बचपन की गलियों में गिल्ली डंडा
और बैट बाल साथ खेलने वाले जो बच्चे
बुढ़ापे में भी संग बैठे गपियाते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।
कॉलेज में संग उठना बैठना, खाना पीना
पिक्चर जाना और दोस्त के भाई बहन
और मात पिता से जो घुल मिल जाते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।
दोस्त और दोस्त के बच्चों की शादी में नाचना
फिर दोस्त की गोल्डन जुबली में
जोहरा जबीं गाने पर जो थिरकते नज़र आते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।
जिंदगी के सफ़र में सहपाठी और सहकर्मी
तो बहुत होते हैं, आते हैं, चले जाते हैं,
किंतु जीवन पर्यंत जो सुख दुख में साथ निभाते हैं,
वही असली दोस्त कहलाते हैं।