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Saturday, April 12, 2014

कोई जीते या हारे, हमने अपना फ़र्ज़ पूर्णतया सौहार्दपूर्ण वातावरण मे पूर्णतया पूर्ण कर दिया ....


पिछले आम चुनाव मे हम वोट डालने से वंचित रह गए थे . लेकिन कुछ महीने पहले हुए दिल्ली के विधान सभा चुनाव मे लोगों का उत्साह देखकर हम भी आश्वस्त हो गए थे कि अब घर बैठे रहने का समय नहीं रहा . और कुछ हो ना हो , 'आप' के चुनावी मैदान मे आने से दिल्ली और सम्पूर्ण देश मे चुनावों मे वोटों की % संख्या तो निश्चित ही बढ़ गई है . इसलिये इस बार हमने भी द्रढ निश्चय और पक्का इरादा बना लिया था कि अपने मताधिकार का पूर्ण उपयोग करेंगे . 

लेकिन एक छोटी सी समस्या आ रही थी कि वोट किसे दिया जाये . क्या पार्टी के नाम पर वोट दें , या पी एम उम्मीदवार के नाम पर . या फिर व्यक्ति विशेष के गुणों के आधार पर वोट दी जाये . इस बार सवाल ज़रा कठिन सा लग रहा था . आखिर देश के भविष्य का सवाल था . देश को चलाने के लिये एक स्थायी सरकार चाहिये , एक योग्य प्रधान मंत्री और उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत चाहिये . लेकिन हमारे इकलौते वोट से तो हार जीत का फैसला होना नहीं था . उस पर श्रीमती जी का भी पता नहीं था कि किसे वोट देंगी . अब डर यही था कि यदि हम दोनो ने अलग अलग वोट दिये तो दोनो की वोट ही आपस मे कट जाएंगी . 

जब श्रीमती जी से हमने इसका ज़िक्र किया तो उन्होने मानव अधिकारों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी मर्ज़ी से वोट देने का अधिकार उन्हे भी प्राप्त है . आखिर स्वतंत्र भारत मे उन्हे भी तो यह स्वतंत्रता होनी चाहिये कि वो अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दे सकें . हमने कहा भाग्यवान , आपको पूर्ण अधिकार है लेकिन हम तो बस यह कह रहे थे कि कृपया आप हमारी वोट ना काटें . यह तभी संभव है जब आप उन्ही को वोट दें जिन्हे हम चाहते हैं . और क्योंकि उन्होने स्वयं अभी तक यह निर्णय नहीं लिया था कि किसे वोट दें , इसलिये बेहतर तो यही था कि हमारी बात मान लें . 

वैसे हमने भी जिंदगी मे कई चुनाव लड़े हैं और लड़वाये भी हैं . इसलिये वोट मांगने का अनुभव हमे भी बहुत रहा है . लेकिन पत्नी से वोट मांगना वास्तव मे बड़ा मुश्किल और एक चुनौतीपूर्ण काम था . फिर भी , हमने अपने सारे अनुभव का उपयोग करते हुए और घर मे ही चुनाव प्रचार करते हुए आखिर श्रीमती जी को मना ही लिया कि वो हमारे कहे अनुसार ही वोट देंगी . सरकार ने चुनावी दिन को छुट्टी का दिन घोषित कर दिया था , लेकिन उसे छुट्टी मे परिवर्तित करना हमारे हाथ मे था . इसलिये हमने निर्णय लिया कि सुबह सैर करने के पश्चात ७ बजे मतदान केन्द्र खुलते ही सबसे पहले वोट डालकर हम निवृत हो जायेंगे . वैसे भी यह आवश्यक नहीं कि नहा धोकर ही वोट डाली जा सकती थी . लेकिन केन्द्र पर जाकर देखा कि हमारे पड़ोसी तो हमसे भी पहले वोट डाल कर जा चुके थे . फिर भी , वोट डालकर ९ बजे तक हमने भी अपनी स्याही सुसज्जित उंगली का फोटो फ़ेसबुक के कहने पर फ़ेसबुक पर डाल कर अपनी देशभक्ति की अमिट छाप अंकित करा दी . 
अब कोई जीते या हारे, हमने अपना फ़र्ज़ पूर्णतया सौहार्दपूर्ण वातावरण मे पूर्णतया पूर्ण कर दिया

10 comments:

  1. बधाई हो...पहला मोर्चा तो आपने घर में ही फ़तह कर लिया।

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  2. आपकी पत्नी ने वोट डाला ही नहीं। असल में आप ने दो वोट डाले हैं।

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    1. उन्होने ने ही दोनों डाले हैं ! :)

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  3. शुभ कार्य के लिए बधाई।

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  4. आप अब चुनाव में खड़े हो ही जाइये. पत्नी जी से वोट मांग लिया तो बाकि देश से क्या मुश्किल होगा :)

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    1. चुनाव से डर नहीं लगता , ---- :)

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  5. ठीक किया पूर्ण मतदान हो गया परिवार का ... आपमें क्षमता है मनवाने की ... पत्नी को मनवाना आसान नहीं होता .. किला फतह अब खड़े होने का सोचें ...

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