बहुत दिनों से कोई हास्य कविता लिखने का समय नहीं मिला ! आज विश्व हास्य दिवस के अवसर पर फ़ेसबुक पर आधारित एक पैरोडी लिखने का प्रयास किया है ! यह अभी तक की दूरी पैरोडी है जो इत्तेफाक़ से फिर से सुरेश वाडकर के गाने पर ही आधारित है :
मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ !
आज समझा हूँ लाइक का मतलब ,
आज टिप्पणीयां मैं भेंट करता हूँ !
कल मैं ब्लॉग पोस्ट लिखता था ,
आज मैं स्टेटस अपडेट करता हूँ ! -----------
सोचता हूँ के मेरे स्टेटस पर
क्यों नहीं लगते लाइक के चटके !
मैने मांगी थी इक टिप्पणी लेकिन
पोस्ट पे आये ना कोई भूले भटके !
हो ना जाउँ कहीं मैं फेसबुकिया
इसकी लत पड़ने से डरता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! ----------
दिन गुजरा फ़ेसबुक पे सारा ,
रात आधी लाइक करते करते !
कैसे बुलायें पेज पे उनको ,
चैट करते हैं डरते डरते !
लत शायद इसी को कहते हैं ,
हर घड़ी बेकरार रहता हूँ !
रात दिन फ़ेसबुक पे कटते हैं ,
घर बार से बेज़ार रहता हूँ ! -----------
मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ !
हा हा!! बेहतरीन...उसी अपडेट को देख कर यहाँ चले आये :)
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteचलिये अपडेट का फायदा भी होगा। शीर्षक देख कर डर लगी था कि कहीं से कांग्रेस के आने की अफवाह तो नही सुन ली आपने।
ReplyDeleteआशा जी , डरने के कारण तो अनेक हो सकते हैं -- यह भी !
Deleteक्या बात ,,,,,पर कैंडी-क्रश कैसे बच गया ,,::D
ReplyDeleteहो ना जाउँ कहीं मैं फेसबुकिया
ReplyDeleteइसकी लत पड़ने से डरता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! -----
very nice sir .
ये कंबख्त फ़ेसबुक चीज ही ऐसी है.:)
ReplyDeleteरामराम.
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मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ !
;)
वाह ! वाऽह…!
दिन गुजरा फ़ेसबुक पे सारा ,
रात आधी लाइक करते करते !
कैसे बुलायें पेज पे उनको ,
चैट करते हैं डरते डरते !
लत शायद इसी को कहते हैं ,
हर घड़ी बेकरार रहता हूँ !
रात दिन फ़ेसबुक पे कटते हैं ,
घर बार से बेज़ार रहता हूँ !
हाय रे ये फेसबुक !
कितने सारे अच्छे भले ब्लॉग्स का भी भट्ठा बिठा दिया...
:(
आदरणीय डॉ. दराल भाई जी
मस्त रचना के लिए थेंक्स
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सही कहा राजेन्द्र जी . अब तो ब्लॉग्स की ओर कोई झांकता ही नहीं !
Deleteबहुत उम्दा सर! दिल बाग-बाग हो गया
ReplyDeleteउम्दा फसेबुकिया पैरोडी डाक्टर साहब
ReplyDeleteचाहे जितना फेसबुक पे आ जाओ ... ब्लोगिंग मन छोड़ना ... हम तो यही बिनती कर सकते हैं ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया इस हास्य का ... छुपा हुआ दर्द भी नज़र आ रहा है ..
नासवा जी , इस दर्द मे भी व्यंग ही है ! :)
Deleteहा हा हा। गज़ब। मस्त पैरोडी है ..
ReplyDeleteफेसबुक ने किया है स्टेटस का आविष्कार , ब्लॉग का भी है लेकिन प्रविष्टियों का अधिकार !
ReplyDeleteरोचक !