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Thursday, September 18, 2014

किसी होटल मे जाएं , बिना खाये ही आयें , इच्छाशक्ति मज़बूत बनाएं ---


तन का मन से सीधा सम्बंध होता है ! यदि इच्छाशक्ति मज़बूत हो तो मनुष्य अपनी सामर्थ्य से ज्यादा बड़े से बड़ा काम भी कर सकता है ! संसार मे सबसे मुश्किल काम होता है किसी आदत को छोड़ना ! इंसान के जीवन मे कई लत ऐसी हैं जो अनचाहे ही गले पड़ जाती हैं ! फिर इनसे छुटकारा पाने की समस्या आ खड़ी होती है ! अक्सर हम इन्हे छोड़ने मे सफल भी होते हैं लेकिन यदि इच्छाशक्ति कम हुई तो दोबारा लत पड़ने की संभावना बनी रहती है ! धूम्रपान , शराब , जुआ , चोरी करना , यौन क्रिया , शॉपिंग यहाँ तक कि खाना भी एक लत बन सकती है जो ना हमारे शरीर को प्रभावित करती है बल्कि हमे मानसिक , आर्थिक और सामाजिक तौर पर भी क्षीण बना देती है ! इनसे छुटकारा पाने का एक ही तरीका है , और वह है इच्छाशक्ति का द्रढ होना ! बुरी आदतों से निज़ात पाने के लिये चिकित्सीय उपचार भी उपलब्ध हैं , लेकिन इसका प्रभाव भी तभी पड़ता है जब मनुष्य स्वयम् मानसिक रूप से इसके लिएे तैयार हो और द्रढ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करे ! 

इच्छाशक्ति तभी द्रढ मानी जाती है जब : 

* आप धूम्रपान छोड़ चुके हों और सिगरेट देखकर मन ना ललचाये ! 
* आप शराब छोड़ चुके हों , शराब की बोतल सामने रखी हो और हाथ तक ना लगाएं ! 
* आप मॉल घूमने जाएं और बिना शॉपिंग किये ही वापस आ जाएं ! 
* आप बुफ्फे डिनर पर जाएं और सीमित मात्रा मे ही खाना खाएं ! 

कॉलेज के दिनों मे अक्सर हम कई मित्र ज़ेब मे दस रुपये डालकर मार्केट घूमने जाते ! खूब घूम फिर कर और खाने की दुकानों के भी दो चक्कर लगाकर बिना कुछ खाये ही वापस आ जाते ! क्या करते , इतना ही जेबखर्च मिलता था ! लेकिन यह कह कर दिल समझा लेते कि ऐसा करने से इच्छाशक्ति मज़बूत होती है ! ऐसा करते करते इच्छाशक्ति इतनी मज़बूत हो गई कि अब एक पैसा भी खर्च करने का दिल नहीं करता ! कभी कभी तो श्रीमती जी से भी यही सुनना पड़ता है कि हे भगवान कैसे कंजूस से पाला पड़ा है ! अब तो ये आलम है कि यदि कहीं दस बीस रुपये खर्च करने पड़ जाएं तो अपनी तो जान सी निकल जाती है ! ऐसा लगता है जैसे बहुत बड़ा नुकसान हो गया हो ! इसलिये हमने तो खरीदारी का सारा काम श्रीमती जी पर ही छोड़ दिया है ! जब तक अपने हाथ से पैसे नहीं जाते तब तक हमे कोई दुख नहीं होता ! इस तरह, हम भी खुश और श्रीमती जी भी खुश !  

मेरी पत्नी इतनी हाईटेक हो गई है ,
मॉडर्न टेक्नोलॉजी मे इस कद्र खो गई है ! 
कि सारी शॉपिंग क्रेडिट कार्ड से करती है , 
सारे बिल भी अपने कार्ड से ही भरती है ! 
फिर जब उसका बिल आता है हज़ारों का ,
तो उसकी पेमेन्ट मेरे कार्ड से करती है ! 
फिर भी कहती हैं कि सजना , क्यों मायूस हो गए हैं , 
एक पैसा खर्च नहीं करते , आप बड़े कंजूस हो गए हैं ! 

Monday, September 8, 2014

इट'स वेरी ईज़ी तो स्टॉप स्मोकिंग , एंड आइ हॅव डन इट सो मेनी टाइम्स ---


युवावस्था मे , विशेषकर कॉलेज के दिनों मे, मूँह मे सिगरेट लगाना मित्रों के संग एक शौक के रूप मे आरंभ होता है ! लेकिन जल्दी ही यह शौक एक लत बन जाता है ! आरंभ के दिनों मे मूँह मे धुआँ भरकर उड़ाना अच्छा लगता है लेकिन जल्दी ही समझ मे आ जाता है या मित्रों द्वारा समझा दिया जाता है कि सिगरेट पीने का सही तरीका क्या है ! यानि धुआँ मूँह मे भरकर गहरी सांस लेते हुए धुएं को फेफड़ों मे भरना पड़ता है ! धीरे धीरे निकोटीन अपना प्रभाव दिखाने लगती है और एक और मासूम युवक धूम्रपान की लत का शिकार हो जाता है ! 

हमारे फेफड़ों मे जाने वाले धुएं मे मौजूद कार्बन के कण फेफड़ों की कोशिकाओं मे जमकर अपना घर बना लेते हैं ! यदि वर्षों तक धूम्रपान किया जाता रहा तो काफी मात्रा मे कार्बन जमा होकर फेफड़ों को गला देता है जिससे हमारी सांस लेने की प्रक्रिया मे बाधा उत्पन्न होने लगती है ! यह क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस , ब्रोंकिओकटेसिस , दमा , टी बी और कैंसर जैसे भयंकर रोगों को जन्म देती है ! अन्तत: फेफड़े इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि एक एक सांस लेने के लिये भी दम लगाना पड़ता है ! सिगरेट के धुएं मे मौजूद निकोटिन ना सिर्फ लत लगाकर मज़बूर कर देती है बल्कि हमारे शरीर की कई प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती है जैसे ब्ल्ड प्रेशर और हृदय गति का बढ़ना जिससे धीरे धीरे हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है !  

वर्षों पहले दिल्ली के आई टी ओ चौराहे पर लाल बत्ती पर स्कूटर पर इंतज़ार करते हुए हमने देखा कि वहां बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण था ! उस समय दिल्ली मे वायु प्रदूषण अपने जोरों पर था ! धुआँ इतना ज्यादा था कि सांस लेने मे भी कड़वाहट महसूस हो रही थी ! तभी साथ मे खड़े हुए एक और स्कूटर वाले ने सिगरेट निकाली और सुलगाकर आराम से कश लगाने लगा ! यह देखकर हमे अचानक यह महसूस हुआ कि हम तो धुएं से पहले ही परेशान हैं और यह शख्श सिगरेट पिये जा रहा है ! क्या बाहर धुएं की कमी है जो और धुआँ फेफड़ों मे भर रहा है ! 
यह विचार आते ही हमारे ज्ञान चक्षु खुल गए , हमे दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और हमे ऐसी विरक्ति हुई कि उसके बाद हमने कभी सिगरेट को हाथ नहीं लगाया ! 

धूम्रपान से ऐसे ही एक झटके मे निज़ात पाई जा सकती है ! बस द्रढ निश्चय और पक्का इरादा चाहिये ! वर्ना एक बहुत बड़े मेडिसिन के प्रोफ़ेसर ने कहा था : इट'स वेरी ईज़ी तो स्टॉप स्मोकिंग , एंड आइ हॅव डन इट सो मेनी टाइम्स !