काज़ीरंगा नेशनल पार्क , दुनिया का सबसे ज्यादा हरा भरा पार्क --
काज़ीरंगा मुख्यतया एक सींग वाले गेंडों के लिए जाना जाता है। ये घास खाते हुए सड़क किनारे तक आ जाते हैं।
गौहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर और गाड़ी से ५ -६ घंटे दूर ४३० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है काज़ीरंगा नेशनल पार्क जिसे १९८५ में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्ज़ा दे दिया था और २००६ में सरकार ने इसे प्रोजेक्ट टाइगर के रूप में अपना लिया है। यहाँ विश्व भर में पाए जाने वाले एक सींग वाले गेंडों की संख्या के लगभग दो तिहाई एक हॉर्न वाले गेंडे ( सिंगल हॉर्न राइनो) पाए जाते हैं। इनके अलावा हाथी, जंगली भैंसे , टाइगर और हिरन भी बहुतायत में पाए जाते हैं। घने जंगल, हरे भरे घास के मैदान, झीलों और पानी के श्रोतों से ओत प्रोत काज़ीरंगा पार्क अनेकों दुर्लभ पक्षियों के लिए भी एक सुरक्षित आवास प्रदान करता है।
घास के मैदानों में घास चरती गायें।
गौहाटी शहर से निकलते ही नेशनल हाइवे ३७ के दोनों और दूर दूर तक फैले घास के मैदानों में हज़ारों की संख्या में गायें घास चरती नज़र आती हैं। सरसरी तौर पर देखने से ऐसा लगता है जैसे ये जंगली जानवर हों। लेकिन पास से देखने पर पता चलता है कि ये पालतु गायें हैं जिनके गले में एक लम्बी रस्सी बांधकर उसे एक खूंटे से बांध दिया जाता है। हर एक गाय उसी दायरे में रहकर दिन भर घास खाती रहती है। इस तरह पूरे रास्ते यह दृश्य दिखाई देता है। इनके सारे दिन घास चरने का नज़ारा देखकर समझ में आता है कि इस कहावत का उद्गम शायद ऐसे ही हुआ होगा जब हम किसी को हर वक्त मुँह चलाते देखकर कहते हैं कि "सारे दिन चरती रहती है।"
बिहू फेस्टिवल मनाती युवतियां।
इस क्षेत्र में यह एक अजीब नज़ारा दिखाई देता है कि यहाँ गायें बहुत छोटे आकार की होती हैं। यहाँ तक कि गायें बकरी जैसी, बकरी मेमने जैसी और मेमने खरगोश जैसे दिखाई देते हैं। शायद यह खाने में बस घास ही उपलब्ध होने के कारण हो सकता है। यहाँ पुरुषों और स्त्रियों का कद भी अपेक्षाकृत कम नज़र आता है। ज़ाहिर है, यहाँ देहात में लोग गरीब ज्यादा हैं जिसके कारण पूर्ण पोषण की कमी रहती है।
जंगल में जीप सफारी।
हरा भरा जंगल।
काज़ीरंगा पार्क में हरियाली इतनी ज्यादा है कि आपको एक भी हिस्सा सूखा या रेतीला नज़र नहीं आएगा। यहाँ की हरियाली देखकर एक और कहावत के चरितार्थ होने की अनुभूति होती है - सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है - सचमुच यहाँ हरा रंग इस कदर देखने को मिलता है कि कुछ समय आप रंग शून्य होकर भूल से जाते हैं कि दुनिया में कोई और रंग भी है।
जंगल , झील और हरियाली।
जंगली भैंसों के झुण्ड।
इस पार्क में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं जो अलग अलग हिस्सों को दर्शाते हैं - पश्चिमी द्वार, मध्य द्वार और पूर्वी द्वार। द्वार पर ही आपको एंट्री टिकट और सफारी के लिए जीप मिल जाएगी। टॉप सीजन के समय एडवांस बुकिंग कराना सही रहता है , हालाँकि ऑनलाइन बुकिंग महँगी पड़ती है। जहाँ गेट पर आपको कुल २५५० रूपये देने पड़ेंगे , वहीँ ऑनलाइन बुकिंग पर ३६०० रूपये देने पड़ते हैं। जीप सफारी में करीब २० किलोमीटर का सफर तय होता है जिसमे आपको पार्क के विभिन्न रूप और वन्य प्राणियों के दर्शन होते हैं। इस पार्क की एक विशेषता यह है कि हरियाली , पेड़ पौधे , पानी की झीलें और दूर पहाड़ियां देखकर आप एक पल के लिए भी बोर नहीं होते। यदि आपका जीप ड्राईवर ज़रा सा भी बातूनी हुआ तो आपको न सिर्फ गाइड करता चलेगा , बल्कि कई दुर्लभ पक्षियों के भी दर्शन कराता रहेगा।
गेंडा , एक शुद्ध शाकाहारी जीव।
एक सुअरी और अनेक बच्चे।
जंगल में अकेला हाथी अक्सर नाराज़ रहता है और हमला कर सकता है।
जंगल में सभी जीव स्वतंत्र और मज़े में मिल जल कर रहते हैं।
जंगली भैंसे बहुत ताकतवर होते हैं। इनके सींग भी बहुत बड़े होते हैं।
काज़ीरंगा पार्क जाने के लिए सबसे बढ़िया समय है सर्दियों का, यानि अक्टूबर से अप्रैल तक। अप्रैल समाप्त होते होते यहाँ बारिश होनी आरम्भ हो जाती है और पार्क को सफारी के लिए बंद कर दिया जाता है। पार्क के पास हाइवे पर वैस्ट और सेंट्रल गेट के पास अनेक होटल और रिजॉर्ट्स बने हैं जो सभी बजट के सैलानियों के लिए उपयुक्त हैं। यदि आप पैसा खर्च करने में सक्षम हैं तो आपको गेट के पास बने किसी रिजॉर्ट में ठहरना चाहिए। यह अपने आप में एक अद्भुत अनुभव रहेगा।
रिजॉर्ट का एक हिस्सा जो खाली पड़ा था लेकिन बहुत हरा भरा था ।
काज़ीरंगा मुख्यतया एक सींग वाले गेंडों के लिए जाना जाता है। ये घास खाते हुए सड़क किनारे तक आ जाते हैं।
गौहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर और गाड़ी से ५ -६ घंटे दूर ४३० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है काज़ीरंगा नेशनल पार्क जिसे १९८५ में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्ज़ा दे दिया था और २००६ में सरकार ने इसे प्रोजेक्ट टाइगर के रूप में अपना लिया है। यहाँ विश्व भर में पाए जाने वाले एक सींग वाले गेंडों की संख्या के लगभग दो तिहाई एक हॉर्न वाले गेंडे ( सिंगल हॉर्न राइनो) पाए जाते हैं। इनके अलावा हाथी, जंगली भैंसे , टाइगर और हिरन भी बहुतायत में पाए जाते हैं। घने जंगल, हरे भरे घास के मैदान, झीलों और पानी के श्रोतों से ओत प्रोत काज़ीरंगा पार्क अनेकों दुर्लभ पक्षियों के लिए भी एक सुरक्षित आवास प्रदान करता है।
घास के मैदानों में घास चरती गायें।
गौहाटी शहर से निकलते ही नेशनल हाइवे ३७ के दोनों और दूर दूर तक फैले घास के मैदानों में हज़ारों की संख्या में गायें घास चरती नज़र आती हैं। सरसरी तौर पर देखने से ऐसा लगता है जैसे ये जंगली जानवर हों। लेकिन पास से देखने पर पता चलता है कि ये पालतु गायें हैं जिनके गले में एक लम्बी रस्सी बांधकर उसे एक खूंटे से बांध दिया जाता है। हर एक गाय उसी दायरे में रहकर दिन भर घास खाती रहती है। इस तरह पूरे रास्ते यह दृश्य दिखाई देता है। इनके सारे दिन घास चरने का नज़ारा देखकर समझ में आता है कि इस कहावत का उद्गम शायद ऐसे ही हुआ होगा जब हम किसी को हर वक्त मुँह चलाते देखकर कहते हैं कि "सारे दिन चरती रहती है।"
बिहू फेस्टिवल मनाती युवतियां।
इस क्षेत्र में यह एक अजीब नज़ारा दिखाई देता है कि यहाँ गायें बहुत छोटे आकार की होती हैं। यहाँ तक कि गायें बकरी जैसी, बकरी मेमने जैसी और मेमने खरगोश जैसे दिखाई देते हैं। शायद यह खाने में बस घास ही उपलब्ध होने के कारण हो सकता है। यहाँ पुरुषों और स्त्रियों का कद भी अपेक्षाकृत कम नज़र आता है। ज़ाहिर है, यहाँ देहात में लोग गरीब ज्यादा हैं जिसके कारण पूर्ण पोषण की कमी रहती है।
जंगल में जीप सफारी।
हरा भरा जंगल।
काज़ीरंगा पार्क में हरियाली इतनी ज्यादा है कि आपको एक भी हिस्सा सूखा या रेतीला नज़र नहीं आएगा। यहाँ की हरियाली देखकर एक और कहावत के चरितार्थ होने की अनुभूति होती है - सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है - सचमुच यहाँ हरा रंग इस कदर देखने को मिलता है कि कुछ समय आप रंग शून्य होकर भूल से जाते हैं कि दुनिया में कोई और रंग भी है।
जंगल , झील और हरियाली।
जंगली भैंसों के झुण्ड।
इस पार्क में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं जो अलग अलग हिस्सों को दर्शाते हैं - पश्चिमी द्वार, मध्य द्वार और पूर्वी द्वार। द्वार पर ही आपको एंट्री टिकट और सफारी के लिए जीप मिल जाएगी। टॉप सीजन के समय एडवांस बुकिंग कराना सही रहता है , हालाँकि ऑनलाइन बुकिंग महँगी पड़ती है। जहाँ गेट पर आपको कुल २५५० रूपये देने पड़ेंगे , वहीँ ऑनलाइन बुकिंग पर ३६०० रूपये देने पड़ते हैं। जीप सफारी में करीब २० किलोमीटर का सफर तय होता है जिसमे आपको पार्क के विभिन्न रूप और वन्य प्राणियों के दर्शन होते हैं। इस पार्क की एक विशेषता यह है कि हरियाली , पेड़ पौधे , पानी की झीलें और दूर पहाड़ियां देखकर आप एक पल के लिए भी बोर नहीं होते। यदि आपका जीप ड्राईवर ज़रा सा भी बातूनी हुआ तो आपको न सिर्फ गाइड करता चलेगा , बल्कि कई दुर्लभ पक्षियों के भी दर्शन कराता रहेगा।
गेंडा , एक शुद्ध शाकाहारी जीव।
एक सुअरी और अनेक बच्चे।
जंगल में अकेला हाथी अक्सर नाराज़ रहता है और हमला कर सकता है।
जंगल में सभी जीव स्वतंत्र और मज़े में मिल जल कर रहते हैं।
जंगली भैंसे बहुत ताकतवर होते हैं। इनके सींग भी बहुत बड़े होते हैं।
काज़ीरंगा पार्क जाने के लिए सबसे बढ़िया समय है सर्दियों का, यानि अक्टूबर से अप्रैल तक। अप्रैल समाप्त होते होते यहाँ बारिश होनी आरम्भ हो जाती है और पार्क को सफारी के लिए बंद कर दिया जाता है। पार्क के पास हाइवे पर वैस्ट और सेंट्रल गेट के पास अनेक होटल और रिजॉर्ट्स बने हैं जो सभी बजट के सैलानियों के लिए उपयुक्त हैं। यदि आप पैसा खर्च करने में सक्षम हैं तो आपको गेट के पास बने किसी रिजॉर्ट में ठहरना चाहिए। यह अपने आप में एक अद्भुत अनुभव रहेगा।
रिजॉर्ट का एक हिस्सा जो खाली पड़ा था लेकिन बहुत हरा भरा था ।