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Thursday, July 17, 2014

दिल्ली गर्मी मे जले और और मुम्बई मे रिमझिम बारिश पड़े ---


यूं तो मुम्बई जाना किसी व्यक्तिगत काम से हुआ था ! लेकिन जब आ ही गए थे तो आम के आम और गुठलियों के दाम वसूलना तो हमे भी खूब आता है ! इसलिये काम के साथ साथ हमने मुम्बई के मित्रों से भी मिलने की सोची ! लेकिन बारिश के मौसम मे हमारे साथ साथ मुम्बईकारों की भी शायद हिम्मत नहीं पड़ी मिलने मिलाने की ! इसलिये यह काम इस बार अधूरा ही रहा ! हालांकि हमारे पास भी वक्त कम ही था ! 

दिल्ली की गर्मी से त्रस्त जब हम मुम्बई पहुंचे तो बारिश धीमे धीमे ऐसे हो रही थी जैसे इन्द्र देवता थककर कूल डाउन वॉक कर रहे हों जैसे हम पार्क मे आधा घंटा ब्रिस्क वॉक करने के बाद करते हैं ! बाद मे टैक्सी मे बैठने पर टैक्सी वाले ने भी बताया कि एक दिन पहले जम कर बारिश हुई थी जो मुम्बई मे एक सीजन मे केवल तीन बार होती है ! एक तो हो गई थी , बाकी दो का इंतज़ार था ! उस दिन के अखबार मे भी "मुम्बई पानी पानी" जैसे खबरें छपी थीं ! लेकिन गर्मी से परेशान हम दिल्ली वालों को तो यह बारिश पत्नी से भी ज्यादा प्यारी लग रही थी ! 

मुम्बई मे लगातार बारिश होने से यहाँ घरों की दीवारें अक्सर काली पड़ जाती हैं !  सड़कों पर भी गीला गीला अहसास रहता है , लेकिन यहाँ की ज़मीन ज्यादा रेतीली नहीं है जिसकी वज़ह से मकानों और कपड़ों पर धूल नहीं जमती ! लेकिन एक बात ने विशेष तौर पर हमारा ध्यान आकृषित किया ! यहाँ ज्यादातर घरों / मकानों मे बालकनी नहीं होती ! उसकी जगह पर खिड़की मे ग्रिल लगाकर कपड़े सुखाने का इंतज़ाम किया जाता है ! यह बात हम दिल्लीवालों को नहीं भाती ! हमे खुले मे बैठने की बड़ी आदत है ! 

वैसे तो मुम्बई का अधिकांश भाग पुराना सा ही लगता है और कहीं से भी विकसित देश जैसा नहीं लगता ! लेकिन पवई क्षेत्र मे बना हीरानन्दानी आवासीय क्षेत्र का कोई ज़वाब नहीं ! यहाँ आकर एक मुद्दत के बाद किसी विकसित देश जैसा अनुभव हुआ ! बहुमञ्ज़लीय सुन्दर इमारतों के पीछे पहाड़ियों का दृश्य जैसे गज़ब ढा रहा था ! 



मुम्बई आने से पहले हमने फ़ेसबुक पर अपने आने की सूचना इसलिये दी थी ताकि यदि संभव हो तो एक ब्लॉगर मिलन का आयोजन किया जा सके ! लेकिन बारिश , हमारी व्यस्तता और सही संपर्क ना होने से यह संभव ना हो सका ! वैसे भी कुछ एक लोगों को छोड़कर आजकल लगभग सभी आभासी दुनिया मे ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं ! लेकिन सभी विषमताओं के बावज़ूद हमने समय निकालकर एक कार्यक्रम बना ही लिया , मालाड मे रहने वाले श्री हरिवंश शर्मा जी से मिलने का ! देर रात तक उनके घर पर और इस बीच घर के पास मौजूद बीच पर बारिश मे भुट्टा खाते हुए हम चार नौज़वानों ने खूब लुत्फ उठाया !  



आजकल सभी छोटे बड़े शहरों मे मॉल कल्चर खूब पनप रहा है ! सर्दी , गर्मी , या हो बरसात , मॉल्स मे हर समय युवा दिलों की भरमार रहती है ! अधिकतर लोग तो आयु मे भी युवा होते हैं , लेकिन कुछ हमारे जैसे तन से प्रौढ़ लेकिन मन से युवाओं के युवा लोग भी नज़र आ जाते हैं ! 



दिल्ली मे भी मॉल्स मे सिनेमा हॉल होते हैं लेकिन ऐसे नहीं जैसे यहाँ देखे ! हॉल की आखिरी दो पंक्तियों मे रिकलाइनिंग सोफे लगे थे जिन्हे आप सीधे बैठने की पोजीशन से पूरा लेटने की मुद्रा तक एड्जस्ट कर सकते हैं ! यानि आप अपनी कमर के हिसाब से आगे पीछे करते हुए घड़ी घड़ी पोजीशन बदल सकते हैं ! अच्छी बात यह लगी कि यदि फिल्म बोर हो तो आप चैन की नींद सो सकते हैं ! 



दिल ना माने मगर आना भी था ! वो तो समय रहते हमने पहले से ही टैक्सी बुक करा दी थी , वर्ना ऐसी बारिश मे ट्रेन पकड़ना बड़ा मुश्किल पड़ता ! मीटर से डेढ़ गुना किराया तय कर हमने टैक्सी वाले को पहले ही खुश कर दिया था ! लेकिन उसे भी यह आभास नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला था ! एक तो उसकी पचास साल पुरानी फिएट जो अस्सी साल की बुढिया की तरह ज़र्ज़र हालत मे थी, उस पर बारिश का कहर ! सामने वाले शीशे मे भी एक ही वाईपर जिसे वह एक खटका दबाकर एक बार चलाता और बंद कर देता ! शायद एक बार से ज्यादा चलना उसके बस का ही नहीं रहा होगा ! एक समय तो सड़क पर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था !    

वैसे तो मुम्बई की सड़कें अधिक बारिश के कारण आर सी सी से बनाई गई हैं , इसलिये दिल्ली की तरह एक बारिश पड़ते ही गड्ढे नहीं बन जाते ! लेकिन कई जगह पानी की निकासी सही ना होने से हाईवे पर भी पानी भर जाता है , जिससे ट्रैफिक जाम हो जाता है ! हमारे इलाहाबादी ड्राईवर भैया की गाड़ी भी एक दमे के रोगी की तरह मुश्किल से सांस लेती हुई धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी ! हमारी ही उम्र का भैयन भी हमको अंक्ल कहता हुआ बार बार डरा रहा था कि गाड़ी अब बंद हुई और तब बंद हुई ! हमने देखा कि मुम्बई मे मेहनत मज़दूरी करने वाले लोग किसी भी पढ़े लिखे दिखने वाले व्यक्ति को अंकल कहकर ही बुला रहे थे, भले ही उम्र मे वो उससे छोटा हो ! 
अब हाल यह होने लगा था कि हमे डर लगने लगा था कि पता नहीं ट्रेन मिलेगी या नहीं ! हम तो यह सोच कर डर रहे थे कि पता नहीं कैसे स्टेशन पहुंचेंगे और टैक्सी वाला यह सोचकर डर रहा था कि अब वापस कैसे जाउंगा ! अब उसे यह विचार भी सताने लगा था कि उसने कम पैसे मे क्यों हाँ भर दी जबकि वह पहले ही डेढ़ गुना चार्ज कर रहा था ! वह यह सोचकर परेशान था कि आज तो बारिश मे नुकसान हो गया और हम यह सोचकर कि यदि ट्रेन छूट गई तो विमान का टिकेट लेने मे कितने का नुकसान होगा ! इस बीच वह हनुमान का जाप किये जा रहा था कि कहीं टैक्सी बंद ना हो जाये और हम भगवान को याद कर रहे थे कि कहीं ट्रेन ना छूट जाये ! अंत मे दोनो की प्रेयर काम आई और ना गाड़ी रुकी और ना ही ब्रेक फेल हुआ जिसका डर था ! हम समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गए थे ! हमने भी उसका ध्यान रखते हुए उसे १०० रुपये ईनाम मे दिये और चल पड़े अपनी मंज़िल की ओर ! 

अब यहाँ बैठे है झेलते हुए दिल्ली की गर्मी !

13 comments:

  1. प्रभू की माया।
    कहीं धूप कहीं छाया।।

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (18.07.2014) को "सावन आया धूल उड़ाता " (चर्चा अंक-1678)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  3. सकुशल समय पर पहुंचे , ट्रेन भी नहीं छूटी!
    कई नवीन जानकरियां भी प्राप्त हुई !

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  4. डाक्टर साहब ... न जाने क्या क्या छिपा है आपकी लेखनी मे किस्सागोयी ,फिर कविता और अब यात्रा व्रतांत वाह.... मज़ा आ गया ... लगा उस टॅक्सी मे हम भी बैठे हो ...

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  5. badhiya vivaran ...Apki lekhani se mumbai ko jana .. abhaar

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  6. चलिए जी बारिश , मुंबई, माल , भुट्टा , मिलन सब हो गया ...और क्या चाहिए ? :)

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  7. आ जाइये बापस , अपनी दिल्ली अच्छी है !!

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  8. चलिए गर्मी, धूप, बारिश ... सभी का आनद ले लिया आपने ... हम तो तपती हुयी गर्मी में अभी भी झुलस रहे हैं ...

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  9. बंबई पता नहीं क्‍यों कभी रास नहीं आई

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  10. हमने तो कहा था हम आ जाते है मिलने --पर आपको फुरसत कहा हम छोटे ब्लॉगर से मिलने की -- हमें तो आदत हैं यहाँ की हर परेशानी को एडजस्ट करने की ----

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    1. दर्शन जी , बारिश को देखते हुए हमारी हिम्मत नहीं हुई कि हम आपको बुला पाते ! फिर मलाड मे ट्रैफिक भी बहुत था !

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    2. हा हा हा हा हा हा --- ट्रैफिक, बारिश और गर्दी (भीड़ ) की हम मुंबईकरों को आदत होती है डॉ साहेब --खेर, अगली बार मिलेंगे ----

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