tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post983842486453858152..comments2024-03-19T14:53:25.365+05:30Comments on अंतर्मंथन: मलाई वो खा रहे हैं , हम तो खाली उंगलियाँ चाट रहे हैं --डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-2211210824173954412010-08-11T18:13:46.779+05:302010-08-11T18:13:46.779+05:30मेरे ख्याल से अगर हमारी सरकार अपने उदासीन रवैये को...मेरे ख्याल से अगर हमारी सरकार अपने उदासीन रवैये को बदल ले और देश के सभी इलाकों को सुविधाओं से युक्त करे तो कोई वजह नहीं बचेगी बाहरले देशों की और पलायन कीराजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-81048770143097357312010-04-10T21:27:42.777+05:302010-04-10T21:27:42.777+05:30चन्द्र सोनी , ये सब क्या है ?चन्द्र सोनी , ये सब क्या है ?डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-46738374507599097402010-04-08T10:20:58.419+05:302010-04-08T10:20:58.419+05:30मेरे घर मलाई बहुत हैं, कहो तो भेज दूँ????
है.........मेरे घर मलाई बहुत हैं, कहो तो भेज दूँ????<br />है........आप डॉक्टर होकर ऊँगली चाट रहे है???<br />ये तो बहुत बुरी आदत हैं, ऊँगली चाटना (चूसना) बहुत ही नुक्सान देह HAIN........<br />ये तो आप जानते ही हैं.....<br />हा हाहा हाहा हा<br />WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COMचन्द्र कुमार सोनीhttps://www.blogger.com/profile/13890668378567100301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-91573365225922188122010-03-29T21:42:11.096+05:302010-03-29T21:42:11.096+05:30श्री मुफलिस के समान, "...आपने सही कहा कि यहाँ...श्री मुफलिस के समान, "...आपने सही कहा कि यहाँ लोग डॉक्टर्स की मानवीय आवश्यकताओं को जानने का प्रयास ही नहीं करते..." ऐसे अनंत विचार / प्रश्न हरेक करता है - एक 'दलित' भी (जो अज्ञानतावश दोष देता है 'ब्राह्मणों' को),,,किन्तु उत्तर - इस भागम-भाग में - समय की कमी के कारण नहीं पाता है कोई, भले ही उसने 'ब्राह्मण परिवार' में ही जन्म क्यूँ न लिया हो ...यदि उत्तर चाहिए तो देखना आवश्यक है कि इस विषय में क्या हमारे पूर्वजों ने कोई प्रयास नहीं किये? क्यूंकि कहते हैं कि मनुष्य अपने अनुभवों से तो सीखता ही है (भले ही अपनाये नहीं) किन्तु ज्ञानी वो है जो दूसरों के अनुभव से भी शिक्षा ग्रहण कर पाता है और उसे काम में लाता भी है...<br /><br />संक्षिप्त में कहें तो ऊन्होने 'ग्रहों' के माध्यम से प्राणी जीवन, विशेषकर मानव जीवन और उसमें घटित होने वाली घटनाओं को समझा है अनेकों पथों से: जैसे हस्तरेखा-शास्त्र, एस्ट्रोलोजी, समुद्र शास्त्र (माथा या ललाट पर लिखे को पढने), सांख्यिकी आदि, आदि द्वारा...और उन्होंने जाना कि मानव शरीर दुर्लभ है,,,किन्तु 'आम आदमी' - अज्ञानतावश - काल के प्रवाह में बहते तिनके समान मौका गँवा देता है प्रभु को यानि 'परम सत्य' को जान पाने में और अनंत सत्य में ही उलझ के रह जाता है...उन्होंने आदमी को पिरामिड के शिखर में, एक अनंत ऊँचाई पर स्तिथ बिन्दू पर पहुँचने का प्रयास करने को कहा (क्यूंकि, जीवन नादबिन्दू यानि 'शून्य' से आरंभ हुआ जाना - जिसका लक्ष्य अनंत को पाना था :)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-58694167446233792972010-03-29T18:40:10.523+05:302010-03-29T18:40:10.523+05:30बहुत ही ज्वलंत समस्या पर विचार-विमर्श
पढ़ कर संतोष...बहुत ही ज्वलंत समस्या पर विचार-विमर्श <br />पढ़ कर संतोष हुआ <br />आपकी चिंता व्यर्थ ही नहीं है <br />आपने सही कहा कि यहाँ लोग <br />डॉक्टर्स की मानवीय आवश्यकताओं को <br />जानने का प्रयास ही नहीं करते <br />पिछली बार पहेली में भाग नहीं ले पाया <br />अफ़सोस है <br />एक साल का इलाज (मुफ्त वाला) चूक गया ना....!!daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-60576354952901106282010-03-29T06:20:17.340+05:302010-03-29T06:20:17.340+05:30डा. साहिब, राम लाल जी ने भी सही मूल्यांकन किया है ...डा. साहिब, राम लाल जी ने भी सही मूल्यांकन किया है 'सत्य' का, जैसा आज दिखाई पड़ रहा है जमीनी सच,,,किन्तु यह भी सच है कि 'गोरों' ने चमड़ी के रंग के कारण राज्य नहीं किया - उन्होंने दिमाग से और शक्ति यानि बल के सही उपयोग से किया,,,और उसके अतिरिक्त अनुशाशन में रह मूल और मूक भारतीयों को डंडे के दम पर एक कर दर्शाया कि राज कैसे किया जाना चाहिए,,,इतिहास दर्शाता है कि उस समय हम छोटे छोटे राज्यों में बटे थे और आपस में ही लड़ते रहते थे (किन्तु ज्ञानी कह गए कि जो सदैव बदलते समय से परे है सत्य वो ही है, जिस कारण मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है आपस में ही लड़ना, नहीं तो 'महाभारत' की कहानी कैसे आज भी हमें आकर्षित करती?)...<br /><br />भारत में राजा राज्य (मतलब 'जो 'रा' से उत्पन्न हुआ") करते थे तो रूस में राजा को (उसका उलट) ज़ार कहते थे जो नीतिशास्त्र में पारंगत थे. उनकी एक 'योजना' पर कहानी सुनी थी, जो आज भी नक़ल लगाने कि प्रवर्ती के कारण 'सच' है - ('समय कि गुलामी' कह लीजिये) - पेश है:<br /><br />पोलैंड से दूत मॉस्को तत्कालीन ज़ार का प्रबंधन देखने आया और, राज्य में सब जगह घूम-घाम, जाते समय भी ज़ार से मिलने आया...ज़ार ने पूछा उसे कैसा लगा तो उसने कहा बाकि सब तो अति उत्तम लगा, किन्तु एक बीरान स्थान पर कुछ सिपाहियों को देख आश्चर्य हुआ! वो क्यूँ वहाँ पर तैनात हैं, उसका क्या रहस्य है ??? ज़ार ने अपने दरबारियों से पूछा,,,और यूं एक बूढी, उसकी दादी, तत्कालीन ज़ारीना की दासी को पेश किया गया...उसने खुलासा किया कि कैसे एक शाम ज़ार और ज़ारीना घूमने निकले तो उन्होंने उस स्थान पर उगे कुछ पौधों में बहुत सुंदर फूल देखे,,,वो पहले तो खुश हो निहारती रही उनको, किन्तु फिर रोने लगी! आश्चर्यचकित हो ज़ार ने रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि यहाँ बीराने में कोई जानवर या आदमी इनको नुक्सान पहुंचा सकता है,,,इस पर ज़ार ने तुरंत सिपाहियों कि व्यवस्था करदी थी :)...<br />यूं तभी से वो वहाँ पर ३ शिफ्ट में चले आ रहे थे जबकि बहुत पहले से वो झाड़ियाँ सूख-साख विलुप्त भी हो गयी थीं :)<br /><br />ऐसी ही सत्य-कथा ब्रिटेन में भी कोस्ट गार्ड से सम्बंधित हुई जो कभी स्पेन से समुद्र मार्ग से आ हमला करते शत्रु के कारण वहां तैनात किये गए थे और चलते रहे थे यद्यपि अब उनकी तैनाती का कोई औचित्य नहीं रह गया था :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-24575777472139938022010-03-28T22:15:04.630+05:302010-03-28T22:15:04.630+05:30भारत, दो लोगों का भारत है. एक उनका जो शिक्षा व सुव...भारत, दो लोगों का भारत है. एक उनका जो शिक्षा व सुविधाएं ख़रीद सकते हैं दूसरे, जो नहीं ख़रीद सकते. पहली श्रेणी के लोग भले ही कहीं कम हों पर vocal हैं, असरदार हैं. दूसरी भीड़ तो गूंगों की है जिससे राजनितिज्ञ अपनी गेम खेल रहे हैं.<br /><br />सही कहा है, पहले केवल प्राईवेट शिक्षा थी अब प्राईवेट सुविधाएं भी आ गई हैं. दोनों बस उन मुट्ठी भर के लिए हैं जो इन्हें ख़रीद सकते हैं. ग़रीब का क्या है उसके लिए तो ओझे और नेते हैं ही.<br /><br />पैसा व मेहनत झोंकी है तो वसूली तो होनी ही चाहिये. यहां नहीं तो कहीं भी सही. मानो इंजीनियरिंग व मेडीकल वेश्यावृत्ति हों..खूबसूरती की बसूली चाहिये. इतने ही तीस मारखां हैं तो भारतीय पैसे से क्यों पढ़ते हैं, क्यों नहीं बचपन में ही विदेश चले जाते, किसी ने रोका है? पर अम्मा दाने भुनाएगी कहां से.<br /><br />हालात को देखते हुए पूरा भरोसा करूं कि एक दिन भारत की दशा सुधारने के लिए विदेश से लोग आएंगे ! भारत जैसा भी है अच्छा या बुरा, इसके लिए अगर दोषी हम हैं, तो यह भी तय समझिये कि इसे सुधारना भी हमें ही है. बाहर से गोरे नहीं बुलाएंगे इसके लिए.<br /><br />यहां का खाकर विदेश का गाने वालों के बारे में क्या कहा जा सकता है. जब इन्हें गोरे, चमड़ी के रंग के चलते स्वीकार नहीं करते तो खुद को भारतीय-भारतीय चिल्लाने लगते हैं otherwise यूं नाक भौं सिकोड़ते हैं मानों ग़लती से भारत में पैदा हो गए थे. <br /><br />बड़ा अच्छा लगता है यह तर्क कि रिज़र्वेशन ने बेड़ा गर्क कर दिया. सही बात है, have nots कहां सुहाएंगे. लिख तो यूं दिया मानों रिजर्वेशन की वजह से डिग्रियां गेटों पर टंगी मिलती हैं. रिजर्वेशन से आने वाले भी न्यूनतम अंको से ज्यदा से ही पास होते हैं, वही न्यूनतम अंक जनरल के लिए भी होते हैं. क्या इलाज से पहले, हस्पताल में जाकर किसी ने पूछा है कि जनरल वाले डाक्टर बबुआ कौन जगह से कितनी परसेंट से डाक्टरी पास किये हो ? समाज को यह बात समझ आने में अभी समय लगेगा कि अधिकतम नंबर से पास होने का मतलब बेस्ट नहीं होता, अधिकतम नंबर डिमांड और सप्लाई के बीच के अंतर का दर्शाते हैं.राम लालhttps://www.blogger.com/profile/05691862091817877550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-49330084203978650392010-03-28T07:53:05.450+05:302010-03-28T07:53:05.450+05:30कहना भूल गया कि जब मुझे 'पाई' खानी होती है...कहना भूल गया कि जब मुझे 'पाई' खानी होती है या कुछ और आवश्यक वस्तु चाहिए होती है, तो मैं दूकान में जा नज़र दौडाता हूँ दुकानदार के पास उपलब्ध वस्तुओं पर और अपनी मन पसंद की कीमत पूछ उसे खरीद लेता हूँ - यदि मेरे बटुए में पैसे होते हैं और उसकी कीमत को मैं सही पाता हूँ...किन्तु यही प्रक्रिया 'सरकार' के लिए जटिल बन जाती है जब 'खाने वालों' की संख्या बढ़ती जाती है,,,क्यूंकि हर प्रणाली में 'पी' 'आई' 'ई' समान '३' तरह के व्यक्तियों का पाया जाना भी शायद प्राकृतिक ही हो: रेल के उदाहारण से नंबर एक, इंजिन समान ('लीडर'); दूसरे नंबर पर, इंजन के साथ जुड़े डब्बों समान (अलग अलग स्तर के व्यक्तियों के लिए), और तीसरे ब्रेक समान - जिन तीनों के बिना प्राणी और सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर, अलग अलग स्टेशन पर रुक कर, विशाल भारत भूमि पर संभव हो पाया है एक विस्तृत प्रणाली द्वारा (जो अंग्रेज़ आरंभ कर गए, और 'उनके राज्य में सूर्यास्त ही नहीं होता था' एक समय,,,(किन्तु प्रणाली में कमियों के कारण टक्कर भी लगती है, डब्बे पटरी से उतर जाते हैं, आदि आदि...)<br /> <br />"आवश्यकता आविष्कार की जननी है", जिस कारण पानी के जहाज और हवाई जहाज के द्वारा मानव का तीनों लोक पर राज्य या नियंत्रण हो गया,,,और इतना ही नहीं, चाँद पर पहुँच आज हम लोक-परलोक की यात्रा के स्वप्न भी देख रहे है, इस पृष्ठभूमि के कारण कि शायद शीघ्र ही अपनी धरती अब रहने योग्य ही नहीं रह जाएगी बढ़ते 'विष' के कारण जिस पर आदमी का नियंत्रण शायद नहीं है :) ...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-47942306096441461492010-03-28T06:44:23.451+05:302010-03-28T06:44:23.451+05:30डा. साहिब, आप कवि भी हैं और कहावत है, "जहां न...डा. साहिब, आप कवि भी हैं और कहावत है, "जहां न पहुंचे रवि / वहाँ पहुंचे कवि.",,,और यदि हम विश्लेषण करते हैं तो हर समस्या के मूल में पाते हैं की प्रश्न बढती जन संख्या और हरेक स्तर पर 'प्रबंधन' का सही न हो पाना है, यद्यपि प्रयास जारी दीखते हैं: <br /><br />पहले आता है ('पी' से) प्लानिंग - देश भर में विभिन्न सूत्रों से सूचना (सही या गलत) प्राप्त कर विभिन्न क्षेत्र (सेक्टर) की समस्या के समाधान के लिए प्लान यानि योजनाएं बनती हैं,,,जिस काम में ही बहुत समय निकल जाता है और जिस कारण जब तक वो कार्यान्वित ('आई' से इम्प्लेमेंत) होता है अनंत कारणों से वांछित लक्ष्य प्राप्त नहीं होता,,,क्यूंकि हरेक वर्ष और अंततोगत्वा पांच वर्ष के बाद जब लक्ष्य और धरा पर असल प्राप्ति के अंतर का ('ई' से) ईवलुएशन यानि मूल्याकन करते हैं, तो जैसा कहा जाता है, यह खाई बढती ही गयी दीखती है हमारे देश में, जिस कारण कहते हैं कि 'जो अमीर था वो और अमीर होता जा रहा है / और जो गरीब था वो और गरीब'!<br /><br />जिस पायी (पी आइ ई), यानि केक की उम्मीद या आशा लगाये बैठे थे वो खोयी बन पेश हो जाती है कालांतर पर (और प्राचीन ज्ञानी सब दोष दे गए 'काल' को :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-22538942251169357342010-03-27T22:37:39.011+05:302010-03-27T22:37:39.011+05:30Sirf Doctors hee nahi, taqreeban har kshetr me log...Sirf Doctors hee nahi, taqreeban har kshetr me log Hindustan se bahar janeka mauqa miltehi chal dete hain....ye bhi dekha ki, inmese chand log bharat me rahte to unka jeevanmaan kahin behtar hota....baat gharse mile sanskaron pe aake rukti hai..ham bachhonko Hindustani banate hain,ya doc,engineer adi,adi..kamse kam achhe insaan to banayen!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-31446514134613448822010-03-27T19:33:45.634+05:302010-03-27T19:33:45.634+05:30dono post padhi...dono damdaar ...ek jvalant samsy...dono post padhi...dono damdaar ...ek jvalant samsya par dhyanakarshan..tippaniyan bhi damdar hain..darasal itna samay aur paisa kharch karne ke baad jahir hai sabhi apna bhavishy pahle banana chahega ..isme burai bhii nahin hai..jb hm khud ko behtar nahin bana sakte to desh ko kya banayenge..! haan yah jaroori hai ki khud ko majboot karne ke baad..is yogy hone ke baad ki desh ke liye kuchh kar saken hamara dayitva hai ki hm is disha me bhii pahal karen.<br />aapka yah post usi disha me agrasar hota dikhta hai..<br />...aabhar.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-20679678127411054222010-03-27T18:29:56.534+05:302010-03-27T18:29:56.534+05:30दुःख हमें बहुत है की हमारे महंगे संस्थानों से काबि...दुःख हमें बहुत है की हमारे महंगे संस्थानों से काबिल डाक्टर निकलते हैं - वे गाँव की और रुख नहीं कर पाते उत्तम विकल्प या तो महानगर या विदेश.<br />सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वालों डाक्टरों को विशेष पॅकेज और सुरक्षा देना चाहिए.<br /><br />आपकी बात में दम है सुलभ ।<br /><br />और मुझे ख़ुशी है की देर से ही सही सरकार सोच रही है इस बारे में । पता चला है कि सरकार रुरल हैल्थ डॉक्टर्स की एक स्कीम लेकर आ रही है , जिसके अंतर्गत गाँव से ही चुनकर छात्रों को चिकित्सा में शिक्षा दी जाएगी । इस कोर्स की अवधि एक साल कम होगी और ये डॉक्टर्स गाँव में ही प्रैक्टिस करेंगे ।<br /><br />लेकिन इस योजना का भी विरोध हो रहा है , अफ़सोस कि अपने ही प्रोफेशन के लोगों से । यानि खुद जायेंगे नहीं , औरों को करने नहीं देंगे । यह बात दुर्भाग्यपूर्ण लगती है।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-10800673765689885612010-03-27T16:37:36.819+05:302010-03-27T16:37:36.819+05:30एक और बात, अपने देश में अच्छे रिसर्च वर्क बहुत कम ...एक और बात, अपने देश में अच्छे रिसर्च वर्क बहुत कम होते हैं. कहीं आधारभूत संरचना की कमी है कहीं लाल-फीताशाही है.<br /><br />कहीं कहीं मनोवृति में भी दोष है, देशभक्ति के जज्बे में भी कमी है. एक बार विदेश का चस्का लगता है तो प्रोफेशनल्स भी वही आराम पसंद घर का सपना देखने लगते हैं. कुछ खुदगर्ज किस्म के प्रोफेशनल्स को पैसा कमाने के बाद लौटना भी चाहिए की वे अपना अनुभव यहाँ बेहतर तंत्र स्थापित करने में दे सके. उच्च गुणवत्ता के रिसर्च एंड डेवलेपमेंट सेंटर खोले जाएँ. यदि सरकार फंड नहीं दे सकती है तो चंदे लेकर निर्माण करें. व्यापक स्तर पर जन जागरण की जरुरत है.<br /><br />अन्य दुसरे सेक्टर्स भी गाँव समेत हाईटेक होने उतने ही जरुरी हैं जितने मेडिकल प्रोफेशन. सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वालों डाक्टरों को विशेष पॅकेज और सुरक्षा देना चाहिए.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-66853065386801586992010-03-27T16:24:12.323+05:302010-03-27T16:24:12.323+05:30एक गंभीर विचारणीय मुद्दा है.
अंतर तो उपरोक्त टिप्प...एक गंभीर विचारणीय मुद्दा है.<br />अंतर तो उपरोक्त टिप्पणियों से स्पष्ट है. यह मुद्दा सरकारी है और प्रबंधन के दायरे में आता है. आम जनमानस से सीधा सम्बन्ध तो डाक्टर का पेशा है. भारतीय जन मानस ही गरीब और दुखी है तो डाक्टर को तकलीफ झेलना ही है. हम किसी भी मोर्चे पर विकसित देशो से प्रबंधन में पीछे चल रहे हैं.... कारण है "भ्रष्टाचार"<br /><br />दुःख हमें बहुत है की हमारे महंगे संस्थानों से काबिल डाक्टर निकलते हैं - वे गाँव की और रुख नहीं कर पाते उत्तम विकल्प या तो महानगर या विदेश.<br /><br />बजट की कमी नहीं है. विकास कार्यों पर खर्च नहीं हो पाता. देश की 80% पूंजी 10 % भ्रष्ट लोगों(सरकारी और अर्धसरकारी प्रतिष्ठानों के मालिकों) के हाथ में हैं और शेष 20% से पूरा हिन्दुस्तान की करोडो आबादी जैसे तैसे जीवन यापन कर रहा है.<br /><br />जब तक आम जन का जीवन स्तर नहीं सुधरेगा. डाक्टर इंजीनियर्स बेहतर विकल्प के लिए पलायन करते रहेंगे.<br /><br />फिलहाल डाक्टर के दुःख में अपना दुःख भूल चूका हूँ - सुलभ <br />--<br />नया ब्लॉग जन हित में > <a href="http://myblogistan.wordpress.com/2010/03/27/small-mistake-big-punishment/" rel="nofollow">राष्ट्र जागरण धर्म हमारा > लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई </a> http://myblogistan.wordpress.com/Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-22287809920757273392010-03-27T16:05:41.984+05:302010-03-27T16:05:41.984+05:30जे सी जी , बेशक चिकित्सा में आधा योगदान तो मनोविज...जे सी जी , बेशक चिकित्सा में आधा योगदान तो मनोविज्ञान का ही होता है। इसीलिए रोगी की इच्छा शक्ति मज़बूत हो तो जल्दी फायदा होता है। डॉक्टरों को भी इसका ध्यान रखना पड़ता है।<br /><br />ब्रिजमोहन जी, आपकी बात सही है । लेकिन हिप्पोक्रेटिक ओथ में श्रधा , निष्ठां और एथिक्स की बात आती है। यहाँ बात एशो आराम की नहीं है। बल्कि एक इंसान के रूप में अपने अधिकारों की है। जो डॉक्टरों को भी मिलना चाहिए । अब सवाल यही आता है की इसके लिए जिम्मेदार कौन ? हम क्यों नहीं रोक पा रहे इस पलायन को ?डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-77108688374837770472010-03-27T16:05:10.200+05:302010-03-27T16:05:10.200+05:30डाक्टर ही नही मेरे अनुभव के आधार पर हर प्रोफ़ेशन क...डाक्टर ही नही मेरे अनुभव के आधार पर हर प्रोफ़ेशन का यही हाल है .... भारत में प्रतिभा का आंकलन भी राजनीति के चश्मे से होता है ... पर ये मेर मानना है की भारत सरकार को हर विदेश जाने वाले भारतीय से उसकी पढ़ाई की सब्सिडी का खर्च किसी न किसी टेक्स के रूप में ले लेना चाहिए ... I will pay that tax to Govt of India, if any proposal is made in Tax laws.दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-4752809821148438072010-03-27T13:45:25.799+05:302010-03-27T13:45:25.799+05:30एक डाक्टर को तैयार करने में सरकार के भी लाखों खर्...एक डाक्टर को तैयार करने में सरकार के भी लाखों खर्च होते है यह शपथ लेकर कि "I swear by Apollo the physician, by Fsculapius, Hygeia, and Panacea, and I take to witness all the gods, all the goddesses, to keep according to my ability and my judgement, the following Oath अपने एशोआराम के लिये अस्सी प्रतिशत ग्रामीण ,दुखी और बीमार जनता को भगवान् भरोसे छोड़ कर विदेश में जा बसना उचित है ?उचित हो भी सकता है क्योंकि अब चिकित्सा परोपकार नहीं है व्यवसाय है ।BrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-54629890776921306872010-03-27T13:14:10.127+05:302010-03-27T13:14:10.127+05:30sahmat hun aapse docter saab.sahmat hun aapse docter saab.Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-17585408288462665872010-03-27T08:06:56.752+05:302010-03-27T08:06:56.752+05:30डा. साहिब ~ मुझे मालूम है कि क्यूंकि मैं 'प्रा...डा. साहिब ~ मुझे मालूम है कि क्यूंकि मैं 'प्राचीन योगियों' समान यह मानने लगा हूँ कि सबके भीतर भगवान् का उपस्तिथ होना सही है, मेरी बात से 'आधुनिक हिन्दू' हिल जाता है और कुछेक 'ब्लॉगर' तो घबडा के अपने ब्लॉग में 'ताला' लगा देते हैं ('०५ से अभी तक सौ. कविता कल्याण को छोड़, रविशजी और डा. साहिब को भी - अभी तक :)...<br /><br />डा. सा., आपसे तो मैंने पहले भी पूछा था कि जीज़स ने क्या किसी मेडिकल कॉलेज की डिग्री प्राप्त की थी? अब यही मैं खुशदीप सहगल जी और अन्य 'बुद्धजीवियों' से भी पूछना चाहूँगा कि कैसे कोई किसी अन्य मार्ग से भी 'दुःख' / दुःख का शायद मुख्य कारण 'बीमारी' दूर कर सकता है - मात्र छूने भर से?!!! यदि यह 'भूत' में संभव था तो क्यूं कोई आगे नहीं आता,,,यद्यपि 'बाबा राम देव' आज एक उदाहरण हैं कठिन 'योग की व्यायाम' द्वारा जो हर 'व्यस्त आम आदमी' के लिए अभी नक़ल कर पाना संभव नहीं है, और हमारे जैसे 'अवकाश प्राप्त' व्यक्तियों के लिए तो लगभग असंभव है :)<br /> <br />मैंने डा. साहिब के ब्लॉग में पहले भी कहा था कि कैसे (इस जन्म में) एक 'इंजीनियरिंग' का विद्यार्थी होते हुए भी मैंने 'मनोवैज्ञानिक' समान तब, '७४ में, ३ वर्ष की अपनी तीसरी लड़की को ही 'दिल्ली' में नहीं चलाया अपितु हाल ही में, ३३ -३४ वर्ष पश्चात, उसके २ वर्ष के बेटे को मुंबई में भी चलना सिखाया - केवल उनका शब्दों से भय दूर कर! और बचपन से ही 'हस्तरेखा शास्त्र' में भी हस्तक्षेप रखने के कारण (और इस 'हिन्दू मान्यता' की पृष्ठभूमि से कि मानव 'अनंत शून्य रुपी ब्रह्माण्ड' का प्रतिरूप है) यह भी जाना कि जिन 'उँगलियों' की डा' साहिब ने चर्चा किया अपने पिछले पोस्ट में, वे ब्रह्माण्ड के सार, हमारे 'नवग्रहों' के (सूर्य से उसके पुत्र शनि तक) द्योतक हैं,,,और इस ज्ञान के माध्यम से केवल एक 'सुच्चे मोती' के उपयोग से एक डिग्री प्राप्त डॉक्टर का पेट का दर्द (जी आई) ठीक कर दिया :) (मैं 'झोला छाप' होने के कारण अपने रिसर्च का और अधिक खुलासा यहाँ नहीं करूँगा :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-33267066058103413312010-03-27T07:51:31.891+05:302010-03-27T07:51:31.891+05:30अदा जी ने बिलकुल सही कहा है । यहाँ रहकर अच्छे डॉक...अदा जी ने बिलकुल सही कहा है । यहाँ रहकर अच्छे डॉक्टर भी मजबूर महसूस करते हैं। उन्हें पूरी सामर्थ्य से काम करने को नहीं मिलता । उस पर हमारा भ्रष्ट सिस्टम । इसलिए डॉक्टर भी प्रभावित होने से नहीं बचते । लेकिन यही डॉक्टर विदेश की सुव्यवस्था में रहकर ऊंचाइयां प्राप्त करते हैं।<br /><br />संगीता जी की बात से पूरी तरह सहमत।<br /><br />खुशदीप , इस मुद्दे को मैंने जान बूझ कर नहीं उठाया । लेकिन यह सच है की यही सच है । इसके साथ मैं जोड़ता हूँ , प्राइवेट मेडिकल कौलिजिज , विदेश से प्राप्त डिग्री जैसे रशिया , उक्रेन, बुल्गारिया आदि। और सबसे खतरनाक नकली डॉक्टर।<br /><br />समीर लाल जी की बात सोला आने सच। मैंने भी यही लिखा है की पारिवारिक और सामाजिक समस्याएँ होती हैं , लेकिन ये सब के लिए समान हैं , यानि डॉक्टर्स और नॉन डॉक्टर्स के लिए । अब कुछ तो कीमत चुकानी ही पड़ती है , कुछ पाने के लिए ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-68306063307820449082010-03-27T07:03:56.441+05:302010-03-27T07:03:56.441+05:30अदा जी तो सब बता ही गई..रोज रोज की जिन्दगी में तो ...अदा जी तो सब बता ही गई..रोज रोज की जिन्दगी में तो आराम बहुत है. कोई टेंशन किसी प्रकार की नहीं होती सिवाय इसके की अपनो से दूर हैं. वही तराजू बराबर किये रहता है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-84155008100599709772010-03-27T06:07:02.552+05:302010-03-27T06:07:02.552+05:30व्यवस्था के मारे देश छुड़ाया ...!!व्यवस्था के मारे देश छुड़ाया ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-29377613917701889702010-03-27T01:11:10.525+05:302010-03-27T01:11:10.525+05:30डॉक्टर साहब,
डॉक्टरी पेशे का भारत में सबसे ज़्याद...डॉक्टर साहब, <br />डॉक्टरी पेशे का भारत में सबसे ज़्यादा बेड़ागर्क किया है रिज़र्वेशन ने...ये लोगों की जान से जुड़ा पेशा है...इसलिए यहां योग्यता और सिर्फ योग्यता के अलावा किसी और चीज़ से समझौता नहीं किया जाना चाहिए...मेडिकल कॉलेज में रिजर्वेशन, पीजी में रिजर्वेशन, नौकरियों में रिज़र्वेशन...ऐसे में टेलेंट के लिए मौके ही कितने रह जाते हैं...वो विदेश की राह पकड़ लेती है...(ब्रेन ड्रेन इज़ बैटर दैन ब्रेन इन ड्रेन)...हंसी तो तब आती है जब रिज़र्वेशन की वकालत करने वाले बड़े बड़े नेता खुद बीमार पड़ते हैं...वो कभी कोटे वाले डॉक्टर के पास नहीं जाएंगे बल्कि बड़े से बड़े सुपरस्पेशलिस्ट के पास ही जाएंगे...या फिर सरकारी खर्चे पर विदेश जाकर इलाज कराएंगे...जब तक भारत में योग्यता की कद्र शुरू नहीं होगी, हालात नहीं सुधरेंगे..<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-72186269219171456272010-03-27T00:00:55.965+05:302010-03-27T00:00:55.965+05:30आपकी पिछली पोस्ट को भी मैने सरसरी निगाह से देखा थ...आपकी पिछली पोस्ट को भी मैने सरसरी निगाह से देखा था .. समयाभाव के कारण टिप्पणी नहीं कर सकी थी .. भारतवर्ष में बेईमानों और कामचारों के लिए जितनी सुविधाएं दिखाई देती हैं .. ईमानदारों और कर्मठों के लिए नहीं होती .. उन्हें जीवनभर संघर्ष कना होता है .. व्यवस्था की यह सबसे बडी खामी है .. और इसे दूर किए बिना प्रतिभाओं का विदेशों में होते पलायन को नहीं रोका जा सकता !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-9115930207428401212010-03-26T23:04:59.842+05:302010-03-26T23:04:59.842+05:30डा. साहिब ~ आपने सही लिखा है कि कैसे भारतीय डॉक्टर...डा. साहिब ~ आपने सही लिखा है कि कैसे भारतीय डॉक्टरों का और मरीजों का भी हाल पश्चिम की तुलना में एक दम गया गुजरा है, और काल के साथ बदतर होता जा रहा है, यद्यपि पश्चिम में भी अभी बहुत शेष है इस दिशा में करने को...किन्तु श्रृष्टि की समाप्ति का भय भी दूसरी ओर परेशान कर रहा है :( <br /><br />यदि थोडा रुक के सोचें कि ऐसा क्यूँ है और इसका विकल्प क्या है तो शायद प्राचीन काल के तथाकथित 'पहुंचे हुए', जीसस क्राइस्ट जैसे, लोग या योगियों के विचार ढून्ढ कर निकालने होंगे...मैंने अपने कुछ विचार पिछली पोस्ट में भी लिखे हैं जो मैंने इस आधुनिक युग में अपनी कंक्रीट की गुफा के भीतर कुछ वर्षों की 'तपस्या' के बाद जाने हैं, किन्तु अन्य पश्चिमी वैज्ञानिकों की भांति अभी बहुत जानने को शेष है :)...और, क्यूंकि एक लाइन में उन्हें व्यक्त नहीं किया जा सकता, ज्यादा न कहते हुए मैं इतना ही कहूँगा कि मानव मष्तिष्क को आज एक कंप्यूटर समान जाना गया है, जिसकी सहायता से कमजोर डिजीटल कंप्यूटर तो बन पाए हैं, किन्तु ऐनालोजिक होने के कारण इसका सही उपयोग आज मानव को इसलिए नहीं आता क्यूंकि, जो भी इसका कारण रहा हो, प्राकृतिक तौर पर ऐसा लगता है कि 'विघ्न' या 'बाधा' बहुत तगड़ी है, जैसे सारे आठ तालों में जंग लग गया हो और उस पर चाभियाँ भी गुम हो गयी हो,,,(प्राचीन ज्ञानियों ने उन्हें भगवान् विष्णु के पास उपलब्ध बताया है, और जो 'विघ्नहर्ता गणेश' या 'संकटमोचन हनुमान', यानि मंगल ग्रह के सार की सहायता से भी खोले जा सकते हैं, जिसके लिए कुंडलिनी जागृत करनी आवश्यक है :),,,जिस कारण यह भी जाना गया है कि मानव मष्तिष्क में उपलब्ध सेल में से 'आधुनिक मानव' केवल नगण्य प्रतिशत का ही उपयोग कर सकता है...('कृष्ण' ने इस कारण सुझाव दिया है आत्मसमर्पण कर, बच्चे समान, उनकी ऊँगली पकड़ना जिससे वो परम सत्य तक स्वयं ले जा सकें,,,जो कठिन है आधुनिक मानव के लिए :(JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.com