डर कर मेरे घर में कभी ,
कोई आया ना गया।
कोरोना संसार से,
मिल के भगाया ना गया।
याद हैं वो दिन जब ,
होती थीं खूब मुलाकातें।
जाम लिए हाथ में
करते थे ढेरों सी बातें।
देखते देखते फिर
आ गईं कर्फ्यू की रातें।
वो समां आज तलक
फिर से बनाया ना गया।
डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया ----
क्या ख़बर थी के कहेंगे,
मज़बूरी है दूर बिठाने के लिए।
मास्क हमने बनाये हैं
मुंह छुपाने के लिए।
सेनेटाइजर बनाया था
हाथों को रगड़ने के लिए।
इस तरह रगड़ा के फिर
हाथ मिलाया ना गया।
डर कर मेरे घर कोई आया ना गया ---
खांसी उठती है और,
तेज बुखार चढ़ जाता है।
साँस फूलती है मगर,
ऑक्सीजन स्तर गिर जाता है।
जो चले जाते हैं उनका ,
दर्दे जिगर रह जाता है।
दर्द जो तूने दिया दिल से,
मिटाया न गया।
डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया ,
कोरोना संसार से , भगाया ना गया।
ये सच्चाई है. सब किसी न किसी प्रकार की महफिल को मिस कर रहे हैं.
ReplyDeleteकडवी बात है इस दौर की.
सुंदर रचना.
नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं
बस इसी कड़ी सच्चाई के साथ जी रहे हैं सभी। शुक्रिया आपका।
Deleteबढ़िया पैरोडी बनाई है .. 👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया जी। :)
Deleteआपकी लिखी रचना गुरुवार 15 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteहर कोरोना पीड़ित की दुखती रग पर हाथ (और पैर भी) रख दी आपने .. आने-जाने की बात तो दूर .. दूर वाले लोग भी कतराते नज़र आते हैं। पास वाले तो कतराते ही हैं। मिलने-मिलाने की बात तो दूर, फ़ोन मिलाने से भी लोग भागते हैं,कि पता नहीं कहीं ऑक्सीजन सिलेंडर ना माँग बैठे, अस्पताल में 'बेड' दिलाने की पैरवी ना कर बैठे .. बस यूँ ही ...
ReplyDeleteसही कहा। सब का यही हाल है।
Deleteयाद हैं वो दिन जब ,
ReplyDeleteहोती थीं खूब मुलाकातें।
जाम लिए हाथ में
करते थे ढेरों सी बातें।
बेहतरीन..
सादर..
शुक्रिया।
Deleteशानदार पैरोडी...वाह !!!
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