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Sunday, May 4, 2014

मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ----


बहुत दिनों से कोई हास्य कविता लिखने का समय नहीं मिला ! आज विश्व हास्य दिवस के अवसर पर फ़ेसबुक पर आधारित एक पैरोडी लिखने का प्रयास किया है ! यह अभी तक की दूरी पैरोडी है जो इत्तेफाक़ से फिर से सुरेश वाडकर के गाने पर ही आधारित है : 


मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ ! 
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! 

आज समझा हूँ लाइक का मतलब ,
आज टिप्पणीयां मैं भेंट करता हूँ ! 
कल मैं ब्लॉग पोस्ट लिखता था ,
आज मैं स्टेटस अपडेट करता हूँ ! -----------

सोचता हूँ के मेरे स्टेटस पर 
क्यों नहीं लगते लाइक के चटके ! 
मैने मांगी थी इक टिप्पणी लेकिन 
पोस्ट पे आये ना कोई भूले भटके ! 

हो ना जाउँ कहीं मैं फेसबुकिया 
इसकी लत पड़ने से डरता हूँ !
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! ----------

दिन गुजरा फ़ेसबुक पे सारा ,
रात आधी लाइक करते करते ! 
कैसे बुलायें पेज पे उनको ,
चैट करते हैं डरते डरते ! 

लत शायद इसी को कहते हैं ,
हर घड़ी बेकरार रहता हूँ !
रात दिन फ़ेसबुक पे कटते हैं , 
घर बार से बेज़ार रहता हूँ ! -----------

मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ ! 
पहले अपडेट एक बार करता था ,
अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! 

15 comments:

  1. हा हा!! बेहतरीन...उसी अपडेट को देख कर यहाँ चले आये :)

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. चलिये अपडेट का फायदा भी होगा। शीर्षक देख कर डर लगी था कि कहीं से कांग्रेस के आने की अफवाह तो नही सुन ली आपने।

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    1. आशा जी , डरने के कारण तो अनेक हो सकते हैं -- यह भी !

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  4. क्या बात ,,,,,पर कैंडी-क्रश कैसे बच गया ,,::D

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  5. हो ना जाउँ कहीं मैं फेसबुकिया
    इसकी लत पड़ने से डरता हूँ !
    पहले अपडेट एक बार करता था ,
    अब दिन मे तीस बार करता हूँ ! -----
    very nice sir .

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  6. ये कंबख्त फ़ेसबुक चीज ही ऐसी है.:)

    रामराम.

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  7. ☆★☆★☆




    मेरी किस्मत मे तू ही है शायद ,
    दिन निकलने का इंतज़ार करता हूँ !
    पहले अपडेट एक बार करता था ,
    अब दिन मे तीस बार करता हूँ !

    ;)
    वाह ! वाऽह…!

    दिन गुजरा फ़ेसबुक पे सारा ,
    रात आधी लाइक करते करते !
    कैसे बुलायें पेज पे उनको ,
    चैट करते हैं डरते डरते !

    लत शायद इसी को कहते हैं ,
    हर घड़ी बेकरार रहता हूँ !
    रात दिन फ़ेसबुक पे कटते हैं ,
    घर बार से बेज़ार रहता हूँ !



    हाय रे ये फेसबुक !

    कितने सारे अच्छे भले ब्लॉग्स का भी भट्ठा बिठा दिया...
    :(

    आदरणीय डॉ. दराल भाई जी
    मस्त रचना के लिए थेंक्स

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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    1. सही कहा राजेन्द्र जी . अब तो ब्लॉग्स की ओर कोई झांकता ही नहीं !

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  8. बहुत उम्दा सर! दिल बाग-बाग हो गया

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  9. उम्दा फसेबुकिया पैरोडी डाक्टर साहब

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  10. चाहे जितना फेसबुक पे आ जाओ ... ब्लोगिंग मन छोड़ना ... हम तो यही बिनती कर सकते हैं ...
    मज़ा आ गया इस हास्य का ... छुपा हुआ दर्द भी नज़र आ रहा है ..

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    1. नासवा जी , इस दर्द मे भी व्यंग ही है ! :)

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  11. हा हा हा। गज़ब। मस्त पैरोडी है ..

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  12. फेसबुक ने किया है स्टेटस का आविष्कार , ब्लॉग का भी है लेकिन प्रविष्टियों का अधिकार !
    रोचक !

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