दिल जीवन भर धड़कता है ,
साँस जिंदगी भर चलती है ,
पर कभी अहसास नहीं होता ,
दिल के धड़कने का, साँसों के चलने का।
ग़र होने लगे अहसास,
दिल की धड़कन का ,
या साँस के चलने का ,
तो जिंदगी के इम्तिहान में ,
दिल और साँस, दोनों फेल हो जाते हैं।
ग़र नहीं चाहते अहसास ,
दिल की धड़कन का , साँसों की रफ़्तार का ,
तो पर्यावरण को बचाओ ,
गंदगी और प्रदूषण से, वरना
ना साँस चलेगी , ना रहेगी जिंदगी की आस।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-11-2017) को
ReplyDelete"कभी अच्छी बकवास भी कीजिए" (चर्चा अंक 2788)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'