tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post5925663991851301245..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: चाय बिन मांगे , पानी मांगे से हम पिलाने लगे ---एक ग़ज़लडॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger47125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-76052325951845885732011-03-10T05:12:53.664+05:302011-03-10T05:12:53.664+05:30टी.सी. दराल जी
आशीर्वाद
किन पंक्तिओं पर लिक्खूँ...टी.सी. दराल जी <br />आशीर्वाद <br />किन पंक्तिओं पर लिक्खूँ <br />और किन पर नहीं <br />मोगा मोतिओं के शब्दों से गुंथी हुई हैं गजल<br />ऑरकुट पर लोड की और संग्रह में भी <br />धन्यवाद व शुभ कामनाएँगुड्डोदादीhttps://www.blogger.com/profile/10381007322183223193noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-50032857070510647932011-01-02T17:37:39.222+05:302011-01-02T17:37:39.222+05:30बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !aarkayhttps://www.blogger.com/profile/04245016911166409040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-8783168715387813712010-08-11T19:57:37.114+05:302010-08-11T19:57:37.114+05:30बहुत ही बढ़िया...प्रभावशाली रचनाबहुत ही बढ़िया...प्रभावशाली रचनाराजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-54074021968778114662010-06-21T15:39:49.045+05:302010-06-21T15:39:49.045+05:30ज़ालिम पर जब कोई जोर न चला
बना कर पुतला हम जलाने ल...ज़ालिम पर जब कोई जोर न चला<br />बना कर पुतला हम जलाने लगे ।<br />वाह दराल साहब, आप तो शायर भी हैं. बधाई हो.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-19522690004717541962010-06-21T12:50:06.023+05:302010-06-21T12:50:06.023+05:30पूरी गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगेपूरी गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगेसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-234059091092058132010-06-21T12:49:38.108+05:302010-06-21T12:49:38.108+05:30बढ़िया रचना...धन्यवाद डॉ. साहबबढ़िया रचना...धन्यवाद डॉ. साहबसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-36056087485747893512010-06-20T22:20:28.744+05:302010-06-20T22:20:28.744+05:30बहत सुंदर लगी यह ग़ज़ल.बहत सुंदर लगी यह ग़ज़ल.Prem Farukhabadihttps://www.blogger.com/profile/05791813309191821457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-75506074505152872252010-06-20T11:58:04.265+05:302010-06-20T11:58:04.265+05:30राजेन्द्र जी , शुक्रिया ब्लॉग पर आने का और एक आ...राजेन्द्र जी , शुक्रिया ब्लॉग पर आने का और एक आत्मीयता से भरी टिप्पणी देने का ।<br />हमारे लिए तो आप छुपे हुए थे हालाँकि आपको छुपा रुस्तम बिल्कुल भी नहीं कह सकते ।<br />वो तो भला हो हरकीरत जी का , जिन्होंने आपसे परिचय करा दिया और एक उत्कृष्ट ग़ज़लकार और गायक को पढने सुनने का अवसर मिला ।<br />राजेन्द्र जी , हम तो बस यूँ ही हंसी मजाक कर लेते हैं । इसलिए पहले ही बता देते हैं कि भाई हमें ग़ज़ल लिखने का कोई ज्ञान नहीं है , ताकि लोग पढ़कर हम पर न हंसें।<br />सच मानिये , रोमानियत पर ग़ज़ल लिखने का दुस्साहस करने का साहस नहीं हो रहा ।<br />लेकिन असफल ही सही , एक प्रयास करने का प्रयास ज़रूर रहेगा , आपके लिए । शुभकामनायें ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-51691959830801958992010-06-20T09:16:19.758+05:302010-06-20T09:16:19.758+05:30आदरणीय डॉ टी एस दराल साहब
नमस्कार !
सबसे पहले शस्व...आदरणीय डॉ टी एस दराल साहब<br />नमस्कार !<br />सबसे पहले <b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">शस्वरं</a></b> पर पधारने और मेरी मित्र मंडली में सम्मिलित हो'कर मेरी इज़्ज़तअफ़्ज़ाई के लिए शुक्रिया ! आभार !!<br /><br />आपके दोनों ब्लॉगों की सैर की है अभी अभी ।<br />छुपे रुस्तम हैं जनाब । <br />मेडिकल डॉक्टर, न्युक्लीअर मेडीसिन फिजिसियन भी <br />आज तक पर -दिल्ली हंसोड़ दंगल चैम्पियन - नव कवियों की कुश्ती में प्रथम पुरूस्कार भी <br />कितने सारे रूप हैं आपके !<br /><br />… और आपकी ग़ज़ल को तकनीकी बारीकियों में न जाकर , भावार्थ पर ध्यान देकर ही पढ़ा , वाकई आनन्द आ गया ।<br /> और यह आपने हरकीरतजी को क्या लिखा है <b>आज की आपकी पोस्ट पढ़कर अब कुछ समय के लिए व्यंग लिखना बंद कर दिया </b><br />डॉक्टर साहब ! अपने मरीज़ों मेरा मतलब मुरीदों का भी ख़याल रखें । ज़िंदा रहने की सबसे बड़ी ज़रूरत , सबसे बड़ा तोहफ़ा यानी हंसी - मुस्कुराहट बांटना आप बंद कर देंगे तो ज़माने का क्या होगा ?<br />वैसे रूमानियत पर लिखी आपकी ग़ज़लियात का मैं भी इंतज़ार करूंगा । आप जैसे वरिष्ठ का अनुभव जब अभिव्यक्ति के रूप में ढलेगा तो निश्चय ही कुछ उम्दा और बेहतर मिलेगा ।<br /><br />स्नेह - सद्भाव बनाए रखें ।<br /><br />…और हां , <b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">शस्वरं</a></b> को अपनी आशीषों से नवाज़ते रहें ।<br /><br />- राजेन्द्र स्वर्णकार <br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">शस्वरं</a></b>Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-80117763172793001082010-06-19T13:57:27.210+05:302010-06-19T13:57:27.210+05:30पानी की यूँ किल्लत होने लगी
मांगने पर ही पानी पिला...पानी की यूँ किल्लत होने लगी<br />मांगने पर ही पानी पिलाने लगे ..<br /><br />आने वाले समय में ... माँगने पर भी कोई पानी नही पिलाएगा ...बहुत अच्छी ग़ज़ल ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-53673602891045925822010-06-19T10:52:45.464+05:302010-06-19T10:52:45.464+05:30तारीफ जी, आपके तारीफ के लायक विचार, "खाने को ...तारीफ जी, आपके तारीफ के लायक विचार, "खाने को जब कुछ और ना मिला / माटी लड्डू समझ वो खाने लगे ", ने मुझे नदी-जल की भूख तक पहुंचा दिया! मजबूर हूँ! <br /><br />दिल्ली में रहते भी शायद समाचार पत्रों, टीवी आदि से भी कभी-कभी पता चलता रहता है कि कैसे, उदाहरणतया, मणिपुर में एक ३० फुट चौड़ा नाला ३०० फुट चौड़ी नदी बन गया (क्यूंकि थोड़े से समय में उस क्षेत्र में वर्षा-जल की बहुतायत ने भूखे शेर समान उसके तट की माटी पर हमला कर दिया)! या असम में ब्रह्मपुत्र नदी अपने तटों की माटी कई स्थानों पर हर वर्ष खा जाती है, और बाढ़ की समाप्ति पर खायी गई मिटटी को उपजाऊ मिटटी में परिवर्तित कर किसी क्षेत्र में छोड़ जाती है (यह नदी की मानव समान प्राकृतिक कार्य-प्रणाली है, जिसे देख कवियों ने भी उद्गम स्थान से समुद्र तक नदी के बहाव को मानव जीवन समान पाया है,,, और प्राचीन भारतीयों ने नदियों को मानव समान ही नाम भी दिए)... <br /><br />बांधों से सम्बंधित वैज्ञानिक जानते हैं कि कैसे बाँध पानी द्वारा लायी मिटटी को रोक लेते हैं (जैसे हॉकी को गेंद, फुटबॉल आदि को गोलची रोक लेता है)... और इस कारण बांध से छोड़ा गया पानी भूखे आदमी के समान निचले क्षेत्रों की मिटटी खा जाता है, समुद्र-तट की भी! इन कारणों से नदी और समुद्र के तटों के बचाव हेतु उपाय ढूंढें और बनाये भी जाते हैं,,, भले ही वो शत प्रतिशत सफल हों या नहीं...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-70665811183549632192010-06-19T07:07:31.045+05:302010-06-19T07:07:31.045+05:30"खुद का आईने में जो रूप दिखा
अपने साये से कतर..."खुद का आईने में जो रूप दिखा<br />अपने साये से कतराने लगे ।"<br /><br />सत्य वचन!<br />किन्तु, जादुई शीशे में तो नहीं देख रहे हैं कहीं सभी? <br />ऐसा प्राचीन ज्ञानी इस संसार को समझे <br />और इसे 'मिथ्या जगत' कह गए...<br /><br />जबकि 'जगत' मुंडेर को भी कहा उन्होंने<br />एक ब्लैक होल समान गहरे कुएं की <br />जिसके किनारे खड़े-खड़े हम पानी खींचते हैं<br />और खींचते आ रहे हैं सभी नश्वर अनादिकाल से!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-57861156734790025022010-06-18T20:35:56.615+05:302010-06-18T20:35:56.615+05:30पानी की यूँ किल्लत होने लगी
मांगने पर ही पानी पिला...पानी की यूँ किल्लत होने लगी<br />मांगने पर ही पानी पिलाने लगे <br />आब ऐसा ही समय आ गया है । हम तो सोच रहे थे कि दिल्ली गयी तो दराल साहिब के घर भी जायेंगे मगर आपने तो हमे ही डरा दिया। भगवान जाने क्या होगा<br />पूरी गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगेनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-84018974263384713892010-06-18T17:47:57.359+05:302010-06-18T17:47:57.359+05:30हरकीरत जी , आज की आपकी पोस्ट पढ़कर अब कुछ समय के ...हरकीरत जी , आज की आपकी पोस्ट पढ़कर अब कुछ समय के लिए व्यंग लिखना बंद कर दिया है । अगली ग़ज़ल रोमानियत पर लिखने की कोशिश है । लेकिन शायद आप समझी नहीं , अपना तखल्लुस तारीफ ही तो है ( टी फॉर तारीफ)।<br /><br />हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-29165564788743791572010-06-18T17:17:35.243+05:302010-06-18T17:17:35.243+05:30तकनीकी जानकारी तो हमें है नहीं, इसलिए मैंने सिर्फ ...तकनीकी जानकारी तो हमें है नहीं, इसलिए मैंने सिर्फ शब्द और भाव ही देखे, और सचमुच मुझे गजल पसंद आई।<br />--------<br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">भविष्य बताने वाली घोड़ी।</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-54720977486191359992010-06-18T16:53:47.668+05:302010-06-18T16:53:47.668+05:30....लाजवाब!!!....लाजवाब!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-10553919017644308992010-06-18T14:18:54.884+05:302010-06-18T14:18:54.884+05:30After reading the post i was thinking, how..
emoti...After reading the post i was thinking, how..<br />emotional you are,<br />caring you are,<br />considerate you are,<br />and far-sighted above all.<br /><br />'Jal hi jeevan hai 'ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-32340017864994951612010-06-18T13:12:32.091+05:302010-06-18T13:12:32.091+05:30मुर्दों की बस्ती में क्यों 'तारीफ'
गीत देश...मुर्दों की बस्ती में क्यों 'तारीफ'<br />गीत देश प्रेम के सुनाने लगे ।<br /><br />वाह वाह .....अब तो आप कमाल करने लगे ....<br />तारीफ की जगह अपना तखल्लुस लगाइए न ......?<br /><br />मुर्दों की बस्ती में क्यों 'दराल'<br />गीत देश प्रेम के सुनाने लगे ।हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-58950466451693238192010-06-18T10:42:16.414+05:302010-06-18T10:42:16.414+05:30@ खुशदीप जी और वाणी गीत जी
एक फिल्म में विदूषक क...@ खुशदीप जी और वाणी गीत जी <br />एक फिल्म में विदूषक कहता है कि पी तो उसके बाप दादा ने थी, <br />वो तो केवल बोतल देख क़र झूम लेता है:) <br /> <br />आदमी और बोतल में समानता क्या है? पूछा एक ने, <br />तो दूसरा बोला दोनों की एक सीट है और एक गला भी है!<br /><br />और, अंतर क्या है?<br /><br />बोतल का ढक्कन खोल उसे साफ़ किया जा सकता है,<br />किन्तु आदमी का ढक्कन बंद होने के कारण सफाई कठिन है, लगभग नामुमकिन है!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-65379675813022995592010-06-18T04:31:46.438+05:302010-06-18T04:31:46.438+05:30ज़ालिम पर जब कोई जोर न चला
बना कर पुतला हम जलाने लग...ज़ालिम पर जब कोई जोर न चला<br />बना कर पुतला हम जलाने लगे ...<br />और कर भी क्या सकते हैं ...<br /><br />खाने को जब कुछ और ना मिला<br />माटी लड्डू समझ वो खाने लगे ...<br /><br />बहुत प्रगति कर ली है देश ने ....अमीर और अमीर गरीब और गरीब ...भूखमरी को दर्शाती अच्छी पंक्तियाँ ...<br /><br />पानी की किल्लत है बिना मांगे चाय पिलाने लगे ....गनीमत है ...बात बोतल तक नहीं पहुंची ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-11004070001878530802010-06-18T01:01:32.405+05:302010-06-18T01:01:32.405+05:30डॉक्टर साहब,
फिक्र क्यों करते हैं मेहमानों के लिए ...डॉक्टर साहब,<br />फिक्र क्यों करते हैं मेहमानों के लिए भी टीचर का कोटा बढ़ा लीजिए न...सब दुआएं देंगे...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-46820327412729455862010-06-18T00:28:54.061+05:302010-06-18T00:28:54.061+05:30बहत सुंदर लगी यह ग़ज़ल....बहत सुंदर लगी यह ग़ज़ल....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-31760291183724143962010-06-18T00:08:52.963+05:302010-06-18T00:08:52.963+05:30इतनी सच्ची बात इतने सरल शब्दों में ...वाह ।इतनी सच्ची बात इतने सरल शब्दों में ...वाह ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-62934829477163941172010-06-17T22:53:03.425+05:302010-06-17T22:53:03.425+05:30डॉक्टर साहब... सोचा कुछ सर्जरी करके दुरुस्त करूँ.....डॉक्टर साहब... सोचा कुछ सर्जरी करके दुरुस्त करूँ.. फिर लगा कि पत्थर में जो स्वाभाविक ईश्वर का रूप दिखता है, उसे कला का नाम देकर क्यों तराशूँ... बहुत खूबसूरत रचना...और उससे भी ख़ूबसूरत भाव!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-49916345846232091942010-06-17T22:51:58.970+05:302010-06-17T22:51:58.970+05:30डॉक्टर साहब... सोचा कुछ सर्जरी करके दुरुस्त करूँ.....डॉक्टर साहब... सोचा कुछ सर्जरी करके दुरुस्त करूँ.. फिर लगा कि पत्थर में जो स्वाभाविक ईश्वर का रूप दिखता है, उसे कला का नाम देकर क्यों तराशूँ... बहुत खूबसूरत रचना...और उससे भी ख़ूबसूरत भाव!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.com