tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post3367952678195965212..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: वो खिड़की जो कभी बंद , कभी खुली रहती थी --- एक संस्मरण .डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger51125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-31381785535102460172012-06-06T12:07:33.489+05:302012-06-06T12:07:33.489+05:30आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
...आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार<br /> आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...<br /> आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......<br />मेरा एक ब्लॉग है <br /><br />http://dineshpareek19.blogspot.in/Dinesh pareekhttps://www.blogger.com/profile/00921803810659123076noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-88411547996059722952012-06-06T07:02:38.208+05:302012-06-06T07:02:38.208+05:30JCJune 06, 2012 7:01 AM
मानव मस्तिष्क तो सभी को पत...JCJune 06, 2012 7:01 AM<br />मानव मस्तिष्क तो सभी को पता चल जाता है कि वो एक अद्भुत उपकरण तो है, किन्तु विचित्र भी है क्यूंकि हर व्यक्ति में यह एक सा काम नहीं करता... और जिस कारण हर व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न कार्य करता दिखाई देता है... जिसमें मुख्य कारण होता है भिन्न भिन्न विचारों के हरेक के मस्तिष्क पर आना - एक ही विषय पर... उदहारणतया, मैं लंच के बाद यदि कभी कहता कि चलो कोला पीलें तो मेरा मित्र कहता कि कोला नहीं केला खाते हैं, उस से सेहत अच्छी रहेगी और लम्बी उम्र पा देर तक पेंशन खायेंगे (और उदाहरण के लिए अपने किसी रिश्तेदार के विषय में बताता कि सर्विसे कम किन्तु पेंशन अधिक काल तक पाए)!...<br />जब कोई छुट्टी निकट होती है, भले ही रविवार हो, तो मन में पहले से ही विचार आने लगते हैं कि उसे कैसे बिताएंगे (जैसे आपने ३६ वर्ष पूर्व अपने सरकारी निवास स्थान जाने का निर्णय लिया)... और यदि छुट्टी लम्बी हो तो कोई, गर्मियों में जैसे, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी विदेशी रमणीय स्थल में मजा करने का निर्णय लेता है, आदि आदि, और भले-बुरे अनुभव को सहेज कर मस्तिष्क में ही कहीं रख उन को मन में समय समय पर दोहराता है, जिस कारण प्रकृति की विविधता को दर्शाते विभिन्न प्रतिबिम्ब हर क्षेत्र में देखने को मिल जाते हैं...<br />यहीं पर, गीता में जैसे, अपने ही पूर्वजों के प्राचीन विचार पढ़ आभास होता है कि इसी मिटटी में योगी, सिद्ध आदि, परोपकारी जीव, तपस्या कर मन में ही और अधिक गहराई में जा मानव शरीर का सही उद्देश्य जानने का प्रयास कर चुके हैं, और अन्य लोगों के हित में भी उपदेश दे गए... जिसकी झलक विबिन्न रीती-रिवाज, पूजा-त्यौहार आदि में प्रतिबिंबित होती है...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-28298924028754408392012-06-05T12:16:24.954+05:302012-06-05T12:16:24.954+05:30लौटना फिर उन्हीं गलियों से ..लौटना फिर उन्हीं गलियों से ..M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-76938053814587193302012-06-05T07:24:31.546+05:302012-06-05T07:24:31.546+05:30गोदियाल जी ने सही कहा... प्राचीन मान्यतानुसार भी व...गोदियाल जी ने सही कहा... प्राचीन मान्यतानुसार भी व्यक्ति से अधिक उसके नाम की महिमा अधिक होती है और 'इंदिरा' नाम देवताओं के राजा इंद्र समान भी सुनाई देता है, जो वर्षा के भी देवता हैं, अर्थात इसलिए सूर्य के प्रतिरूप कहे जा सकते हैं ... <br />और, इंद्र देवता के लिए प्रसिद्द है कि वे गौतम ऋषि का रूप रख अहल्या के शिला में परिवर्तित होने का कारण भी बने... जिसे फिर से नारी बनाना धरा पर प्रकाश और शक्ति के स्रोत, सौर-मंडल के राजा सूर्य समान 'धनुर्धर' सूर्यवंशी राजकुमार राम के लिए ही संभव था! अर्थात इंद्र/ सूर्य देवता किसी भी साकार रूप में आ सकते हैं... <br />और दूसरी ओर मान्यता भी है कि 'भगवान् किसी भी रूप में आ सकते हैं' और हमारी गैलेक्सी के केंद्र में अवस्थित 'ब्लैक होल' अर्थात 'कृष्ण' को भी बहुरुपिया कहा गया है!!! <br />इन कारणों से कह सकते हैं कि मानव जगत में कुछ भी चित्र-विचित्र होता दिखाई दे सकता है - वो एक ड्रामा अर्थात शक्तिरूपी निराकार शिव द्वारा रचित 'रामलीला' अथवा 'कृष्णलीला' ही समझी जा सकती है...:)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-47058821808114198482012-06-04T18:26:24.379+05:302012-06-04T18:26:24.379+05:30@ ",, कभी कभी इन यादों में डूबना मेडिटेशन जै...@ ",, कभी कभी इन यादों में डूबना मेडिटेशन जैसा अहसास देता है..."... संकेत सा है भगवान् विष्णु का तथाकथित अनंत/ शेषनाग पर योगनिद्रा में लेटे रहने का, बाहरी संसार को भूले दीखते किन्र्तु वास्तव में बेखबर नहीं!... <br />जिसे विष्णु के कानों की मैल से उत्पन्न दो राक्षसों के आकार में बढ़ने और उनके द्वारा खाए जाने की आशंका से भयभीत ब्रह्मा को, जिन्हें विष्णु के नाभि-कमल से उत्पन्न होते माना जाता है, सही समय आने पर ही उन राक्षसों को दबोच लेने की कथा द्वारा दर्शाया जाता आया है... <br />और ऐसे ही द्वापर में भी, 'महाभारत' में, सन्दर्भ आता है कर्ण के कुंती के कान से उत्पन्न होने का और इस प्रकार उसे वास्तव में पांच पांडवों का भाई होने का!!! <br />ऐसी कथाएँ संकेत हैं सत्य तक पहुँचने के लिए मानव मस्तिष्क के सही उपयोग किये जाने की आवश्यकता का - युग विशेष की प्रकृति को ध्यान में रख, निरंतर अभ्यास और भौति व्यायाम के अतिरिक्त मानसिक और आध्यात्मिक व्यायाम द्वारा भी... क्यूंकि मानव जीवन का उद्देश्य शिव अर्थात सत्य को पाना है...:)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-32459146644996520612012-06-04T14:03:35.641+05:302012-06-04T14:03:35.641+05:30बहुत ही सुंदर संस्मरण ...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दि...बहुत ही सुंदर संस्मरण ...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-16687692589288966492012-06-04T11:24:07.435+05:302012-06-04T11:24:07.435+05:30और यदि योगियों / सिद्धों द्वारा तपस्या द्वारा प्रा...और यदि योगियों / सिद्धों द्वारा तपस्या द्वारा प्राप्त ज्ञान का कोई अनुमान लगायें तो पा सकते हैं कि उन्होंने मानव शरीर को सूर्य से ले कर शनि तक 'नवग्रहों' के सार से बना जाना... <br />जिसमें से शनि ग्रह के सार को स्नायु तंत्र. अर्थात नर्वस सिस्टम, के निर्माण में और इस प्रकार इस तंत्र के द्वारा शक्ति को आठ अन्य शक्ति पीठों, चक्रों, से ऊपर अथवा नीचे बहना जाना - मस्तिष्क से सीट अर्थात मूलाधार तक, जहां क्रमशः चन्द्रमा और मंडल ग्रह के सार को उपलब्ध जाना - अथवा मूलाधार से सहस्रार तक ऊपर... <br />जबकि पेट में सूर्य के सार अर्थात जठराग्नि को... <br />सम्पूर्ण ज्ञान के लिए किन्तु निरंतर अभ्यास और व्यायाम द्वारा सभी आठ चक्रों में उपलब्ध शक्ति और सूचना को मस्तिष्क तक उठाना ही मानव का कर्तव्य समझा... <br />किन्तु वर्तमान में काल की प्रकृति के कारण क्षमता लघाग शून्य अथवा इस के निकट होने के कारण हम अपने पूर्वजों को ही मूर्ख और अंधविश्वासी कहते हैं... "हाय रे इंसान की मजबूरी/ पास रह कर भी दूरियां..."... :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-62812426223656590992012-06-04T11:19:22.805+05:302012-06-04T11:19:22.805+05:30बढ़िया ऑटोबायोग्राफी डा० साहब ; कुछ बिंदु थे जिन प...बढ़िया ऑटोबायोग्राफी डा० साहब ; कुछ बिंदु थे जिन पर हास-परिहास के गुंजाइश थी किन्तु लेट लतीफ़ पहुंचा, मेरे से पहले ही धुरंदरों ने बाजी मार ली ! :)<br />हाँ, एक बिंदु अछूता है चलो उसी को टिपिया लेता हूँ ......... "लेकिन रोज सुबह इंदिरा गाँधी जी के घर पर जाकर शीश नवाते । आखिर , एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई । उन्हें सेनिटेशन डिपार्टमेंट में किसी कमिटी का चेयरमेन बना दिया गया । " ...........लोग उनके वर्तन माझकर राष्ट्रपति बन गए, ये तो कुछ भी नहीं ! :)पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-50022626023522135772012-06-04T10:44:23.810+05:302012-06-04T10:44:23.810+05:30और यदि वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा शोध से प्राप...और यदि वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा शोध से प्राप्त ज्ञान की ओर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि सबसे ज्ञानी व्यक्ति भी मस्तिष्क में अरबों सेल होते हुए भी उन में से केवल नगण्य का ही उपयोग कर पाता है! <br />और इसे समझने के लिए सहायता लेनी होगी प्राचीन 'हिन्दू' मान्यता से, अर्थात उन भारतीयों से जो शिव के माथे पर इंदु अर्थात चन्द्रमा परम्परानुसार दिखाते आ रहे हैं अनादि काल से... और चंद्रमा के चक्र के अनुसार तिथि, त्यौहार आदि का निर्धारण करते आते हैं... और मान्यता है कि मानव कि क्षमता युग पर निर्भर करती है - यदि क्षमता सैट युग के आरंभ में १००% थी तो कलियुग में वो केवल २५ से ०% के बीच ही रह जाती है...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-10006793116800256312012-06-04T10:34:10.302+05:302012-06-04T10:34:10.302+05:30This comment has been removed by the author.JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-35602666135441247662012-06-04T10:31:08.381+05:302012-06-04T10:31:08.381+05:30डॉक्टर साहिब, अली जी, यहाँ यह भी कहा जा सकता है कि...डॉक्टर साहिब, अली जी, यहाँ यह भी कहा जा सकता है कि यदि आप ने संस्मरण के शीर्षक, "वो खिड़की जो कभी बंद , कभी खुली रहती थी", को एक्यूपंक्चर की मान्यता के सन्दर्भ में देखा होता, तो संभवतः प्रकृति के संकेत भी देखे होते... क्यूंकि हजारों साल से मान्यता है कि मानव शरीर को शक्ति के बहाव की बारह (१२) नालियों/ नलिकाओं द्वारा समझा गया है जो शरीर के बारह मुख्य अंगों, ह्रदय, आदि तक आवश्यक शक्ति को प्रति क्षण पहुंचाने का काम करती रहती हैं... और शरीर स्वस्थ तभी रह सकता है जब इस बहाव में (शरीर के दोनों, दांये और बायें, बारह-बारह अंगों से जुड़े) शरीर कि चमड़ी में कोई खिड़की बंद न हो... जिस कारण वातावरण से सही ऊर्जा शारीरिक अंगों को न मिल पाए, और परिणाम स्वरुप किसी बीमारी के लक्षण प्रतीत होने लगे... और इस का सही इलाज बंद खिडकियों में सुई चुभा उनके माध्यम से आवश्यक शक्ति को उन अंगों तक पहुंचाना है... <br />यह विधि आर्थिक रूप से सबसे सस्ती और सरल होने के कारण सभी आर्थिक वर्ग को उपलब्ध कराई जा सकती है... किन्तु दूसरी ओर इस के लिए सही खिडकियों का पता भी होना आवश्यक है...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-69699688558563206662012-06-04T09:48:11.700+05:302012-06-04T09:48:11.700+05:30राधारमण जी , हमें तो बस सलमा सुल्तान , मीनू ( तलवा...राधारमण जी , हमें तो बस सलमा सुल्तान , मीनू ( तलवार ) और मंजरी जोशी याद हैं . :)डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-84522796445777238192012-06-04T05:56:31.068+05:302012-06-04T05:56:31.068+05:30जारी रहिये..जुड़े है साथ साथ खोये खोये से...अपनी य...जारी रहिये..जुड़े है साथ साथ खोये खोये से...अपनी यादों में...:)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-3851678027167918542012-06-03T19:43:05.566+05:302012-06-03T19:43:05.566+05:30उन दिनों दूरदर्शन पर, बॉब कट वाली प्रस्तुतकर्ता सा...उन दिनों दूरदर्शन पर, बॉब कट वाली प्रस्तुतकर्ता साप्ताहिकी के सबसे अंत में, कितना इतराते हुए बताती थी कि रविवार को कौन सी फिल्म दिखाई जानी है,याद है?कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-6195101000183115532012-06-03T17:34:00.906+05:302012-06-03T17:34:00.906+05:30महके यादों के सुमन….. सुंदर स्मृतियाँ सर...
सादर...महके यादों के सुमन….. सुंदर स्मृतियाँ सर... <br />सादर।S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')https://www.blogger.com/profile/10992209593666997359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-62500211252973598692012-06-03T16:11:55.789+05:302012-06-03T16:11:55.789+05:30पल्लवी जी , बेशक बचपन की यादें और यादों में बचपन ब...पल्लवी जी , बेशक बचपन की यादें और यादों में बचपन बहुत थ्रिल करता है . कभी कभी इन यदों में डूबना मेडिटेशन जैसा अहसास देता है.डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-39440405956662953842012-06-03T15:27:44.957+05:302012-06-03T15:27:44.957+05:30बहुत खूबसूरत है आपकी यादों का सफर.... :-) हमारे जम...बहुत खूबसूरत है आपकी यादों का सफर.... :-) हमारे जमाने में टीवी तो घर-घर आ गया था। मगर हर बुधवार को फिल्म और चित्रहार देखने का मज़ा ही कुछ और हुआ करता था और जब कभी फ़िल्म फैयर एवार्ड आते थे, तो हम लोगों का खाना ऊपर मम्मी पापा के बेडरूम में हुआ करता था क्यूंकि उन दिनों हम जिस घर में रहा करते थे वहाँ रसोई और बैठक नीचे और हम लोगों के बडरूम ऊपर की मंज़िल में हुआ करते थे इस सबके चलते हम लोगो चुपके-चुपके टीवी ना देखे इसलिए उन्होने टीवी जानबूचकर अपने कमरे में रखा हुआ था। :) आपकी इस पोस्ट के बाहने हामरी भी कुछ यादें ताज़ा हो गयी डॉ साहब आभार :-)Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-52213949802354444472012-06-03T15:27:28.408+05:302012-06-03T15:27:28.408+05:30नासवा जी, राज़ तो नहीं लेकिन एक महत्त्वपूर्ण बार ज...नासवा जी, राज़ तो नहीं लेकिन एक महत्त्वपूर्ण बार ज़रूर सामने आएगी.डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-37071401953620545162012-06-03T15:25:46.090+05:302012-06-03T15:25:46.090+05:30जी शुक्रिया.जी शुक्रिया.डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-19125498002145128042012-06-03T15:16:26.455+05:302012-06-03T15:16:26.455+05:30आप अपनी यादों के झरोखे से कुछ बता रहे हैं या दूसरो...आप अपनी यादों के झरोखे से कुछ बता रहे हैं या दूसरों की यादों के झरोखे में तीली मार रहे हैं ...<br />कुछ पुरानी यादें हमारी भी ताज़ा हो गईं ... पतनक उदाना, लट्टू और कंचे खेलना ... पड़ोसियों के यहां जा कर टी वी देखना ... यादगार लम्हों की दास्ताँ ... <br />आकरी किश्त में धमाका होने वाला है ... कोई राज खुलने वाला है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-88788954081917974732012-06-03T15:13:17.234+05:302012-06-03T15:13:17.234+05:30आप अपनी बात को अपने अंदाज़ में कहने में सफल रहे हैं...आप अपनी बात को अपने अंदाज़ में कहने में सफल रहे हैं , ऐसे संसमरण बार बार पढने को मन करता है.Darshan Darveshhttps://www.blogger.com/profile/12199453189017666485noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-20137769841576879162012-06-03T13:52:59.638+05:302012-06-03T13:52:59.638+05:30ये यादेँ ही हैं ....जिन्हें हम पीछे छोड़ आते हैं ....ये यादेँ ही हैं ....जिन्हें हम पीछे छोड़ आते हैं ....<br />पर वो हमेशा साथ-साथ चलती हैं ....हमेशा हमारा साथ देने के लिए !!!<br />सुहानी यादेँ मुबारक हों ....अशोक सलूजाhttps://www.blogger.com/profile/17024308581575034257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-80547658449276621242012-06-03T12:25:11.658+05:302012-06-03T12:25:11.658+05:30badi rochak yaden hain......badi rochak yaden hain......mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-23292711918326400312012-06-03T10:35:34.179+05:302012-06-03T10:35:34.179+05:30वाह दोस्तों के साथ के हर लम्हे यादगार होते हैं ।वाह दोस्तों के साथ के हर लम्हे यादगार होते हैं ।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-72092627429443207712012-06-03T10:20:10.961+05:302012-06-03T10:20:10.961+05:30पोस्ट में मर्म को सही पहचाना है आपने पाण्डे जी . ब...पोस्ट में मर्म को सही पहचाना है आपने पाण्डे जी . बेशक संस्मरण की यही अहमियत होती है . आभार .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.com