अंडमान द्वीप समूह में रहने वाले सेंटीनेलिज आदिवासियों के बारे में मिले समाचार से पता चलता है कि देश के एक हिसे में २१ वीं सदी में भी कुछ जनजाति ऐसी हैं जो आधुनिक सभ्यता से पूर्णतया अनभिज्ञ है। सरकार भी इन्हे इनके मूल स्वरुप में बचाये रखने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। इसीलिए इन द्वीप समूहों मे आधुनिक मानवों का प्रवेश और मिलना जुलना वर्जित है। इसके पीछे यह सोच है कि ये मनुष्य आधुनिक सभ्यता से दूर होने के कारण आधुनिक जीवन शैली से दुष्प्रभावित हो सकते हैं जिससे ये विभिन्न रोगों के शिकार हो सकते हैं और इनकी प्रजाति लुप्त हो सकती है। इनमे रोगों से लड़ने की क्षमता न के बराबर होती है। इनका खान पान आदिमानव की तरह है जो कंदमूल, मछली और वन्य जीवों का शिकार कर अपना पेट भरते हैं। इन्हे भी बहरी मानवों से मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं, इसलिए यदि कोई इनके क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करता है तो वे अपने तीरों से भेद कर उसे मार डालते हैं जैसा कि एक अमेरिकी क्रिश्चियन मिसिनेरी युवक के साथ हुआ।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इन्हे आधुनिक सभ्यता से दूर रखा ही क्यों जाये ! भले ही ये स्वयं अपना क्षेत्र, जीवन शैली और खान पान न छोड़ना चाहते हों, लेकिन विकसित होने का अधिकार इनको भी होना चाहिए। यह तो सरकार को देखना चाहिए कि ये लोग मुख्य धारा में सम्मलित होकर आधुनिकता का लाभ उठा सकें।
देश के बाकि हिस्सों में भी तो हम पिछड़ी जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए कार्य करते हुए उन्हें विकास का लाभ उपलब्ध कराते ही हैं। फिर इन्हे इनके मूल रूप में सभ्यता के पिछड़े स्वरुप में रहकर जीवन यापन करा कर हम क्या हासिल कर रहे हैं, यह समझ से परे है। पुराने स्मारक हमारी ऐतिहासिक धरोहर हो सकते हैं, लेकिन जीते जागते पिछड़े वर्ग के लोगों को पिछड़े ही रखना क्या उनके प्रति अन्याय नहीं है ! ज़रा सोचना अवश्य चाहिए।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-11-2018) को "सेंक रहे हैं धूप" (चर्चा अंक-3166) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार।
Deleteविचारणीय लेख।
ReplyDeleteसटीक लेख
ReplyDeleteजी, जिन्हे हम विकास कहते हैं वो क्या सच में विकास है?हमे ये सोचने की जरूरत है।
ReplyDeleteसभी प्राणियों में मनष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसका निरंतर विकास हुआ है। यह विकास का ही नतीजा है जो आज हम ब्लॉग, फेसबुक या नेट पर वार्तालाप कर पा रहे हैं। सवाल यह है कि इन्हे क्यों इस जिंदगी से वंचित रहने पर मज़बूर रखा जाये। ये जीते जागते प्राणी हैं, न कि कोई पुरानी ईमारत।
Deleteसहमत हूँ बशर्ते जबरदस्ती न की जाए !
ReplyDeleteआभार।
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