे मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां याद हो आईं हैं ,
आपको सादर समर्पित हैं -
हम नवयुग की नारी हैं , आधुनिक युग की नारी हैं !
ऐ पुरुष प्रधान समाज ! समझना मत कॅ हम बेचारी हैं !!
कंधे से कंधा टकरा कर चलती हैं पुरुष के साथ हम !
हर एक चुनौती को ललकार के दे सकती हैं मात हम !
कौनसा है वह क्षेत्र जहां हमने ना पांव बढ़ाए हैं ?
देख हमारी प्रगति दुनिया वाले सब चकराए हैं !!
हैं सैनिक हम , वैज्ञानिक हम ; जज , डॉक्टर हम इंजीनिअर !
हम शासक भी , ट्रकचालक भी ,हम अफ़सर , पुलिस , कलक्टर !
चांद भी छू आई हैं ; खेल जगत में करतीं नाम हैं !
हम विश्व को सम्मोहित करतीं ; क्या ख़ूब हमारी शान है ?
बहुत बड़ा है गीत … किसी अवसर पर अपने ब्लॉग शस्वरं पर पूरा गीत लगाऊंगा ।
स्वीटी जी की तस्वीर भी लगाते तो और अच्छा रहता , और प्रेरणा मिलती ।
… कुछ एक को छोड़ कर … हमारे ब्लॉग जगत में भी बहुत सबल समर्थ नारी शक्ति का वर्चस्व है !
♥बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
गोवा में एक इंटरनेशनल कॉन्फेरेन्स में शामिल होने के कारण पिछले कई दिनों तक ब्लोगिंग से दूर रहा । इस बीच यह पोस्ट सड्युल कर दी थी । आप सब के विचार पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteआप सब मित्रों का आभार ।
काजल जी , यहाँ हमारी जनता की मानसिकता का भी सवाल आता है । यदि सब समय पर भुगतान कर दें तो भी इसकी नौबत नहीं आएगी ।
ReplyDelete"वह भी श्रृंगार रचाती थी,पर कमर कटारी कसी हुई।" वाह ललित जी , क्या बात कही है ।
राहुल जी , हकीकत से मूंह तो नहीं मोड़ा जा सकता । सब नारियों को ऐसा होना चाहिए , लेकिन हैं तो नहीं ।
अजित जी , राज जी , बेशक घर में नारी की बहुमुखी भूमिका उसके साहस का प्रतीक है ।
रश्मि जी , शिखा जी , अंशुमाला जी , वाणी जी , संगीता जी --सही कहा इसमें मात पिता का बहुत बड़ा रोल होता है ।
अरविन्द जी , बस कुछ सोच कर तस्वीर नहीं ली / लगाईं ।
इस बहादुर लड़की का ब्लॉग बनवाइए भाई जी !
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
जी नारी ये सबकुछ कर सकती है गर उसे मौका दिया जाये .....
ReplyDeleteशादी के बाद ऐसे बहुत कम लोग होते हैं ...
जो पत्नी को प्रोत्साहित करते हैं ...
मैं इसके लिए उनके पति ज्यादा शुक्रगुजार हूँ ....
नारी में सागर से भी गहरी सहनशीलता होती है शायद इसी लिए कुछ लोग उसे अबला समझने की भूल कर बैठते हैं !
ReplyDeleteवीरों को जन्म देने वाली नारी कभी अबला हो ही नहीं सकती !
प्रेरणादायक पोस्ट के लिए आभार
राजेन्द्र जी , बहुत सुन्दर गीत है । पूरा सुनने के लिए इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteबेशक नारियाँ पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भावुक और संवेदनशील होते हुए भी मानसिक तौर पर ज्यादा शक्तिवान होती हैं ।
लेकिन शारीरिक तौर पर भी बलशाली बने , इसके लिए मेहनत और उत्साहवर्धन की आवश्यकता होती है । यहीं मत पिता का रोल आता है ।
सही कहा हीर जी , पति को भी समझना चाहिए और प्रोत्साहन देना चाहिए ।
I admire such wonderful women !
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