tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post2717664057881652639..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: डिप्टीगंज --पुरानी दिल्ली का एक व्यवसायिक क्षेत्र,जहाँ मेहनत का पसीना खून से मिलकर रगों में दौड़ता है -- --.डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-22242058424085089452012-03-03T07:16:40.541+05:302012-03-03T07:16:40.541+05:30JCMar 2, 2012 05:37 PM
एक जमाने में नई दिल्ली सरका...JCMar 2, 2012 05:37 PM<br />एक जमाने में नई दिल्ली सरकारी कर्मचारियों की कॉलोनी होती थी, जिसके बीच गोल मार्केट, कनाट प्लेस, आदि कुछ बाज़ार होते थे... और पहाड़ गंज तब पुरानी दिल्ली की निकटतम सस्ती बाज़ार होने के कारण, बाबू लोग छोटी-मोटी चीजों के लिए वहाँ, अथवा सदर बाज़ार भी जाते थे... उस समय अधिकतर पैदल ही जाया करते थे, (हम बच्चे जब दिवाली के समय 'अनार' बनाना सीख गए वहाँ से, साईकिल में जा, मिटटी के खोल ले कर आते थे... एक पडोसी अंकल ने हमें किताबों में गत्ते का कवर चढाना भी सिखा दिया था, इस कारण हम बिना जिल्द वाली पुस्तकें खरीदते थे... पिताजी भी खुश पैसा बचने से :)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-4064065394502957952012-03-02T11:49:29.989+05:302012-03-02T11:49:29.989+05:30बहुत घूमा है सदर बाज़ार, हमारे समय तक तो तांगे भी ...बहुत घूमा है सदर बाज़ार, हमारे समय तक तो तांगे भी चलते थे वहाँ। स्कूटर से जाता था तो वापस आने पर सबको पता लग जाता था क्योंकि बचाते-बचाते हुए भी पतलून के पायचों में किसी न किसी ठेले के पहिये की ग्रीस और कालिख लग ही जाती थी। (पिछली टिप्पणी में ग़लती से पहाड़गंज लिखा था, वैसे घूमा वह सब भी बहुत है)Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-86343857899311289142012-03-02T11:48:15.783+05:302012-03-02T11:48:15.783+05:30This comment has been removed by the author.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-71748232363007969932012-03-02T07:59:50.735+05:302012-03-02T07:59:50.735+05:30"राम तेरी गंगा मैली हो गयी" (भौतिक विकास..."राम तेरी गंगा मैली हो गयी" (भौतिक विकास के कारण?)... :(<br />किन्तु, 'विकास' के मूल में यदि कोई देखे तो शायद पाए कि 'शिव' से सम्बंधित माने जाने वाला पवित्र गंगा जल, और वर्तमान में दिल्ली शहर (और एन सी आर) के बीच 'गंदे नाले' समान बहती यमुना नदी जल भी उसी एक ही खारे जल के स्रोत 'सागर' से उत्पन्न हो - शिवजी के परिवार से सम्बंधित (कैलाश -) मानसरोवर ताल से जन्म ले - 'भारत भूमि' की मिटटी को (अनेक अन्य नदी जल के साथ भी) लाखों वर्ष से (५० लाख?) सभी धरा पर निर्भर प्राणीयों को जीवन दान देते हुए उसी खारे सागर जल में मिल जाते हैं... (उसी प्रकार, डॉक्टर साहिब इसका सत्यापन कर सकते हैं, यद्यपि मन रुपी मानसरोवर शरीर का राजा है और उसकी आज्ञा पा ह्रदय द्वारा सारे शरीर में व्याप्त नलिकाओं द्वारा विभिन्न प्रवाहित शुद्ध एवं विषाक्त रक्त का संचार उसी प्रकार निरंतर करते - किन्तु प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति को सीमित १०० +/- वर्ष के लिए ही... और उसको 'गंगाधर शिव' का ही प्रतिरूप माना गया, तो इसमें कोई शक नहीं कि प्राचीन हिन्दुओं ने, उसी प्रकार, उस माध्यम को जिसके द्वारा मानव शरीर में ऊर्जा अर्थात शक्ति का संचार होता है, स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) में तीन मुख्य नाडी (नदी समान), इडा, पिंगला और सूक्ष्मणा नाडी कहा - गंगा, यमुना सरस्वती के प्रतिरूप?)!!!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-53024553070520323422012-03-01T22:04:46.182+05:302012-03-01T22:04:46.182+05:30ham bhi aksar sochte hai kya kabhi hamara desh vik...ham bhi aksar sochte hai kya kabhi hamara desh viksit ban payega? vicharneey prastutiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-42610189587598852612012-03-01T21:44:01.409+05:302012-03-01T21:44:01.409+05:30क्या कहें सर... आपका अंतिम प्रश्न और उसका जो जवाब ...क्या कहें सर... आपका अंतिम प्रश्न और उसका जो जवाब आपने शिखा जी को दिया वही सच है मगर क्या करें उम्मीद पर दुनिया कायम है।Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-12514895356653210902012-03-01T10:01:40.269+05:302012-03-01T10:01:40.269+05:30In fact it is -- uncontrolled , unwanted and abnor...In fact it is -- uncontrolled , unwanted and abnormal growth of cells which is called cancer. So is our Society today .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-41277433160111545692012-03-01T09:44:44.015+05:302012-03-01T09:44:44.015+05:30शहरों की नस-नाड़ी और उसमें प्रवाहित रोजमर्रा.शहरों की नस-नाड़ी और उसमें प्रवाहित रोजमर्रा.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-19462802617627515712012-03-01T09:12:05.275+05:302012-03-01T09:12:05.275+05:30Read today in newspaper, "Growth for teh sake...Read today in newspaper, "Growth for teh sake of growth is the ideology of the cancer cell" - Edward Abbey.<br /><br />The above perhaps applies in the Kaliyug, for the number of cancer patients is increasing... and also there is chaos all around (in India!)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-21572890600409373672012-03-01T06:02:44.986+05:302012-03-01T06:02:44.986+05:30"सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है"..."सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है", "आनंद मन की स्थिति है", आदि, आदि कहावतें हैं (अंग्रेजी में :) और हिंदी में भगवान् को ही अकेला 'परमानंद' कहा जाता आया है अनादिकाल से... <br /><br />असली विकास तो सर्व प्रथम शुद्ध शक्ति से साकार संसार का बनाया जाना है, और उस को अरबों साल से बनाये रखना - अनंत काल तक - जिससे 'आप' और 'हम' भी अधकतर भय के साथ साथ थोडा बहुत आनंद की अनुभूति कर तनिक लाभ उठा सकें इस निरंतर परिवर्तन शील 'मायावी जगत' में - कुछ पल के लिए ही सही... <br /><br />"सत्यम शिवम् सुन्दरम", और "सत्यमेव जयते", आदि अनंत शिव पर बिचारणीय कुछेक देसी कहावतें भी हैं...:)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-42719552438689158352012-02-29T21:01:34.482+05:302012-02-29T21:01:34.482+05:30गाड़ी में बैठे बैठे खींचीं हैं । अचानक एक रेला सा आ...गाड़ी में बैठे बैठे खींचीं हैं । अचानक एक रेला सा आता था , फिर खाली हो जाता था । बस उसी समय खीँच लीं ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-82003237626273827322012-02-29T18:17:12.831+05:302012-02-29T18:17:12.831+05:30विकास का एक चेहरा यह भी है.मेरा अनुभव यह है कि यहा...विकास का एक चेहरा यह भी है.मेरा अनुभव यह है कि यहाँ फोटो खींचने तक की जगह नहीं होती. किसी कि कमर आती है,तो कोई अचानक लेंस के सामने आ जाता है. मगर आपकी तस्वीरों में काफी जगह भी नज़र आ रही है.कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-51827543612282373622012-02-29T18:11:39.706+05:302012-02-29T18:11:39.706+05:30पुनश्च - यदि शक्ति रुपी परमात्मा, योगेश्वर विष्णु ...पुनश्च - यदि शक्ति रुपी परमात्मा, योगेश्वर विष्णु / शिव जी, एकान्तवाद से श्रंखला बद्ध तौर पर, अनंत चक्र में घूमते द्वैतवाद और फिर अनेकानंतवाद की रचना, 'ब्रह्मनाद द्वारा' नहीं करते तो उन्हें परमानंद कैसे प्राप्त होता??? <br /><br />और साथ साथ अस्थायी भौतिक शरीर वाली विभिन्न आकार वाली अन्य आत्माओं को क्षणिक आनंद कैसे प्राप्त होता (यद्यपि १०० वर्ष बहुत लम्बे प्रतीत होते हैं)???<br /><br />किन्तु, द्वैतवाद के कारण हमें टीवी पर, अथवा अंधकारमय हौल में हाथ पर हाथ रखे, 'दुःख'- 'सुख' दोनों की अनुभूति होने के कारण परमानंद क्या होता है वो पता ही नहीं चल पाता :( <br /><br />और यही नहीं 'योग-निद्रा' (बिना विचार वाली अवस्था, मृत-प्राय समान) के स्थान पर पशु जगत में निद्रावस्था, अर्थान अर्ध-मृत अवस्था, में स्वप्न देखते हुए भी हम आनंद के साथ भय की अनुभूति अधिकतर करते हैं...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-33850827638225825822012-02-29T18:06:51.164+05:302012-02-29T18:06:51.164+05:30बस यूँ ही --- कारवां गुजरता रहा --और हम खड़े खड़े दे...बस यूँ ही --- कारवां गुजरता रहा --और हम खड़े खड़े देखते रहे !डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-11823408806461926612012-02-29T16:07:33.277+05:302012-02-29T16:07:33.277+05:30दिल्ली का डाउन टाउन ... गज़ब के होतो हैं आपके ... ...दिल्ली का डाउन टाउन ... गज़ब के होतो हैं आपके ... जीवन के हर रंग को समेटने का प्रयास ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-46602015538280730392012-02-29T13:26:28.228+05:302012-02-29T13:26:28.228+05:30सही कहा अली जी .
दुनिया में विकास इवोल्यूशन ऑफ़ म...सही कहा अली जी . <br />दुनिया में विकास इवोल्यूशन ऑफ़ मेंन की वज़ह से ही हुआ है . <br />हालाँकि अन्य प्राणियों की तरह मनुष्यों में भी कुछ पीछे छूट गए .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-74199520510173623582012-02-29T13:24:17.219+05:302012-02-29T13:24:17.219+05:30संतोष जी , सभी जगहें दर्शनीय स्थल नहीं होती . :)संतोष जी , सभी जगहें दर्शनीय स्थल नहीं होती . :)डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-22036353489276919562012-02-29T09:31:29.933+05:302012-02-29T09:31:29.933+05:30"...एक ही जगह स्थिर रहकर बदलते दृश्यों को देख..."...एक ही जगह स्थिर रहकर बदलते दृश्यों को देखना भी एक अनुभव ही है..." से याद आ सकता है योगेश्वर विष्णु जी का, शेष शैय्या में लेट, 'योगनिद्रा में' परमानन्द की अनुभूति करना :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-63562284115901194662012-02-29T09:24:55.589+05:302012-02-29T09:24:55.589+05:30JCFeb 28, 2012 07:52 PM
अली जी, इसी 'भारत भूमि...JCFeb 28, 2012 07:52 PM<br />अली जी, इसी 'भारत भूमि' पर (वैदिक काल में?) रहने वाले - जो 'हिन्दू' कहलाये गए 'विदेशियों' द्वारा - सांकेतिक भाषा में दुनिया अर्थात पृथ्वी को ठन्डे दिमाग वाला, गंगाधर शिव कह गए ('इंदु' अर्थात गंगा के स्रोत चन्द्रमा, सांकेतिक भाषा में पार्वती को साथ दर्शा), क्यूंकि वो चन्द्रमा को सर्वश्रेष्ठ जान, उस के चक्र के अनुसार गणना करते थे (गणेश पार्वती-पुत्र को कह)... <br />और, परम्परानुसार, आज भी करते चले आ रहे हैं, भले ही आप उन्हें 'हिन्दू' कह लें अथवा 'मुस्लिम', अपने त्यौहार आदि शुभ दिन इत्यादि जानने हेतु... जबकि आज भी, उसको प्रकाश और शक्ति का स्रोत जान, 'पश्चिम' में केवल सूर्य को प्राथमिकता दे 'बर्थ डे' आदि मनाते हैं... (प्राचीन भारत में सत्य उसे माना जो काल पर निर्भर नहीं है, शायद इस कारण विभिन्न मान्यताओं के पीछे किसी अदृश्य शक्ति, 'परम सत्य' अर्थात परमेश्वर का हाथ हो, और कहावत भी है कि पूर्व और पश्चिम कभी मिल नहीं सकते, और हमारे ज्ञानी-ध्यानी इस संसार को ही 'मिथ्या जगत' कह गए :)... इत्यादि इत्यादि...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-30060497378882476182012-02-29T09:22:41.696+05:302012-02-29T09:22:41.696+05:30अली जी, इसी 'भारत भूमि' पर (वैदिक काल में?...अली जी, इसी 'भारत भूमि' पर (वैदिक काल में?) रहने वाले - जो 'हिन्दू' कहलाये गए 'विदेशियों' द्वारा - सांकेतिक भाषा में दुनिया अर्थात पृथ्वी को ठन्डे दिमाग वाला, गंगाधर शिव कह गए ('इंदु' अर्थात गंगा के स्रोत चन्द्रमा, सांकेतिक भाषा में पार्वती को साथ दर्शा), क्यूंकि वो चन्द्रमा को सर्वश्रेष्ठ जान, उस के चक्र के अनुसार गणना करते थे (गणेश पार्वती-पुत्र को कह)... <br />और, परम्परानुसार, आज भी करते चले आ रहे हैं, भले ही आप उन्हें 'हिन्दू' कह लें अथवा 'मुस्लिम', अपने त्यौहार आदि शुभ दिन इत्यादि जानने हेतु... जबकि आज भी, उसको प्रकाश और शक्ति का स्रोत जान, 'पश्चिम' में केवल सूर्य को प्राथमिकता दे 'बर्थ डे' आदि मनाते हैं... (प्राचीन भारत में सत्य उसे माना जो काल पर निर्भर नहीं है, शायद इस कारण विभिन्न मान्यताओं के पीछे किसी अदृश्य शक्ति, 'परम सत्य' अर्थात परमेश्वर का हाथ हो, और कहावत भी है कि पूर्व और पश्चिम कभी मिल नहीं सकते, और हमारे ज्ञानी-ध्यानी इस संसार को ही 'मिथ्या जगत' कह गए :)... इत्यादि इत्यादि...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-69127804686696930182012-02-29T09:20:53.587+05:302012-02-29T09:20:53.587+05:30आश्चर्य हो रहा हो कि आपने ऐसी जगह गाडी ले जाने की ...आश्चर्य हो रहा हो कि आपने ऐसी जगह गाडी ले जाने की हिम्मत की. एक ही जगह स्थिर रहकर बदलते दृश्यों को देखना भी एक अनुभव ही है. लगता है वह एक व्यापारिक केंद्र है जहाँ "श्रम" अपरिहार्य है. विकास तो हो रहा है परन्तु जन संख्या में हो रही वृद्धि सब कुछ लील जाती है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-42380748385330480492012-02-29T09:16:12.406+05:302012-02-29T09:16:12.406+05:30असली भारत दर्शन करा दिया डॉ. साहब आपने !असली भारत दर्शन करा दिया डॉ. साहब आपने !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-90525370786954300292012-02-29T08:50:45.574+05:302012-02-29T08:50:45.574+05:30यहाँ जिंदगी के रंग ऐसे ही है ....विकास की संभावना...यहाँ जिंदगी के रंग ऐसे ही है ....विकास की संभावनाएं है तो मगर नए शहरी क्षेत्रों में !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-69580933179707537072012-02-29T08:47:36.317+05:302012-02-29T08:47:36.317+05:30सर ई तो हमें डिप्टीगंज से जादे लगेज गंज लगा ।कोलका...सर ई तो हमें डिप्टीगंज से जादे लगेज गंज लगा ।कोलकाता के बडा बज़ार की याद हो आई । सदर में भी कुछ अईसी ही ठेल ठेल रहती है सर। बकिया फ़ोटो आप धमाल खैंचते हैं ।अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-89206913567425428192012-02-29T01:19:23.869+05:302012-02-29T01:19:23.869+05:30दिल्ली में रहते हुए भी बहुत कुछ छूटा हुआ है !दिल्ली में रहते हुए भी बहुत कुछ छूटा हुआ है !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.com