tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post4666662093585517554..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: जीवन के संघर्ष में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए परिवार और वाहन नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है --- डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-71585873487365862602016-02-08T15:47:40.717+05:302016-02-08T15:47:40.717+05:30प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया पांडेय जी। बेशक लेखन मे...प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया पांडेय जी। बेशक लेखन में कोई सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। लेखन लेखक के मनोभावों के लिए कथार्सिस का कार्य करता है। इसलिए कोई पढ़े या न पढ़े , टिप्पणी करे या करे , इन बातों से ऊपर उठकर लेखन से दूर रहना निश्चित ही असंभव सा है। हाँ , अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा ब्लॉग लिखने में , क्योंकि इसमें समय बहुत लगता है , लिखने और पढ़ने में भी। फेसबुक टी २० की तरह सब पर छाया हुआ है। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-80978869620828479102016-02-08T15:31:15.148+05:302016-02-08T15:31:15.148+05:30नमस्कार
आपके 31 दिसंबर के पोस्ट को पढ़कर कुछ अच्छा...नमस्कार<br />आपके 31 दिसंबर के पोस्ट को पढ़कर कुछ अच्छा नहीं लगा था। कवि सुभाष चक्रवर्ती की बांग्ला कविता है- फूल फूटक ना फूटक आज वसंत- अर्थात फूल खिले न खिले आज वसंत है। वाकई कोयल को कूकना नहीं भूलना चाहिए। बहुत ही अच्छा लगता था कि एक चिकित्सक होने के बावजूद आप शारीरिक चर्या से कहीं अधिक अपने पाठकों के साथ मानसिक चर्या में बड़े ही सलीके से संलग्न थे। हठात् 31 दिसंबर के आपके उस पोस्ट से आपकी थोड़ी सी निराशा झलकी लेकिन पुनः आपको रचनारत देख काफी अच्छा लगा। वाकई फूल खिले न खिले आज वसंत है। पाठकों की प्रतिक्रिया निश्चित हौसला बढ़ाती है, कुछ कहने-सुनने को लेकिन कोयल कूकना भूल जाए, यह कहां अपेक्षित है। मैं भी तो आपके ब्लाग का अरसे से पाठक हूं लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि आपके लेखनी की जीवंतता मुझे अच्छी नहीं लगती थी-है। बस चुपचाप पढ़ता और निकल जाता था। 31 की आपकी घोषणा पर भी मैंने कुछ नहीं कहा- लेखक की इच्छा सदैव सर्वोपरि होती है लेकिन पुनः ब्लाग लेखन में आपकी वापसी ने प्रमाणित किया है कि वह जो फूल आपके मानस में प्रस्फुटित है उसे कदापि नहीं मुरझाने दें। शब्द ही हृदय जोड़ते हैं। अतः शब्दों को निरंतर निर्झर बहने दें।- कमलेश पांडेय, मो. 09831550640<br /> Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-47216596773120885652016-02-05T22:16:56.905+05:302016-02-05T22:16:56.905+05:30काश, लोग यह समझते..काश, लोग यह समझते..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-34381646157011048162016-02-05T11:33:11.027+05:302016-02-05T11:33:11.027+05:30सहमत हूँ!सहमत हूँ!Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.com