tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post771492587913289946..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: प्रकृति से भयंकर छेड़ छाड़ --डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-38148496175342296662022-06-25T13:55:39.163+05:302022-06-25T13:55:39.163+05:30जी धन्यवाद। जी धन्यवाद। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-73311229004587543102022-06-25T13:54:34.220+05:302022-06-25T13:54:34.220+05:30जी सही कहा। आम आदमी तो रोजी रोटी के चक्कर में पड़ा...जी सही कहा। आम आदमी तो रोजी रोटी के चक्कर में पड़ा रहता है। उसे रोका भी जा सकता है। लेकिन यह काम बड़े लोगों का है जिन्हे अपने लालच के आगे प्रकृति की कोई चिंता नहीं होती। ये हैं समाज के असली दुश्मन। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-14382549865445848542022-06-25T13:52:07.574+05:302022-06-25T13:52:07.574+05:30शुक्रिया रचना जी। शुक्रिया रचना जी। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-73058487840691643842022-06-25T13:43:49.367+05:302022-06-25T13:43:49.367+05:30पढ़कर मन द्रवित हो गया। इंसान कहाँ पहुँच गया, विचार...पढ़कर मन द्रवित हो गया। इंसान कहाँ पहुँच गया, विचार करने की क्षमता का यों गोण होना। कई प्रश्न लिए खड़े है आपका सृजन। बहुत बढ़िया है इसे कहते हैं सृजन की आवाज़।<br />सादर अनीता सैनी https://www.blogger.com/profile/04334112582599222981noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-29336541619133640882022-06-25T10:23:07.891+05:302022-06-25T10:23:07.891+05:30अब सोचने की बात ये है कि किसने इज़ाज़त दी होगी इस अत...अब सोचने की बात ये है कि किसने इज़ाज़त दी होगी इस अतिक्रमण के लिए। क्या प्रशासन आंखे बंद कर के बैठा है। या सब मिलीभगत से हो रहा है। पता चला कि सब प्रॉपर्टीज वहां के प्रभावशाली लोगों की हैं। यानी रक्षक ही भक्षक हो गए हैं। फिर आम जन भी क्षणिक आनंद के चक्कर मे अपना फर्ज़ भूल रहे हैं, आने वाली पीढ़ी के लिए। <br />प्रकृति का ऐसा निर्मम दोहन कहीं और देखा है क्या !<br />कमोवेश हमारे उत्तराखंड के कई गांव के जिसमें हमारा भी गांव है यही हाल है, जिसे जब कभी गांव जाना होता है देखकर बड़ा दुःख होता है, वहां इस बारे में सोचने वाला कोई नहीं, यदि कोई सोचे भी तो वह अपनी दो जून की रोटी की फ़िक्र पहले करता हैऔर फिर यह सब पैसे वालों का खेल होता है, कौन बोले, बेचारी प्रकृति सब सहती रहती है कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-37595072764851635002022-06-25T09:09:42.326+05:302022-06-25T09:09:42.326+05:30प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजे हम सब यदाकदा देखते रहते...प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजे हम सब यदाकदा देखते रहते है फिर भी इससे सबक नहीं लेते| <br /><br />सुंदर आलेख |रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.com