tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post2949637761256737910..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: आए तुम याद मुझे --जिंदगी के ३६ साल बाद ---डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-10742873757258631132012-08-31T06:36:06.038+05:302012-08-31T06:36:06.038+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्च...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!<br />आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के <a href="http://charchamanch.blogspot.in/2012/08/988_31.html" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर भी की गई है!<br />सूचनार्थ!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-78389432572773747252012-06-05T12:13:33.503+05:302012-06-05T12:13:33.503+05:30बचपन जब आगोश में लेता है तो वर्तमान गुम हो जाना चा...बचपन जब आगोश में लेता है तो वर्तमान गुम हो जाना चाहता हैM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-6006004187401997352012-05-31T20:20:10.282+05:302012-05-31T20:20:10.282+05:30बेशक भाई साहब घर दीवारों का घेरा नहीं है लेकिन दरो...बेशक भाई साहब घर दीवारों का घेरा नहीं है लेकिन दरो -दीवार का एक एक अणु उन यादों से लिपटा रहता है जहां कभी हम भी होते थे भले घर आदमी की सोच से हलका या भारी बनता है जहां प्यार और समझ है परस्पर वहां हलका पन है फूल का और जहां कटुता वैमनस्य वहां पहाड़ सा बोझा बन जाता है घर .कृपया यहाँ भी -<br /><br /><br />बृहस्पतिवार, 31 मई 2012<br /> शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ? <br /> शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?<br /><br />माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .<br />http://veerubhai1947.blogspot.in/virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-19281667594199130802012-05-31T07:31:34.965+05:302012-05-31T07:31:34.965+05:30JCMay 31, 2012 7:28 AM
कहे बिना नहीं रहा जाता कि &...JCMay 31, 2012 7:28 AM<br />कहे बिना नहीं रहा जाता कि 'हिन्दू' मान्यतानुसार मैं मानव रूप में (पहली बार) अनंत काल-चक्र में शक्ति रुपी आत्मा से आरम्भ कर ८४ लाख विभिन्न पशु रूप धारण कर पहुंचा 'अपस्मरा पुरुष' हूँ (नटराज शिव के चरण कि धूल समान), अर्थात भुलक्कड़ जिसे अपने भूत की सारी बातें याद नहीं है... <br />गीता में भी श्री कृष्ण, धनुर्धर अर्जुन को, कह गए कि उनमें और उसमें यही अंतर था कि अनत/ शेषनाग पर लेटे विष्णु (नादबिन्दू) के अष्टम अवतार कृष्ण को भूत का पता था कि वो आरम्भ से अर्जुन के साथ (ब्रह्मा के नए दिन के) आरम्भ से जुड़े थे, जबकि अर्जुन को अपने उसी रूप के, पांडुओं के भूत का पता था - और केवल वो ही अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान कर उन्हें परम सत्य, शंख-चक्र-गदा-पद्म धारी, के दर्शन कराने में सक्षम थे, और शायद आज भी हों!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-39815193614968363402012-05-31T06:43:20.340+05:302012-05-31T06:43:20.340+05:30बचपन की यादें बड़े होने पर खूबसूरत ही लगती हैं ......बचपन की यादें बड़े होने पर खूबसूरत ही लगती हैं ...मकान नंबर अब तक वही है , मकान भी वही है ,यह सुखद है वरना तो इतने सालों में नींव तक खुद जाती है !<br />बने हुए है हम भी आपकी यादों के साथ क्रमशः में !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-56099965531215791642012-05-30T20:18:45.803+05:302012-05-30T20:18:45.803+05:30याद आता हैं वो बचपन सुहाना....
वो आमो की अमराई व...याद आता हैं वो बचपन सुहाना.... <br />वो आमो की अमराई वो गुलमोहर का जमाना ...!<br /><br />वाकई में बचपन सुहाना ही होता हैं ....तरक्की ने सारे निशान साफ़ कर दिए ..आगे क्या होता हैं देखने को उत्सुक हैं ...दर्शन कौर धनोयhttps://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-65884516592624260402012-05-29T13:13:48.570+05:302012-05-29T13:13:48.570+05:30गुज़रा हुवा समय भी उन वीथियों कों मिटा मनाही पाता ...गुज़रा हुवा समय भी उन वीथियों कों मिटा मनाही पाता जहा से हो के इंसान बचपन में गुज़रता है ... <br />यो जगह हमेशा बुलाती है ... खींच के ले आती है अपने पास ... अच्छा लगा आपका सफर देखना ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-79956776295746187772012-05-29T13:04:50.341+05:302012-05-29T13:04:50.341+05:30पल्लवी जी , सचमुच एक बार फिर उसी जगह जाकर वास्तव म...पल्लवी जी , सचमुच एक बार फिर उसी जगह जाकर वास्तव में बड़ा अद्भुत अनुभव हुआ था . यह सच है शहरों में अक्सर यह संभव नहीं होता .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-5483320924331158722012-05-29T13:03:17.934+05:302012-05-29T13:03:17.934+05:30हा हा हा ! गोदियाल जी , कोई पछतावा नहीं है . :)
जी...हा हा हा ! गोदियाल जी , कोई पछतावा नहीं है . :)<br />जी हाँ , सही पहचाना आपने . इन सर्दियों में ही गए थे . फोटो में भी स्वेटर्स दिखाई दे रहे हैं .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-6534792722759865332012-05-29T12:50:46.465+05:302012-05-29T12:50:46.465+05:30यादों का मौसम कभी नहीं बदलता आप बहुत खुश किस्मत इं...यादों का मौसम कभी नहीं बदलता आप बहुत खुश किस्मत इंसान है जो आज भी आपने पुराने घर जाकर अपनी यादों को ताज़ा कर सके। मैं तो वो भी नहीं कर सकती। क्यूंकि मैं जिस घर में रहा करती थी, था तो वह भी सरकारी मकान ही किन्तु अब वहाँ पुराने मकानो को तोड़ कर नये मकान बनाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। मुझे तो यह भी ठीक से पता नहीं है, कि वहाँ दुबारा मकान ही बनाये जा रहे हैं या शॉपिंग मौल....अब तो वहाँ बिता मेरा बचपन बस मेरे ज़ेहन में ही है और अब हमेशा मेरे ज़ेहन में ही रहेगा।Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-19712627232275283882012-05-29T10:36:52.646+05:302012-05-29T10:36:52.646+05:30पुरानी यादोंॆ को साझा करने के लिए आभार!पुरानी यादोंॆ को साझा करने के लिए आभार!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-45281746661163867602012-05-29T10:22:14.406+05:302012-05-29T10:22:14.406+05:30कितना भी कुछ बदल जाए , पर आँखों के आगे वही सब गुजर...कितना भी कुछ बदल जाए , पर आँखों के आगे वही सब गुजरता है , जो हम जी चुके होते हैं ....मुझे ऐसी यादें बहुत अच्छी लगती हैंरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-78859342561999996442012-05-29T09:06:49.332+05:302012-05-29T09:06:49.332+05:30डा साहब ; मुझे भी कुछ-कुछ ऐसा ही अंदेशा था कि शायद...डा साहब ; मुझे भी कुछ-कुछ ऐसा ही अंदेशा था कि शायद आपकी पोस्ट ब्लॉग वर्ल्ड में ठीक से प्रेषित नहीं हुई होगी, जिसकी वजह से पाठक वर्ग का ध्यान नहीं गया ! खैर, हम भी ढीठ किस्म के वादे के पक्के इन्सान है. हमने भी इसी लिए सर्वाधिकार सुरक्षित कर लिए थे, इसलिए हमारी वह पहली पहल टिपण्णी फिर से हाजिर है :) <br /><br />आपने लिखा "एक फोटोग्राफर की दुकान होती थी जिसमे उसका बहुत खूबसूरत फोटो लगा होता था ।<br />वो थी ही इतनी सुन्दर कि देखने वाला देखता रह जाए । जान पहचान की थी लेकिन उम्र में आठ साल बड़ी थी। "<br /><br />हाये ! :)<br /><br />ऐ हुश्ने-ए-बहार, ऐ मेरे खुदा ! <br />स्टूडियो के काउंटर से <br />फिसलता तुम्हारा वो हाथ, <br />मैंने लपककर थाम लिया होता !<br />अगर उस वक्त मैं<br />अपने दिल की सुनता,<br />तुम्हारी उम्र पर न जाता <br />और दिमाग से काम लिया होता !! <br /><br />खैर, डा० साहब, कमान से निकला तीर और हाथ से निकला वक्त लौटकर नहीं आता, इसलिए आप अब इस शेर को मत दोहराना , भाभी जी ने सुन लिया तो .... वैसे भी अमूमन देखा गया है कि बुढापे में बीबी से पीटने की तमन्ना किसी भी मर्द की नहीं होती ! :) :)<br /><br />डा० साहब , मुझे लगता है कि यह शायद आपकी पिछली सर्दियों की यात्रा रही होगी, क्योंकि आपने लिखा है कि महिलाये धुप सेकती स्वेटरें बुन रही थी !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-12597712976923171632012-05-29T09:03:43.925+05:302012-05-29T09:03:43.925+05:30This comment has been removed by the author.पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-45344390689931008282012-05-29T08:53:26.648+05:302012-05-29T08:53:26.648+05:30अभी तो बस शुरुआत है ...अभी तो बस शुरुआत है ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-44818754654620927622012-05-29T07:20:26.457+05:302012-05-29T07:20:26.457+05:30बचपन की यादें वास्तव में ही भावविभोर कर देती हैं...बचपन की यादें वास्तव में ही भावविभोर कर देती हैंKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-27301982928563023192012-05-29T05:48:37.230+05:302012-05-29T05:48:37.230+05:30दशकों बाद यादों की गली में पुनर्विचरण एक अलग ही अन...दशकों बाद यादों की गली में पुनर्विचरण एक अलग ही अनुभव है। अच्छा लगा, अगली कड़ी का इंतज़ार है। मैने भी पिछ्ले दिनों कुछ गलियाँ घूमीं, काफ़ी बकाया हैं अगली भारत यात्राओं के लिये।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-42946675352115607242012-05-29T00:02:11.845+05:302012-05-29T00:02:11.845+05:30इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट क...<a href="http://bulletinofblog.blogspot.com/2012/05/blog-post_28.html" rel="nofollow">इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सिंह या शिखंडी.... या फ़िर जस्ट रोबोट.... ब्लॉग बुलेटिन</a>ब्लॉग बुलेटिनhttps://www.blogger.com/profile/03051559793800406796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-59197617397972992822012-05-28T22:57:52.623+05:302012-05-28T22:57:52.623+05:30दिल से लिखा संस्मरण . मै तो भावुक हो गया पढकर . मु...दिल से लिखा संस्मरण . मै तो भावुक हो गया पढकर . मुझे भी अपने बचपन की गलियो को देखे दो दशक से ज्यादा हो गया है . आपकी पोस्ट पढकर दिल में उन्ही ख्यालो का आना शुर हो गया है .Mrityunjay Kumar Raihttps://www.blogger.com/profile/16617062454375288188noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-67626401698528206132012-05-28T22:00:57.571+05:302012-05-28T22:00:57.571+05:30फिर भी अनपढ़ों की तरह पूछ ही लिया कि क्या ३४५ नंबर...फिर भी अनपढ़ों की तरह पूछ ही लिया कि क्या ३४५ नंबर यही है । कौन रहता है यहाँ , क्या घर में हैं? एक महिला ने कहा , शायद घर में नहीं हैं आप घंटी बजा कर देख लीजिये । <br /><br />खुबसूरत यादें और इनसे जुडी बातें शायद हमें जीवन के आनंद को द्वि गुणित कराती हैं .<br />यादें यादें यादें .........और आनंद ......Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-13344140106636029772012-05-28T21:59:20.631+05:302012-05-28T21:59:20.631+05:30फिर भी हमारे मन में वो घर और उनसे जुडी कई यादें आज...फिर भी हमारे मन में वो घर और उनसे जुडी कई यादें आज भी वैसी ही अमर हैं!!!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-47300707890617222062012-05-28T21:45:40.657+05:302012-05-28T21:45:40.657+05:30दयाल जी,आपने तो हमें भी पुरानी गलियों की याद ताजा ...दयाल जी,आपने तो हमें भी पुरानी गलियों की याद ताजा करा दी...आप का लेख पढते पढते हम भी बचपन की गलियों में पहुँच गये...आभार।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-70614533594582534762012-05-28T21:44:48.132+05:302012-05-28T21:44:48.132+05:30बचपन के रास्ते बहुत याद आते हैं ...
आप खुशकिस्मत ह...बचपन के रास्ते बहुत याद आते हैं ...<br />आप खुशकिस्मत हैं कि एक ही शहर में रहे हैं , यह अच्छा किया कि उन गलियों को देख पुरानी यादें ताजा कर लीं !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-43639875542292910522012-05-28T21:39:09.855+05:302012-05-28T21:39:09.855+05:30ओह ! यानि बचपन की यादों की निशानी मिट गई . शहरों म...ओह ! यानि बचपन की यादों की निशानी मिट गई . शहरों में ऐसा ही होता है .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-5861974811296152222012-05-28T21:36:01.820+05:302012-05-28T21:36:01.820+05:30आधुनिक मान्यता अनुसार बचपन के पांच वर्षों के भीतर ...आधुनिक मान्यता अनुसार बचपन के पांच वर्षों के भीतर ही ५०% आई क्यु आम व्यक्ति में हो जाता है और शेष पचास प्रतिशत शेष जीवन में धीरे धेरे बनता है... जबकि प्राचीन 'भारत' में कहावत थी की बच्चे को ५ वर्ष तक लाड करिए, फिर १० वर्ष उस पर नजर रखिये और १६ वर्ष का होने पर उस के साथ मित्र समान व्यवहार करिए... अर्थात १६ वर्ष की आयु से हरेक व्यक्ति के अपने स्वतंत्र व्यक्ति का निर्माण होना आरम्भ हो जाता है - किसी में अधिक गति से तो किसी में कम... ५ से १६ वर्ष की आयु में सूचना एकत्र तो होती है किन्तु विश्लेषण की क्षमता कम रहती है... और इस कारण जब मस्तिष्क की क्षमता बढ़ जाती है तो बचपन में देखी गयी कई बातों का अर्थ पता चलता है, किन्तु क्यूंकि 'परिवर्तन प्रकृति का नियम है", व्यक्ति की मानसिक रुझान पर निर्भर कर बदलाव 'अच्छा' या 'बुरा' लगता है... पिताजी के कार्यकाल में हम भी नयी दिल्ली में तीन सरकारी मकानों में रहे... पहली जगह मल्टी-स्टोरी फ़्लैट बन गए, दूसरे की जगह राम मनोहर लोहिया अस्पताल का ओपीडी, और तीसरे की जगह फायर स्टेशन हैं आज...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.com