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Friday, July 30, 2010

जैसा खाओ अन्न , वैसा हो मन --और तन भी ---

पिछली पोस्ट में हमने मानव प्रवृति के बारे में जाना । बेशक अधिकांश जनता राजसी प्रवृति की ही होती है क्योंकि सांसारिक लोग सात्विक बहुत कम हो पाते हैं और तामसी भी कम ही होते हैं ।

कहते हैं -जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन । हम डॉक्टर्स कहते हैं --जैसा खाओ अन्न , वैसा होवे मन और तन ।


अब देखिये भोजन का तन पर प्रभाव :

सात्विक भोजन --निरोगी काया । तन में ताकत , मन में शांति ।
राजसी भोजन ---राजसी ( शाही ) रोग ।

चाट ,पकोड़े , समोसा आदि तीखे पदार्थ खाने से एसिडिटी , अल्सर आदि रोग होने का डर रहता है ।
फैटी फूड्स --- जंक फूड्स---और हाई कैलरीज फूड्स जैसे बटर चिकन --मोटापा , डायबिटीज , हाई कोलेस्ट्रोल , बी पी , हार्ट अटैक ।

तामसी भोजन --तुच्छ रोग , मौत का साया । अपवित्र भोजन से संक्रमण हो सकता है, जो जान लेवा भी हो सकता है ।

अब ज़रा सोचिये आप गोल गप्पे खाते हुए सी सी कर रहे है , फिर भी एक के बाद एक गोल गप्पे गपे जा रहे हैं । कभी सोचा है , गोल गप्पे वाला आपको कैसे खिलाता है गोल गप्पे । जी हाँ , नंगे हाथ से , पानी में हाथ घोलकर , खिलाता है वो । उसी हाथ से सारी साफ सफाई भी करता रहता है , अपने शरीर की भी , आपकी ही आँखों के आगे । ज़रा सोचिये , क्या उसने नाखून काटे हैं ? आखिर हाइजीन का कितना पता होगा उसे ?

इसी तरह , घर में नौकरानी आपको रोटी बनाकर खिला तो देती है , लेकिन क्या आपने उसको पाठ पढाया है हाइजीन का ?

अज़ी उनकी छोडिये , कृपया अपने ही नाखून देखिये --कहीं बढे हुए तो नहीं है न ।

व्यक्तिगत स्वच्छता में हाथ धोने का बड़ा महत्त्व है
आइये देखते हैं कब हाथ धोना अति आवश्यक होता है ---

खाना खाने से पहले
टॉयलेट या यूरिनल जाने के बाद
किसी रोगी की देखभाल करने के बाद
बाहर से आने के बाद
मूंह पोंछने के बाद
हाथ गंदे होने पर

हाथ धोने का सही तरीका :

हमेशा साबुन या एंटीसेप्टिक घोल का इस्तेमाल करें ।
पानी और साबुन लगाकर हाथों को ६ दिशाओं में रगड़ना चाहिए ।
१) हथेलियों पर ।
२) डोर्सम ऑफ़ हैंड्स --यानि हाथ के पिछले हिस्से पर ।
३) वेब्स --उँगलियों के बीच में रगड़ें ।
४) फिंगर टिप्स --उँगलियों के पोरों पर ।
५) अंगूठे के चारों ओर ।
६) दोनों हाथो को घुमाते हुए , सारे हाथ को एक साथ ।

इस तरह हाथ साफ करने से हाथों पर मौजूद कीटाणुओं को काफी कम किया जा सकता है । इससे ओरोफीकल रूट से होने वाली बीमारियों से निजात पाई जा सकती है ।

लेकिन क्या आपको पता है --गोल गप्पे खाने से , साफ पानी न पीने से , साफ सफाई न रखने से --आपको क्या क्या बीमारियाँ हो सकती है ?

अगली पोस्ट में इसी बारे में जानेंगे , हम लोग ।

नोट : यह पोस्ट श्री चंदर कुमार सोनी की फरमाइश पर लिखी गई है । आशा है , आप सभी लाभान्वित होंगे


Monday, July 26, 2010

क्या आप जानना चाहेंगे आप किस प्रवृत्ति के मनुष्य हैं --सात्विक , राजसी या तामसी ---

पिछली पोस्ट में हमने विकास की बात की सब मित्रों की अमूल्य टिप्पणियां पढ़कर यही निष्कर्ष निकला कि भौतिक विकास कितना ही हो जाये, जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे तब तक हम विकसित नहीं कहलायेंगे

अब सोच भी दो प्रकार की होती है । एक व्यवहारिक , दूसरी आध्यात्मिक । जहाँ व्यवहारिक सोच हमें एक अच्छा नागरिक बनाती है वहीँ आध्यात्मिक सोच हमें एक अच्छा इंसान बनाती है ।

गीतानुसार मनुष्य की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है --सात्विक , राजसी और तामसी । आइये देखते हैं कैसे उत्तपन्न होती है यह प्रवृत्ति।

कर्म करने से ही मनुष्य की प्रवृत्ति का पता चलता है

गीतानुसार --पूजा करने की श्रद्धा , आहार , यज्ञ , तप और दान --मनुष्य की प्रवृत्ति दर्शाते हैं । ये सब तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी।

पूजा करने की श्रद्धा :

सात्विक : एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखते हैं ।
राजसी : देवी देवताओं की पूजा करते हैं ।
तामसी : शरीर को कष्ट देकर , भूत प्रेतों की पूजा करते हैं ।


आहार :

सात्विक : जिसके खाने से देवता अमर हो जाते हैं मनुष्य में बल पुरुषार्थ आये आरोग्यता , प्रीति उपजे दाल,चावल , कोमल फुल्के , घृत से चोपड़े हुए , नर्म आहार

राजसी : खट्टा , मीठा , सलुना , अति तत्ता , जिसे खाने से मुख जले , रोग उपजे , दुःख देवे

तामसी : बासी , बेस्वाद , दुर्गन्ध युक्त , किसी का झूठा भोजन

यज्ञ :

सात्विक : शास्त्र की विधि से , फल की कामना रहित , यह यज्ञ करना मुझे योग्य है , यह समझ कर किया गया यज्ञ सात्विक कहलाता है
राजसी : फल की वांछा करते हुए , भला कहाने को , दिखावा करने को किया गया यज्ञ
तामसी : बिना शास्त्र की विधि , बिना श्रद्धा के , अपवित्र मन से किया गया यज्ञ

दान :

सात्विक : बिना फल की आशा , उत्तम ब्राह्मण को विधिवत किया गया दान
राजसी : फल की वांछा करे , अयोग्य ब्राह्मण को दान करे
तामसी : आप भोजन प्राप्त कर दान करे , क्रोध या गाली देकर दान करे , मलेच्छ को दान करे

तप :

सात्विक : प्रीति से तपस्या करे , फल कुछ वांछे नहीं , इश्वर अविनाशी में समर्पण करे
राजसी : दिखावे के लिए , अपने भले के लिए तप करे , अपनी मानता करावे
तामसी : अज्ञान को लिए तप करे , शरीर को कष्ट पहुंचाए , किसी के बुरे के लिए तप करे


यहाँ तप चार प्रकार के बताये गए हैं --देह , मन , वचन और श्वास का तप।

देह का तप : किसी जीव को कष्ट पहुंचाए
स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखे , दन्त मंजन करे
गुरु का सम्मान , मात पिता की सेवा करे
ब्रह्मचर्य का पालन करे

ब्रह्मचर्य : यदि गृहस्थ हो तो परायी स्त्री को छुए यदि साधु सन्यासी हो तो स्त्री को मन चितवे भी नहीं

मन का तप : प्रसन्नचित रहे मन को शुद्ध रखे भगवान में ध्यान लगावे

वचन का तप : सत्य बोलना मधुर वाणी --हाँ भाई जी , भक्त जी , प्रभु जी , मित्र जी आदि कह कर बुलावे
गायत्री पाठ करे अवतारों के चरित्र पढ़े

श्वास तप : भगवान को स्मरण करे भगवान के नाम का जाप करे


इस तरह मनुष्य के सभी कर्म तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी
इन्ही कर्मों का लेखा जोखा बताता है कि आप सात्विक हैं , राजसी हैं या तामसी प्रवृत्ति के मनुष्य हैं

तो क्यों आज यह अंतर्मंथन हो जाये और आप जाने अपने बारे में किसी को बताने की ज़रुरत नहीं है , बस अपने लिए ही

Thursday, July 22, 2010

विकास --कितने पास , कितने दूर -----

बेशक आज हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं । तभी तो जो एक्सप्रेस हाइवेज , मॉल्स , एस्केलेटर्स , ऑटो मोबाइल्स और आधुनिक उपकरण आदि हम अंग्रेजी फिल्मों में ही देखते थे या किसी अप्रवासी भारतीय मित्र के स्वदेश आने पर उनकी कहानियों में ही सुनते थे , वही आज यहाँ भी आम बात हो गए हैं ।

अब ज़रा इसे देखिये --


ये है एक विकसित देश का हाइवे शहर की ओर जाता हुआ ।

और यह रहा दिल्ली से गुडगाँव जाता हुआ एक्सप्रेस हाइवे नंबर ८ ।

ज्यादा फर्क नहीं है । सच पूछिए तो यहाँ ड्राइव करते समय गर्व की अनुभूति होती है ।



यह जगमगाता मॉल --विकसित देश का ।


और यह रहा दिल्ली का एक मॉल । अंदर की जगमगाहट यहाँ भी कम नहीं है ।


लेकिन सारी समानताएं बस यहीं ख़त्म हो जाती हैं ।
क्योंकि भले ही यहाँ भी सब भौतिक सुख सुविधाएँ उपलब्ध हों , लेकिन अभी भी हमारा रहन सहन , रख रखाव , साफ़ सफाई क्या एक विकसित देश का मुकाबला कर सकती है ? अब ज़रा इसे देखिये --


ये है वहां के एक पोश इलाके का आवासीय क्षेत्र ।



और यह रहा दिल्ली का एक पोश रिहायसी क्षेत्र , जहाँ हम रहते हैं ।

दोनों जगह मकानों की कीमत लगभग एक जैसी है ।

वहां गाड़ी पार्क करना भी एक कला है । क्या मजाल कि पीले रंग की रेखा को पार कर जाएँ ।

यहाँ पार्किंग को लेकर सर फूटने तक की नौबत आ जाती है ।


वहां के डाउन टाउन के चौराहे का एक दृश्य। सामने लाल हाथ की बत्ती --पैदल लोगों को रुकने का इशारा । सब शांति से खड़े होकर बत्ती हरी होने का इंतजार कर रहे हैं । दायें हाथ को ट्रैफिक की बत्ती लाल है । इसलिए गाड़ियाँ रुकी हैं । पैदल यात्री पार कर रहे हैं । सब कुछ शांति से हो रहा है ।



यहाँ का एक चौराहा जहाँ प्रतिदिन लाखों पैदल यात्री सड़क पार करते हैं । ट्रैफिक के लिए बत्ती हरी है । लेकिन पैदल यात्री बीच सड़क पर चले जा रहे हैं ।


क्या इसे विकास कहेंगे ?


जिम्मेदार कौन ?

हमारी कानून या सामाजिक व्यवस्था ?
या फिर हमारी अनुशासनहीन मानसिकता ?

वज़ह कुछ भी हो , जब तक यह सब नहीं बदलेगा, हम विकासशील ही बने रहेंगे। कभी विकसित देश नहीं कहलायेंगे ।

Monday, July 19, 2010

डॉक्टर्स डे पर मिला चिकित्सा रत्न पुरस्कार ----

अक्सर यह देखने में आता है कि कोई भी एसोसिएशन अपने सदस्यों के लिए ही काम करती है । लेकिन दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन एक ऐसी संस्था है जो न सिर्फ अपने डॉक्टर सदस्यों के हित के लिए कार्य करती है , बल्कि समूचे समाज के उत्थान के लिए भी कार्यरत रहीं है ।

सन १९१४ में स्थापित दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन जल्दी ही १०० वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर है

दिल्ली
मेडिकल एसोसिएशन में १०,००० से भी ज्यादा डॉक्टर्स सदस्य हैं ।डॉक्टर्स के लिए नवीनतम जानकारी जुटाने से लेकर , निजी क्लिनिक्स , नर्सिंग होम्स , प्राइवेट अस्पतालों के साथ साथ सरकारी डॉक्टर्स के हितों की खातिर कार्य करना , सभी सरकारी राजकीय और राष्ट्रिय कार्यक्रमों में हिस्सा लेना और समय समय पर तरह तरह के कैम्प लगाकर जनता की सेवा करना , इस संस्था के मुख्य कार्य रहे हैं ।

यूँ तो दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन हर वर्ष बेहतर कार्य करने वाले डॉक्टर मित्रों को समय समय पर सम्मानित कर प्रोत्साहित करती रहती है । किन्तु इस वर्ष डॉक्टर्स डे पर डी एम् ए ने दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ चुनिन्दा डॉक्टर्स को एक विशेष सम्मान से सुशोभित किया --चिकित्सा रत्न पुरस्का देकर ।

चिकित्सा रत्न अवार्ड प्राप्त करने वालों में दिल्ली के सभी बड़े बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों के विश्व विख्यात चिकित्सक और सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों के उच्च अधिकारियों समेत दिल्ली के कई जाने माने डॉक्टर्स शामिल थे ।समारोह में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सभी हू हू उपस्थित थे ।

यह
मेरा सौभाग्य रहा कि यह सम्मान मुझे भी प्राप्त हुआ


दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ नरेंद्र सैनी पुरस्कार प्रदान करते हुए


ऐसे समारोह में अक्सर अवार्ड पाने वालों को कुछ बोलने का अवसर दिया जाता है । लेकिन समय की कमी होने की वज़ह से इसे नज़रअंदाज़ करना पड़ रहा था ।

पुरस्कार वितरण समारोह में जब हमारा नाम पुकारा गया और हम अवार्ड लेने मंच पर पहुंचे तब एक अज़ीबो ग़रीब स्थिति उत्त्पन्न हो गई । एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ सैनी ने अपने हाथ पीछे खींचते हुए कहा --आप तो लाफ्टर चैम्पियन हैं , आपको अवार्ड तब मिलेगा जब आप कुछ सुनायेंगे ।

अब इस अप्रत्याशित आक्रमण के लिए तो हम तैयार नहीं थे । फिर भी क्योंकि माइक हाथ में थमा दिया गया था , इसलिए बचने का कोई रास्ता भी नहीं था ।

सो
हमने कहा कि भाई --

जब समय की हो कमी
और सामने हो नेता या कवि
तो भूले से भी माइक न दो कभी ।

क्योंकि नेता तो फिर किसी और मीटिंग में जाने के लिए जल्दी से खिसक लेंगे , परन्तु एक कवि के हाथ में माइक आ गया तो फिर वापस लेना मुश्किल हो जायेगा ।
अब यह सुनकर वो भी घबरा गए और तुरंत माइक हम से लेकर अवार्ड हमें सौंप दिया ।

अब यह सम्मान प्राप्त करने के बाद हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है ।

लेकिन जिम्मेदारियों से क्या डरना । यही तो मनुष्य को मज़बूत बनाती हैं ।

Wednesday, July 14, 2010

जोड़ों का दर्द --ओस्टियो आर्थराईटिस---क्या किया जाये ---

पिछली पोस्ट में हमने जाना गाउटी आर्थराईटिस के बारे में । लेकिन सबसे ज्यादा कॉमन होती है --ओस्टियो आर्थराईटिस , जिसे डीजेनेरेटिव आर्थराईटिस भी कहते हैं । उम्र के बढ़ने के साथ साथ इसके होने की सम्भावना भी बढती जाती है । यह हाथ , पैर , स्पाइन, घुटने या कूल्हे के जोड़ में हो सकती है । जिससे चलने फिरने में तकलीफ होती है ।


क्या कारण हैं ?

अक्सर इसका कोई कारण नहीं होता । लेकिन ६० % लोगों को अनुवांशिक रूप से हो सकता है । इसलिए भाई बहनों और जुड़वां लोगों में ज्यादा होता है ।

इसके अलावा डायबिटीज , मोटापा , चोट और कुछ जन्मजात रोगों में होने की सम्भावना अधिक रहती है ।


इसमें होता क्या है ?

हमारे जोड़ों में दो हड्डियों के बीच एक कार्टिलेज होती है जो एक कुशन का काम करती है । उम्र के साथ साथ कार्टिलेज में प्रोटीन की मात्र घट जाती है जिससे उसके कोलेजन फाइबर्स टूटने लगते हैं । कार्टिलेज के नष्ट होने से सूजन आ जाती है और दोनों हड्डियाँ भी एक दूसरे पर रगड़ खाने लगती हैं । इससे दर्द होने लगता है और चलने फिरने में तकलीफ होने लगती है ।

यह रोग सबसे ज्यादा घुटने और हिप ज्वाइंट में होता है ।


लक्षण :


सबसे पहला लक्षण है --कुछ देर बैठे रहने के बाद उठने पर घुटने में दर्द होना । थोडा सा चलने या मालिश करने से दर्द ठीक हो जाता है । यदि आपको ऐसा महसूस होता है तो समझ लीजिये रोग की शुरुआत हो चुकी है ।इसी तरह सोकर उठने पर भी कुछ देर के लिए घुटनों में दर्द हो सकता है ।


बाद में जोड़ में लगातार दर्द होना , सूजन , चलने में दिक्कत होना या लंगड़ा कर चलना तथा टांगों में deformityहो सकती है जिससे घुटने बाहर को झुकने से बो -लेग्ड विकार हो सकता है ।

हाथों की उँगलियों में जोड़ों में हड्डी बढ़ सकती है और उंगलियाँ सूजी सी नज़र आती हैं ।


अक्सर देखा गया है कि जोड़ों में दर्द intermittentlyहोता है यानि बीच बीच में अपने आप ठीक भी हो जाता है ।

कई बार ज्यादा रोग होने पर भी दर्द नहीं होता , या फिर शुरू में ही ज्यादा दर्द हो सकता है ।

यानि लक्षण सभी के अलग हो सकते हैं ।

ज्यादा रोग बढ़ने पर सारी मूमेंट ही बंद हो सकती है ।


निदान :

रोग का निदान रोगी को देखकर ही हो जाता है । सुनिश्चित करने के लिए जोड़ों का एक्स रे किया जाता है जिसमे ज्वाइंट स्पेस कम नज़र आएगी और न्यू बोन फोरमेशन दिखाई देगी । बोनी सपर भी दिखाई दे सकते हैं । लेकिन इसे डॉक्टर के लिए छोड़ दीजिये ।


उपचार :

अक्युट अटैक --जोड़ को आराम दो । यानि गति विधि कम करें । दर्द निवारक दवा लें ।


जीवन शैली --

वज़न कम करें।

डायबिटीज या बी पी हो तो उसको कंट्रोल करें ।

नियमित व्यायाम करें । इतना ही करें जितने से तकलीफ न हो ।

जोगिंग से वाकिंग बेहतर है । तेज़ तेज़ चलने से सबसे ज्यादा फायदा होता है ।

स्विमिंग और साइकलिंग भी अच्छा व्यायाम है ।

जोड़ को सहारा देने के लिए छड़ी का इस्तेमाल किया जा सकता है ।

जोड़ों पर दबाव न पड़े इसके लिए यूरोपियन लेट्रिन का इस्तेमाल करें ।


दर्द निवारण :

दर्द के लिए पैरासिटामोल की गोली सबसे उपयुक्त रहती है । पूरे दिन में ८ गोलियां तक खाई जा सकती हैं । इसे खाने के बाद लेना चाहिए । इसके अलावा और भी कई दर्द निवारक दवाएं होती हैं , लेकिन उन्हें डॉक्टर की देख रेख में ही लेना चाहिए ।

दर्द निवारक दवा का सबसे ज्यादा कॉमन साइड इफेक्ट होता है -पेट में जलन , एसिडिटी , अल्सर , ब्लीडिंग । इसके लिए ज़रूरी है कि दवा खाने के बाद ली जाये ।


फिजियोथेरापी :


सिकाई करने से दर्द में आराम आता है और मसल्स रिलेक्स होती हैं । सिकाई करने के लिए पैराफिन वैक्स , गर्म पानी की बोतल का इस्तेमाल किया जा सकता है या कपडे से भी की जा सकती है ।


दर्द निवारक क्रीम लगाने से भी दर्द में आराम आता है । लेकिन क्रीम लगाकर सिकाई नहीं करना चाहिए वर्ना त्वचा में जलन और फफोले बन सकते हैं ।

फिजियोथेरापिस्ट के पास तरह तरह के उपकरण होते हैं सिकाई करने के लिए , जिसके लिए सेंटर पर जाकर या होम सर्विस भी कराई जा सकती है ।


घरेलु व्यायाम :

इस रोग में सम्बंधित जोड़ों का व्यायाम करने से लम्बे समय के लिए काफी फायदा होता है ।

घुटनों के लिए सबसे आसान और उपयोगी तरीका है -- बेड पर पैर लटकाकर बैठें , एक टांग को धीरे धीरे सीधा करें , दस सेकण्ड तक रोके रहें , फिर धीरे धीरे नीचे लायें । अब दूसरी टांग को उठायें और इसी तरह करें । यह प्रक्रिया दस बार सुबह शाम करें ।

याद रहे , इसे धीरे धीरे ही करना है ।

कुछ समय बाद यही व्यायाम , पैर पर कुछ बोझ लटकाकर भी किया जा सकता है ।

इससे टांगों की मसल्स में मजबूती आती है और जोड़ों में लचीलापन ।


सर्जरी :

आम तौर पर सर्जरी की जरूरत नहीं होती है । लेकिन ज्यादा तकलीफ होने पर या जब उपरोक्त उपायों से आराम न आये तो दूसरे उपाय हैं :


हायालुरोनिक एसिड के इंजेक्शन , जोड़ में लगाये जाते हैं ।

आर्थ्रोस्कोपी

ओस्टियोटमी


टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट : इसमें पूरा जोड़ अर्थ्रोस्कोपी निकाल दिया जाता है और इसकी जगह प्रोस्थेटिक जोड़ लगा दिया जाता है । इससे दर्द पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है । लेकिन जोड़ में ताकत उतनी ही रहती है ।


याद रखिये ज्वाइंट रिप्लेसमेंट का मुख्य उदेश्य दर्द से छुटकारा दिलाना है न कि आप को धावक बनाने का। यानि इसके बाद भी गति विधि सीमित ही रह सकती हैं ।


बचाव : में ही भलाई है । इसलिए वज़न कम रखिये । नियमित व्यायाम करिए । तकलीफ होने पर डॉक्टर की सलाह मानिये

नोट : महिलाएं कृपया ध्यान देंयह रोग महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा होता है क्योंकि महिलाएं आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा निष्क्रिय होती हैंहालाँकि इक्कीसवीं सदी के पुरुष भी कम निष्क्रिय नहीं रहेइसलिए अब पुरुषों में भी यह रोग बढ़ने लगा हैइसलिए जहाँ तक हो सके , सक्रियता बनाये रखें




Saturday, July 10, 2010

इश्क कभी किया नहीं ,हुस्न की तारीफ करनी कभी आई नहीं---

आजकल ग़ज़लें लिखने का शौक चढ़ा है दो तीन टूटी फूटी ग़ज़लें लिखी तो लगा कि बन गए ग़ज़लकार । फिर ख्याल आया कि जब तक रोमांटिक ग़ज़ल नहीं लिखी , तब तक असली ग़ज़लकार कैसे बनेंगे । कुछ ब्लोगर मित्रों ने भी उकसाया । बस यहीं मार खा गए । क्योंकि --


इश्क कभी किया नहीं ,हुस्न की तारीफ करनी कभी आई नहींफिर रोमांटिक ग़ज़ल क्या खाक लिखते

ऐसे में जो मन में आया , लिख दिया । भाई तिलक राज कपूर जी के लेख पढ़कर एक ग़ज़ल लिखने की कोशिश की । जब उन्हें सुनाया तो ज़ाहिर है, तकनीक में फेल हो गए । फिर उन्ही से आग्रह किया कि भाई इसका शुद्धिकरण आप ही कर दें । कपूर साहब ने अनुग्रहीत कर चुटकी में ग़ज़ल का रूप बदल सही शक्ल दे दी । प्रस्तुत हैं --यह ग़ज़ल -- दोनों रूपों में ।


पहले प्रेम भाव की अभिव्यक्ति पढ़ें , मूल रूप में


दिल को चुपके से , चुरा गया कोई
हम को हम से ही , मिला गया कोई ।

तन्हा थे हम भी , कितने बरसों से
नज़र मिली तो बस , लुभा गया कोई ।

दिल था सूखा सा , रेता सहराँ में
बरखा बादल बन , करा गया कोई ।

फंसी थी कश्ती , ग़म के भँवरों में
मांझी साहिल तक , तरा गया कोई ।

तम के घेरों में , पा रहे थे सकूं
मन में दीप जला , डरा गया कोई ।

अहं के साये में , जी रहा ` तारीफ`
इश्क के तीर चला , हरा गया कोई ।

अब देखिये और पढ़िए इसका शुद्धिकृत रूप , सही मात्रिक क्रम में ।



दिल में आकर बस जाता है

वो ही अपना कहलाता है।


बरसों से हम सोच रहे थे
पास
कोई* कैसे आता है।


दिल के इस सूखे सहरॉं में

तू बरखा जल बरसाता है।


कश्‍ती जब फँसती देखी तो

मांझी बन तू आ जाता है।


ग़म का जब अंधियार दिखा तो

उजियारा बन तू छाता है।


जब 'तारीफ़' भटकता देखा

राह सही पर वो लाता है ।


*यहाँ कोई को कुई पढ़ा जायेगा ।


अब आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा ।



Tuesday, July 6, 2010

क्या हो यदि शरीर के जोड़ जाम हो जाएँ----


एक दिन के लिए दिल्ली बंद हुई । मानो जिंदगी ही ठप्प हो गई ।
कुछ इसी तरह हमारे शरीर के साथ भी होता है । यदि शरीर के जोड़ जाम हो जाएँ , यानि उनमे कोई रोग हो जाये तो हमारी सारी गतिविधियाँ ही प्रभावित हो जाती हैं । यूँ तो जोड़ों के रोग को गठिया रोग कहते हैं । लेकिन ये रोग कई प्रकार के होते हैं । जैसे --ओस्टियो आर्थराईटिस , रिउमेटिक आर्थराईटिस और गाउटी आर्थराईटिस ।

आइये आज बात करते हैं , गाउटी आर्थराईटिस की ।
इसके कई नाम होते हैं जैसे --गाउट , गाउट सिंड्रोम , गाउटी आर्थराईटिस, किंग्स फुट आदि ।

गाउट क्या होता है ?
यह एक ऐसी दशा है जिसमे शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता हो जाती है। रक्त में यूरिक एसिड अधिक होने से यह शरीर के विभिन्न अंगों में जमा हो जाता है , क्रिस्टल के रूप में । जैसे गुर्दों में , पैरों और हाथों की उँगलियों में , कोहनी के पीछे , कान के लोब्युल में ।

सबसे ज्यादा असर पैर के अंगूठे में होता है, जिसमे सूजन और दर्द होने से चलना मुश्किल हो जाता है ।
गाउट के लक्षण :


गाउट का अटैक होने पर पैर के अंगूठे में अचानक सूजन , लाली , गर्म होना और तेज दर्द होने लगता है । हालाँकि पहला अटैक बिना इलाज़ के भी १-२ हफ्ते में ठीक हो जाता है । लेकिन फिर होने वाले अटैक बिना दवा के ठीक नहीं होते । आगामी अटैक लम्बे भी ज्यादा चलते हैं । रोग बढ़ने पर गुर्दों में भी पथरी बनने की सम्भावना रहती है ।

क्यों होता है ?
यह रक्त में यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है । यूरिक एसिड दो तरह से बढ़ सकता है --या तो ज्यादा बनने से , या मूत्र में वित्सर्जित न होने से । इसके प्रमुख कारण हैं :
जेनेटिक : २० % लोगों को जेनेटिक कारण से होता है ।
खाने में रेड मीट , यीस्ट , और फिश ऑयल ज्यादा होने से ।
अत्यधिक अल्कोहल , विशेष तौर पर बियर ।
मोटापा होने से ।
कुछ दवाओं से भी यूरिक एसिड बढ़ सकता है ।

निदान : मुख्य तौर पर पैर के अंगूठे के बेस पर अचानक सूजन , दर्द और लाल होना --गाउट की ओर इशारा करता है । यूरिक एसिड के बढे होने से इसकी पुष्टि होती है । लेकिन सही निदान के लिए सूजन से पानी निकाल कर इसकी जाँच करने पर यूरिक एसिड के क्रिस्टल दिखाई देते हैं ।

उपचार : अक्युट अटैक होने पर आराम करें । चलने के लिए छड़ी लेने से जोड़ पर बोझ कम पड़ता है । पैर को उठाकर रखें , जैसे तकिया लगाकर । आइस पैक (बर्फ )का इस्तेमाल करें । पानी की कमी न होने दें । यानि ज्यादा पानी पियें ।

डॉक्टर से सलाह अवश्य लें । डॉक्टर आपको देगा :
दर्द निवारक दवा , यूरिक एसिड को कम करने की दवा और कभी कभी steroids
यदि अटैक दोबारा न हो , इसके लिए ज़रूरी है कि आप डॉक्टर को दिखाते रहें ताकि यूरिक एसिड को कम रखने के लिए दवा मिलती रहे ।

बचाव के साधन :
खाने में परहेज़ । यही एक रोग है जिसमे परहेज़ बहुत काम आता है । लो फैट और लो कोलेस्ट्रोल डाईट लें ।
रेड मीट , यीस्ट , फिश , कोर्न सिरप और डाईट सोडा से परहेज़ रखें ।
अल्कोहल या बियर से बचें । यदि लेनी भी हो तो कम से कम मात्रा में ।
वज़न धीरे धीरे कम करें ।
पानी खूब पियें ।
दूध , दही खूब खाएं पियें । इस हिसाब से हरयाणवी लोगों को गाउट कम होना चाहिए ।

यदि आप कोई दवा ले रहे हों तो अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं ।

अंत में : चिंता न करें । यह रोग शर्तिया ठीक होने वाले रोगों में से एक है। बस एक अच्छा डॉक्टर होना चाहिए।

और आपको एक अच्छा मरीज़ होना चाहिए ।

Saturday, July 3, 2010

प्रेसियस चाइल्ड की देखभाल ज्यादा करनी पड़ती है ----

आजकल सचिन तेंदुलकर के बाल बहुत सुर्ख़ियों में हैंघुंघराले बालों को सीधा कराकर जैल से सैट कर, विश्व कप फुटबाल मैच देखते हुए ज़नाब किसी हॉलीवुड हीरो से कम नहीं लग रहे थेसुना है अब सब युवा उनकी हेयर स्टाइल की नक़ल कर रहे हैं

आदमी
के सर पर बाल --हों तो मुश्किल , हों तो और भी मुश्किल

यदि सर पर बाल हैं तो कटवाना भी पड़ेगा नहीं कटवाए तो आदि मानव से लगने लगेंगे अब कटवाने के लिए पहले मन पसंद नाई होना चाहिए फिर पसंद की स्टाइल होनी चाहिए अंत में नतीज़ा पसंद नहीं आया तो कुछ नहीं कर सकते सिवाय इसके कि अगली बार नाई बदल लें

बचपन में जब गाँव में रहते थे , दादाजी का खानदानी नाई --नत्थू नाई ही बाल काटता था लेकिन वो कौन सा फैशन के बाल काटता था पकड़ा , बैठाया और घुमा दी मशीन कच कच बाल कटाते समय अपनी तो हालत कुछ ऐसी होती थी ----

बस फर्क इतना था कि उसके हाथ में कैंची नहीं , कच कच वाली मशीन होती थी जो देखते देखते गंजा कर देती थी

वक्त गुज़रा , हमने स्कूल छोड़ा कॉलिज में गए उधर दादाजी भी नहीं रहे अब कोई नहीं टोकता था , लम्बे बालों के लिए

उधर ७० के दशक में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का बोल बाला था फिल्मों में उनके बालों का फैशन --लम्बे बाल , कान ढके हुए , गर्दन पर बालों का गुच्छा ---सब नौजवान अपना रहे थे

कॉलिज के अंतिम वर्ष में पढ़ाई का बोझ कुछ ज्यादा ही था इसलिए बालों का बोझ कुछ कम किया , मूंछे काट कर लेकिन सर के बाल अभी भी लम्बे ही थे


डॉक्टर बनने के बाद पैसे भी मिलने लगे थे ८० के दशक में अंग्रेजी फिल्मों का भी प्रभाव पड़ने लगा था इसलिए शक्ल में मिला जुला परिवर्तन आया जिसमे हिंदी और इंग्लिश दोनों फिल्मों का असर दिखाई देता था

क्या ज़माना था --काली घनी लम्बी मूंछों की दिशा नीचे की ओर होती थी

इंटर्नशिप के बाद समय आया हाउस जॉब का एक साल का जॉब जो पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए आवश्यक होता था

हमने फिर एक बार शक्ल बदली अब दाढ़ी भी बढ़ा ली और स्टाइल से काटकर दाढ़ी को मूंछों के साथ मिलाकर कुछ ऐसा रूप निकल कर आया ---



आज दाढ़ी है , मूंछें हैं , और ही सर पर इतने बाल हैं

आजकल जब मैं कंघी करता हूँ तब बच्चे बड़ा हँसते हैं कहते हैं --पापा , सर पर चार बाल हैं और आधे घंटे से कंघी करने में लगे हुए हो

मैं कहता हूँ -- बेटा , प्रेसियस चाइल्ड की देखभाल ज्यादा करनी पड़ती है

अब जिसके सर पर घनी जुल्फें हैं वे तो हाथ मारकर भी स्टाइल मार लेते हैं
लेकिन हमें तो चार बालों की जिओग्राफिकल लोकेशन को ध्यान में रखते हुए अग्रिम योजना बनाकर उसे ध्यानपूर्वक कार्यान्वित करना पड़ता है
आखिर सब समय समय की बात है पहले सर पर बाल ज्यादा दिखते थे , अब खाल ज्यादा दिखती है

खैर हमने सोचा क्यों किसी डॉक्टर से परामर्श लिया जाएलेकिन हेयर स्पेशलिस्ट तो कोई होता नहींफिर सोचा अपने त्वचा रोग विभाग के हैड से बात की जाएलेकिन उनके हैड पर तो हमसे भी दो बाल कम हैंअगर उनके पास कोई इलाज़ होता तो पहले अपना करते

फिर हमें नज़फगढ़ के नवाब , विरेंद्र सहवाग का ख्याल आयाभई शादी के बाद उड़े उनके बाल फिर वापस गएपता चला कि उन्होंने हेयर ट्रांसप्लांट कराया है

लेकिन अपनी तो हालत पतली हो गई जब पता चला कि एक बाल की कीमत ७५० रूपये हैअब हमने सोचा कि चलो दो चार हज़ार रूपये अपने ऊपर खर्च कर लिए जाएँ तो क्या बुराई हैलेकिन हिसाब लगाया तो देखा कि इतने में तो बस - बाल ही लग पाएंगे

अब अगर कंघी में एक दो बाल दिख जाते हैं तो पत्नी कहती है, लो कर दिया हज़ार पंद्रह सौ का नुकसान

अब आप ही बताएं -- है कोई तेल, लोशन , करीम , लेप , दवा , दुआ , टूना , टोटका या काला, पीला ,लाल ,हरा --जादू , जो उड़े हुए बालों को वापस ला दे