tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post3136642973356125913..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: कल फिर दिल के सारे अरमान पिच की भेंट चढ़ गए---बस हम बच गए।डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-89397334249489352812010-08-11T16:11:26.985+05:302010-08-11T16:11:26.985+05:30चलो!...पैसे तो बच गए...चलो!...पैसे तो बच गए...राजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-44214145286535904732009-12-29T11:57:27.836+05:302009-12-29T11:57:27.836+05:30कुछ कुछ-कुछ ऐसा ही मौका कहते हैं इंग्लैंड के तेज-ग...कुछ कुछ-कुछ ऐसा ही मौका कहते हैं इंग्लैंड के तेज-गति बोलर लारवुड को भी मिला था क्यूंकि वो भी किसी लोकल मैच में, सीताराम की तरह, सफ़ेद ड्रेस में मौजूद था. वहां सारे बॉलर गेंद डाल चुके थे किन्तु बल्लेबाज आउट नहीं हो रहा था. फिर उससे पूछा गया वो बोल कर सकता है? उसे गेंद दे दी गयी...<br /><br />पहली गेंद उसने थोडा ही दौड़ की, और वो एल बी डब्लू आउट था लेकिन बल्लेबाज को आउट नहीं दिया गया...फिर उसने और लम्बा रन लिया और तेज़ गेंद फैंकी, बल्ले का छोटा किनारा लिया, अपील कैच क़ी हुई पर आउट नहीं दिया गया...अब उसने अपने पूरे कदम नापे और तेज़ गेंद फेंक स्टंप को उखाड़ फेंका...और इस तरह वो इंग्लैंड कि टीम में भर्ती किया गया...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-32161323275351851582009-12-29T11:25:01.039+05:302009-12-29T11:25:01.039+05:30मैंने बचपन में सारे खेल खेले, पर क्रिकेट का मैं दी...मैंने बचपन में सारे खेल खेले, पर क्रिकेट का मैं दीवाना रहा था और अपने कार्यालय के लिए भी कुछेक मैच खेला...अपने ही नहीं अन्य भारतीयों के हाई ब्लड प्रेसर को भी मैं इसीके कारण मानता था, क्यूंकि हमारी, भारत की, टीम हमेशा जीतते-जीतते भी हार जाती थी. आजकल लेकिन कुछ सुधार हुआ है - टीम स्पिरिट बढ़ी है - और नाम रोशन किया है युवा खिलाडियों ने. पहले कई खिलाडी भूखे मर जाते थे बुढ़ापे में. अब तो कुछ एक की पांचों उंगलियाँ घी में हैं, और ऐसा लगता है कि क्रिकेट का खेल भी उनके सर के सामान कढाई में है! पैसों की अधिकता के कारण, बी सी सी आई के पास भी, जो एक पुरानी कहावत के अनुसार 'सर पर चढ़ कर बोलता है'... <br />पहले एक अनपढ़ सा सीताराम नमक आदमी होता था जो पिच तैयार करता था डी ड़ी सी ए के लिए...एक लोकल मैच में, जिसमें प्रसिद्ध खिलाडी सी के नायडू खेल रहे थे उसको भी मौका मिल गया किसी घायल खिलाडी के स्थान पर फील्डिंग करने का. संयोग वश कई गेंद लगातार सीताराम की ही दिशा में गयीं और उसे खूब दौड़ना पड़ा. तब उसकी माँ, जो वहां मौजूद थी, उसको दुःख हुआ कि उसके बेटे को ही लोग दौड़ा रहे थे :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-79190291580448740312009-12-29T01:03:02.697+05:302009-12-29T01:03:02.697+05:30डंडे का बड़ा ख़ौफ़ रहता है भीड़ में कभी भी कुछ हो ...डंडे का बड़ा ख़ौफ़ रहता है भीड़ में कभी भी कुछ हो सकता है सो आपने बहुत बढ़िया किया जो वहाँ से निकल लिए..बढ़िया व्यंगबोध..सटीक और सुंदर चित्रण यह परेशानी जो अक्सर दिल्ली पिच पर मिलती है..अब देखते है आगे क्या होता है..वैसे एक बार फिर कहूँगा बेहतरीन व्यंग..धन्यवाद स्वीकारें..विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-17065895555772921802009-12-28T20:10:01.097+05:302009-12-28T20:10:01.097+05:30डा.दराल साहिब ~ मैं स्कूल के दिनों में इतिहास और भ...डा.दराल साहिब ~ मैं स्कूल के दिनों में इतिहास और भूगोल में गोल था...सिर्फ याद करने के लिए 'गू खा तसले में' बड़ों से सीखा, यानी खैबर पास से गुलाम वंश से लेकर मुग़ल वंश कौन-कौन सोने की चिड़िया को लूटने आये...हर कसी के लिए लिख देते थे कि उसके समय में सड़कें, सराय,,,, आदि आदि बनीं :) बचपन में इस कारण जब हम फिरोजशाह कोटला में कई मैच देखने आये तो मुझे भय नहीं लगा. यह तो बाद में ही जाना कि निकट में ही वहाँ एक खूनी दरवाज़ा भी है (जब कुछ वर्ष पूर्व उसके निकट स्तिथ मेडिकल कॉलेज समाचार में दुर्भाग्य पूर्ण घटना के कारण आया)...गूगल कर के पता चला कि कैसे काबुली दरवाज़े का नाम खूनी दरवाज़ा पड़ गया था - यह दरवाजा मूक दर्शक रहा है सदियों से आम जनता के कत्ले आम का... <br /><br />मैं डराना तो नहीं चाह रहा था, किन्तु इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल आदि ने भी दिल्ली के इतिहास, साम्राज्यों के पनपने और फिर ध्वंस होने का कारण प्राचीन मान्यतानुसार जिन्नों को बतलाया. इस दृष्टिकोण से क्या कोई कह सकते हैं कि शायद यह एपिसोड उन जिन्नों कि ही शरारत का नतीजा हो सकता है?JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-2470264206154911882009-12-28T20:01:55.888+05:302009-12-28T20:01:55.888+05:30क्रिकेट का बुखार ऐसा ही होता है!क्रिकेट का बुखार ऐसा ही होता है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-24597057593166619412009-12-28T19:56:14.180+05:302009-12-28T19:56:14.180+05:30अब देश कि तो फजीहत हो ही गई...... बहुत अच्छा लगा आ...अब देश कि तो फजीहत हो ही गई...... बहुत अच्छा लगा आपका यह लेख....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-59479693686380405212009-12-28T18:28:03.230+05:302009-12-28T18:28:03.230+05:30आप अपने बचने की खुशी मनाइए मगर मैं तो टी०वी० में म...आप अपने बचने की खुशी मनाइए मगर मैं तो टी०वी० में मैच न देख पाने से भी दुःखी हूँ।<br />उन पर क्या बीती होगी जो बिचारे टिकट या पास का जुगाड़ कर घंटों तपस्या के बाद मैच देखने आए थे<br />और सबसे बड़ी बात कि राष्ट्र की जो छवि धूमिल हुई उसका क्या<br />कल का दिन खेल जगत के लिए शर्मनाक था.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-53636589868060763102009-12-28T16:49:27.324+05:302009-12-28T16:49:27.324+05:30एक दम सही ! मन की खीज कहीं साफ़ झलक रही है आपके लेख...एक दम सही ! मन की खीज कहीं साफ़ झलक रही है आपके लेख में ! अभी तो दिल्ली के ये ठेकेदार कॉमन वेल्थ पर न जाने क्या गुल खिलाते है ! इन politicians ने बेड़ा गरक करके रख दिया हर चीज का !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-11154478672639952552009-12-28T16:24:26.911+05:302009-12-28T16:24:26.911+05:30मैं सिर्फ आपकी लाइव क्रिकेट देखने की दीवानगी और न ...<b>मैं सिर्फ आपकी लाइव क्रिकेट देखने की दीवानगी और न देख पाने की उदासी समझ सकता हूँ.</b><br /><br />वैसे आजकल मुझे क्रिकेट से लगाव नहीं रह गया है. लेकिन मन तो चाहता है की लाइव स्टेडियम दिल्ली में देखूं.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-3705131572590462472009-12-28T12:59:31.500+05:302009-12-28T12:59:31.500+05:30सर आप तो बच गये लेकिन इस वाकये के बाद दिल्ली और हम...सर आप तो बच गये लेकिन इस वाकये के बाद दिल्ली और हमारे देश की फजीहत हो गयी । जिन नाकाम लोगों को बाहर किया गया है कुछ दिन बाद वही चेहरे वापस आ जायेंगे , जैसे मुम्बई में आर.आर.पाटिल वापस आ गयेअजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-73487197382588852132009-12-28T12:07:22.412+05:302009-12-28T12:07:22.412+05:30ताऊ (हरयाना और हिंदी ) से मुझे याद आया कि कैसे बहु...ताऊ (हरयाना और हिंदी ) से मुझे याद आया कि कैसे बहुत वर्ष पहले मैं एक बार डीटीसी की बस से सफ़र कर रहा था और आगे की ओर भीड़ के कारण खड़ा था...गुरुद्वारा रोड के बस स्टॉप तक थोड़ी भीड़ छट गयी थी...तभी मैंने कंडक्टर को कहते सुना "ताऊ, आगे नै होज्जा" मैंने सोचा कोई बूढा हरियाणवी होगा जिसे वो कह रहा था आगे बढ़ने को. किन्तु जब उसने वही वाक्य दोहराया तो मैंने मुडके देखा कि खड़े होने वालों में केवल मैं ही अकेला था :) और मैं आगे बढ़ गया...और किसी दिन टीवी में जब मैंने किसी को यह कहते सुना कि ताऊ देवी लाल एक दिन पी.एमं बनेगा तो मुझे तसल्ली हुई कि कंडक्टर ने मुझे अभद्रता पूर्वक संबोधित नहीं किया था :) <br /><br />भूटान में ऐसे ही मुन्ना लाल ने किसी भूटानी से कहा "तेरा बिल नहीं बना अभी" तो वो उसको गर्दन से पकड़ लिया था और मुझे बीच-बचाव करना पड़ा...तब उसने बताया कि कैसे वो तो आप-आप करता है (भारत में आर्मी में ट्रेनिंग ले चुका था) और मुन्ना लाल उसे 'तू' कहता है, जैसे वो कोई जानवर है...<br /><br />भारत में तो इतनी भाषाएँ प्रयोग में लाई जाती हैं कि आम आदमी घर से २० किलोमीटर दूर निकल जाए तो संभव है अज्ञानी सा लगे...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-76131833210966435042009-12-28T10:49:59.508+05:302009-12-28T10:49:59.508+05:30काजल भाई की बात सच होती लग रही है मेरे को तो. नये ...काजल भाई की बात सच होती लग रही है मेरे को तो. नये साल की रामराम.<br /><br />रामरामताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-67665075679877737682009-12-28T09:43:33.221+05:302009-12-28T09:43:33.221+05:30DDCA की मानें तो इस तरह के प्रसन्नता के मौक़े आते ...DDCA की मानें तो इस तरह के प्रसन्नता के मौक़े आते ही रहेंगेKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-1741956312523514862009-12-28T06:44:48.274+05:302009-12-28T06:44:48.274+05:30डा. दराल साहिब ~ बहुत सुंदर वर्णन! दर्शकों ने नहीं...डा. दराल साहिब ~ बहुत सुंदर वर्णन! दर्शकों ने नहीं सोचा था कि यह 'मिथ्या जगत' कहलाई गयी धरती ही 'पिच' के रूप में प्राचीन कथन को सार्थक कर दिखाएगी और लंका कि स्वयं ही साक्षात् रूप में पिटाई करेगी :) <br /><br />"जो-जो जब-जब होना है / सो-सो तब-तब होता है" ऐसी शिक्षा क्रिकेट के खेल से मिलती है - तेंदुलकर जीरो में भी आउट हो जाता है कभी-कभी, और स्टेडियम में बैठे हजारों - भले ही 'पास' से आये हो, या दूर से किसी भी कीमत का टिकेट खरीद - निराश हो घर नहीं लौट जाते. क्यूंकि 'उम्मीद पर दुनिया कायम है', आशा करते हैं कि कोई और 'तेंदुलकर' शतक मारेगा...शायद ये सीरीस तभी ख़तम हो गयी थी जब भारत ३-१ से आगे हो गए थे, 'धोनी के धुरंधर' क़ी कृपा से नहीं, बल्कि 'नजफगढ़ के नवाब के दरबारियों' के कारण, और ख़ुशी हुई दिल्ली निवासी उसके साथी, गंभीर, को 'सीरिअस' हो खेल अपने नाम को सार्थक करते देख :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-74208520890347841482009-12-28T06:28:46.920+05:302009-12-28T06:28:46.920+05:30यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक ल...यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं। <br /><br /><b>हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.</b> <br /> <br />मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं. <br /><br />निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है। <br /><br />एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।<br /><br />आपका साधुवाद!!<br /><br />शुभकामनाएँ!<br />समीर लाल <br />उड़न तश्तरीUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-27979774852363340022009-12-28T06:21:41.836+05:302009-12-28T06:21:41.836+05:30दराल सर,
अब तो आपको मेरी दूरदर्शिता की दाद देनी ही...दराल सर,<br />अब तो आपको मेरी दूरदर्शिता की दाद देनी ही होगी...आपको पास या टिकट मिल जाता तो फंस जाते न बेकार ही...बोतलें,चप्पल कोटला पर कल जमकर चले...मैच रद्द होने के बाद जो लोग अंदर थे उनका बाहर आना मुश्किल हो गया, कई घंटे की मशक्कत के बाद बाहर आ पाए...खैर अपने बाबूजी (स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन) ऐसे ही मौकों के लिए फरमा गए हैं...मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.com